आज से कडामा में शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की द्विदिवसीय पूजा
आज से कडामा में शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की द्विदिवसीय पूजा
फोटो- मधेपुरा 56- मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ सहित अन्य देवताओं की प्रतिमा. उदयनाचार्य ने प्रायश्चित व घोर पूजा कर भगवान जगन्नाथ को लाया था गांव प्रतिनिधि, पुरैनी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापना कर प्रत्येक वर्ष मेला लगाकर पूजा अर्चना करने वाला पूरे मिथिला का एकमात्र ऐसा गांव कड़ामा गांव उदाकिशुनगंज अनुमंडल के पुरैनी प्रखंड में अवस्थित है. सोमवार को भगवान जगन्नाथ का जन्मोत्सव रीति रिवाज के साथ मनाया जाएगा और बुधवार की अहले सुबह मूर्ति का विसर्जन हो जायेगा. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान जगन्नाथ के 24 घंटे यहां रहने की बात भी कही जाती है. इस दिन ग्रामीणों के द्वारा पौराणिक परंपराओं की विधि-विधान अनुसार पूजा अर्चना की जाती है. 62 वर्षीय प्रो शिवेंद्र आचार्य बताते हैं कि उनके पूर्वज उदयनाचार्य ही भगवान जगन्नाथ को कडामा लाए थे और सर्वप्रथम उन्होंने ही प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की थी. रोचक है भगवान जगन्नाथ के गांव आने की कहानी एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार जब भारत में बौद्ध धर्मावलंबी अपने धर्म का वृहद रूप से विस्तार कर रहे थे, तब उनके धर्मगुरू का शास्त्रार्थ उदयनाचार्य से काशी में हुआ. जिसमें किसी प्रकार का निष्कर्ष न निकलते देख दोनों ही ने यह निर्णय निकाला कि एक ऊंची इमारत पर से बौद्ध धर्मगुरू इश्वरो नास्ति कहते हुए नीचे कूदेंगे और उदयनाचार्य इश्वरो अस्ति कहते हुए नीचे कूदेंगे, जो बच गया वह जीत जायेगा. निर्णय ऐसे ही निकला, दोनों ऊंची इमारत से कूदे. जिसमे बौद्ध धर्म गुरु की मृत्यु हो गई और उदयनाचार्य जीवित रह गए और जीत गए. लेकिन उदयनाचार्य ने एक ब्रह्महत्या का पाप अपने सर पर लेते हुए पश्चाताप करने के लिए काशी विश्वनाथ सहित कई बड़े-बड़े मंदिरों में पूजा अर्चना की. लेकिन सभी जगह स्वप्न में आकर भगवान ने उन्हें जगन्नाथपुरी मंदिर में जाकर पश्चाताप करने की बात कही. जिसके बाद उदयनाचार्य सीधे जगन्नाथ पुरी मंदिर पहुंचे और वहां भगवान के दर्शन को कई दिनों तक भूखे प्यासे खड़े रहे. एक योजना दूर रह की थी पूजा वहां के मुर्धन्य पुजारियों के द्वारा एक योजन दूर ही उदयनाचार्य को यह कहकर रोक दिया गया की उनपर ब्रह्महत्या का दोष है. वह पूजा नहीं कर सकते. तब क्रोध में आकर उदयनाचार्य ने भगवान जगन्नाथ को इस बात का बोध कराया कि अगर बौद्ध धर्म आप लंबी शास्त्रार्थ में जीत जाते तो भारत के सभी मंदिरों का अस्तित्व मिट जाता. जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने उदयनाचार्य को दर्शन देते हुए उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त होने का मार्ग बताया और जाने का आग्रह किया. जगन्नाथपुरी से वापस आते समय उदयनाचार्य ने भगवान जगन्नाथ से कहा कि हम मिथिलावासी हैं और आप साक्षात विष्णु व राम के अवतार हैं. इस नाते आप मिथिला के दामाद हुए. इसीलिए जब मैं इतनी दूर आपके दर्शन को आया हूं तो, मुझे कुछ न कुछ विदाई चाहिए. जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने यह सोचा कि अगर इसी तरह से कोई भी व्यक्ति मिथिला से आता है तो वह किन-किन को विदाई दे पायेंगे. भगवान ने साल में एक बार दर्शन की दी अनुमति इसके लिए उन्होंने उदयनाचार्य से यह स्पष्ट रूप से कहा कि मैं स्वयं साल में एक बार आप लोगों को दर्शन देने मिथिला जाऊंगा. लेकिन आज के बाद अगर आपके वंश का कोई भी व्यक्ति जगन्नाथपुरी मंदिर आया तो उसका पूरा कुल विनाश हो जायेगा. इसके बाद से आचार्य वंश का कोई भी व्यक्ति जगन्नाथपुरी नहीं जाता है. चूंकि उदयनाचार्य का निवास स्थान कडामा था तो प्रत्येक वर्ष भादौ माह के कृष्ण पक्ष में होने वाली कृष्णाष्टमी के अवसर पर पूरे कड़ामा के लोग गांव स्थित विषहारा मंदिर परिसर स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ सहित बलराम, मां दुर्गा, भगवान शंकर इत्यादि की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं. पूजा के दौरान पूरे गांव से हजारों की संख्या में डाला, टोकरी सहित कई चीजों में फल, मिठाइयां, पकवान भगवान को भोग के रूप में अर्पण किए जाते हैं.
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