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शिक्षा मनुष्य के भौतिक, आत्मिक व मानसिक विकास का माध्यम

शिक्षा मनुष्य के भौतिक, आत्मिक व मानसिक विकास का माध्यम

प्रतिनिधि, मधेपुरा भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय शैक्षणिक परिसर स्थित विश्वविद्यालय हिंदी विभाग में शनिवार को नई शिक्षा नीति : भाषा व संस्कृति”””””””” विषयक विमर्श का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता हिंदी के विभागाध्यक्ष डाॅ विनोद मोहन जायसवाल ने की. मौके पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो राजीव मल्लिक ने कहा कि शिक्षा मनुष्य के भौतिक, आत्मिक व मानसिक विकास का माध्यम है. भाषा भाव व विचार की अभिव्यक्ति का माध्यम है तथा संस्कृति आचार, विचार व संस्कार का प्रतिमान है, लेकिन शिक्षा ही भाषा व संस्कृति की परिरक्षक व निर्मात्री शक्ति है. जिसमें राष्टीयता व भारतीयता का अभिवरर्द्धन व संरक्षण होता है. नई शिक्षा भारतीयता, भारतीय राष्ट्रीयता व संस्कृति के प्रतिकूल वैश्विक धरातल पर विदेशी संस्कृति की वाहिका है और इसमें मानवता व मानवीयता की अपेक्षा व्यावसायिकता व सेवकीय मनोवृत्ति की प्रमुखता है. पीजी सेंटर सहरसा के डाॅ सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि नई शिक्षा नीति युवाओं को व्यावसायिक तो बनाती है, लेकिन इसे राष्ट्रीयता, राष्ट्रभाषा व भारतीय संस्कृति व संस्कार से विमुख कर, क्षेत्रवादी चेतना से ग्रस्त करती है और प्रांतीय व विदेशी भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाती है. दिल्ली विश्वविद्यालय के अस्सिस्टेंट प्रो डाॅ अमृत प्रत्यय ने कहा कि नई शिक्षानीति युवाओं को विषय विशेषज्ञ व सांस्कृतिक नहीं बल्कि व्यावसायिक व सेवक बनाती है. यह इसे संपूर्ण मानव बनाने में अक्षम है. इससे नवोन्मेष व ज्ञान का विस्तार व राष्ट्रीयता की चेतना से संपृक्त नहीं करती है. विमर्श में दर्शनशास्त्र विभाग के डाॅ वी दूबे, अर्थशास्त्र विभाग के डाॅ मिथलेश झा, उर्दू विभाग के डाॅ एहशान व नरेश ने भाग लिया. संचालन शोधार्थी विभीषण ने किया. इस अवसर पर डाॅ अमृत प्रत्यय को पदक से सम्मानित भी किया गया.

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