संसाधनविहीन हो गया है हरिहर साहा महाविद्यालय, धरोहर को मिटाने की हो रही साजिश
संसाधनविहीन हो गया है हरिहर साहा महाविद्यालय
प्रधानाचार्य कक्ष में लगा है एसी पर, छात्रों के बैठने के लिए बेंच तक नहीं
विवि प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा महाविद्यालय, पर्याप्त शिक्षक भी नहीं हैं उपलब्ध
लीज पर दी गई कॉलेज की 101 बीघा जमीन पर लोगों ने जतायी आपत्ति
कॉलेज के नाम उपलब्ध है दान की 101 बीघा 12 कट्ठा आठ धूर जमीनकौनैन बशीर, उदाकिशुनगंज
उदाकिशुनगंज अनुमंडल क्षेत्र का एक मात्र अंगीभूत कॉलेज हरिहर साहा महाविद्यालय विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता और सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति का शिकार हो रहा है. हरिहर साहा महाविद्यालय स्थापना काल से ही अपेक्षा का दंश झेल रहा है. जबकि यह कॉलेज बीएनएमयू का एक अंगीभूत इकाई है. बड़े नेताओं ने आश्वासन के सिवा कॉलेज को कुछ नहीं दिया है. महाविद्यालय के छात्रों को भवन के अभाव में वर्षों से खाली जमीन पर पढ़ाया जाता है. सभी कमरे पूर्णतः जर्जर हो चुके हैं. जर्जर स्थिति कभी भी छात्र-छात्राओं के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. कॉलेज प्रशासन विभाग के अधिकारियों से मिल व्यवस्था सुदृढ़ करने की मांग कर चुका है. लोगों ने कहा कि कई बार क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से मिलकर समस्या को रखा गया है, लेकिन अब तक कोई निदान नहीं हो पाया है.
कॉलेज में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव
एचएस कॉलेज में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. सरकार और विश्वविद्यालय के उदासीनता का कोप भाजन बने इस कॉलेज में कई विसंगतियां हैं. जिसे दूर करने का कभी प्रयास नहीं किया गया. एचएस कॉलेज की स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी. यह कॉलेज एक समय उदाकिशुनगंज का धरोहर हुआ करता था, लेकिन समय के साथ इस महाविद्यालय की तस्वीर ही उल्टी हो गई है. जहां क्लास रूम में छात्र-छात्राओं की आवाज व शिक्षकों का प्यार व फटकार सुनाई देता था. वहां अब सिर्फ कागजों की खनक सुनाई देती है. कॉलेज में फॉर्म भरने के समय ही भीड़ दिखती है.
महाविद्यालय को है अपना 101 बीघा जमीन
हरिहर साहा महाविद्यालय को अपना 101 एकड़ जमीन उपलब्ध है. बावजूद यहां के लोग एक अच्छे कॉलेज के लिए लालायित हैं. टूटा-फूटा गिरा हुआ यह महाविद्यालय किसी खंडहर से कम नहीं दिखता है. ज्ञात हो कि 27 फरवरी 1958 को रजिस्ट्री दान पत्र संख्या 1168 रकवा 101 बीघा 12 कट्ठा आठ धूर जमीन दाताओं के द्वारा राज्यपाल सह कुलाधिपति के नाम समर्पित किया गया था. दान पत्र की मूल प्रति महाविद्यालय के द्वारा जिला एवं सत्र न्यायालय में जमीन संबंधी कई मामले दर्ज किए गए हैं. वह बतौर साक्ष्य के रूप में कोर्ट में जमा है.
30 वर्षों के लिए लीज पर दी गई है कॉलेज की जमीन 19 दिसंबर 2020 को तत्कालीन प्रधानाचार्य के द्वारा 58 एकड़ 52 डिसमिल जमीन लीज पर दिया गया है. बभनगामा मौजे की कुल भूमि 39 एकड़ 58 डिसमिल जमीन पट्टे पर 73 हजार रुपए सालाना और प्रत्येक वर्ष 10 प्रतिशत बढ़ोतरी की दर पर. जबकि अरार मौजे की कुल 16 एकड़ 94 डिसमिल जमीन दो लाख 55 हजार रुपए और हर तीन वर्ष पर कुल रकम के 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ दी गई है. दिए गए लीज को 19 जनवरी 2019 के विकास समिति के प्रस्ताव को दर्शाया गया है. जिसमें कहीं भी 30 वर्षों के लीज पर दिए जाने की चर्चा नहीं है. 19 दिसंबर 2020 को तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ जगदेव प्रसाद यादव लीज पर जमीन देते हैं और 31 दिसंबर 2020 को सेवा से अवकाश प्राप्त करते हैं. प्रो जगदेव प्रसाद यादव के समय 19 जनवरी 2019 के बाद दो विकास समिति की बैठक हुई. महाविद्यालय में 30 वर्षों के लीज के निमित्त न तो कोई विज्ञापन किया गया और न ही बोली के लिए किसानों के बीच प्रचार का उल्लेख उपलब्ध है. राजभवन और बिहार सरकार के नियमावली के अनुसार कोई भी लोक संपदा अधिक से अधिक तीन वर्षों के लिए पट्टा पर दिए जाने का नियम है. इससे अधिक समय पर दिए जाने के लिए महामहिम राज्यपाल सह कुलाधिपति अथवा कुलपति से अनुमति लेना आवश्यक है. जबकि इसके लिए कुलपति का कोई भी अनुमति पत्र नहीं लिया गया है. 19 जनवरी 2019 को विश्वविद्यालय से प्राप्त अनुमोदन को ही मान लिया गया है. 30 वर्षों के लिए लीज पर दिए जाने वाली जमीन के लिए किसी राजस्व अधिकारी का हस्ताक्षर नहीं है.कहते हैं प्राचार्य
पर्याप्त भवन नहीं रहने के कारण छात्रों को परेशानी होती है. विभाग को पत्र लिखकर भवन निर्माण कराने की मांग की गई है.
सुमन झा, प्राचार्यडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है