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सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है हाई स्कूल मैदान में स्थित दुर्गा मंदिर

प्रखंड मुख्यालय में वैष्णव पद्धति से शक्ति की देवी मां दुर्गे की आराधना की जाती है.

संजय कुमार, चौसाप्रखंड मुख्यालय में वैष्णव पद्धति से शक्ति की देवी मां दुर्गे की आराधना की जाती है. जनता हाई स्कूल मैदान स्थित दुर्गा मंदिर में माता वैष्णवी की पूजा बड़े ही भक्तिभाव के साथ की जाती है. शक्ति की अधिष्ठात्री देवी भगवती का यह मंदिर आसपास के इलाकों के लिए आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि माता के दरबार में जो भी याचक अपनी मनोकामना लेकर शुद्ध मन से आते हैं, माता उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं. यहां 1963 से ही लगातार प्रत्येक वर्ष पांच दिवसीय मेला का आयोजन कराया जाता है. वर्षाें से एक ही मैदान पर मुहर्रम और दुर्गापूजा का मेला लगाकर सामाजिक सौहार्द की मिसाल पेश की जाती है. 2018 और उसके पहले भी ऐसे कई मौके आये, जब एक ही समय में मुहर्रम और मां दुर्गे की पूजा एक साथ हुई.

लगता है पांच दिवसीय मेला

1962 ई में चौसा के तत्कालीन बीडीओ राजेश्वर सिंह दुर्गापूजा का मेला देखने के लिए पूर्णिया जिले के बहदुरा गये थे. लौटने के क्रम में उनकी जिप्सी गाड़ी रास्ते में ही खराब हो गयी और उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ी. उन्होंने चौसा पहुंचकर स्थानीय बुद्धिजीवियों से मिलकर प्रखंड मुख्यालय में दुर्गा मंदिर की स्थापना का प्रस्ताव रखा. इसके बाद जनता उच्च विद्यालय के प्रधान की सहमति से विद्यालय की जमीन पर ही 1963 में यहां माता वैष्णवी दुर्गा मंदिर की स्थापना विधि विधान के साथ की गयी. स्थापना काल से अब तक यहां प्रत्येक वर्ष पांच दिवसीय भव्य मेला का आयोजन अनवरत होता रहा है.

आस्था का उमड़ता है सैलाब

सीमावर्ती होने के कारण यहां पूर्णिया व भागलपुर से भी श्रद्धालु आते हैं. पूर्व मुखिया श्रवण कुमार पासवान ने बताया कि आसपास के इलाकों में माता का मंदिर आस्था का केंद्र है. यहां मेले में सुदूर ग्रामीण इलाकों से बड़ी भीड़ उमड़ती है. मधेपुरा, पूर्णिया और भागलपुर जिले के बीच सीमा पर अवस्थित चौसा का एरिया काफी बड़ा है और आसपास के इलाके में इस तरह का मेला कहीं नहीं लगता है. मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा यहां प्रत्येक वर्ष लाखों का जेवरात आदि चढ़ावा चढ़ाते हैं. दुर्गापूजा समिति के अध्यक्ष अनिल मुनका, सचिव सूर्य कुमार पटेल, चमकलाल मेहता, महावीर अग्रवाल, रामदेव पासवान ने बताया कि इस मंदिर में किसी भी तरह का बलि नहीं दी जाती है और न ही पशुओं का परीक्षण होता है. दो साल पहले ही पुराने मंदिर को तोड़कर भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है, जो लगभग पूरा होने के कगार पर है.

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