Madhepura News : थर्मोकोल प्लेट व प्लास्टिक के गिलास दे रहे धीमा जहर

प्लास्टिक पर्यावरण, धरती व जीवों के लिए हानिकारक है. थर्मोकॉल से बने पत्तल में खाना-पीना स्वास्थ्य के लिए खतरा है. शहर में जहां-तहां कूड़े में पड़े प्लास्टिक-थर्मोकॉल धरती को बंजर बना रहे हैं. मिट्टी के जीवों के लिए भी खतरा हैं.

By Sugam | September 29, 2024 7:49 PM

Madhepura News : अमन श्रीवास्तव, मधेपुरा. लगातार बढ़ रहे प्रदूषण पर रोक लगाने व पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार ने लगभग एक दशक पूर्व पॉलीथिन के उपयोग पर पाबंदी लगा दी थी. लेकिन आज भी पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है. बढ़ते प्रदूषण का एक प्रमुख कारण पॉलीथिन का बढ़ता प्रयोग भी है. इसकी वजह से न सिर्फ पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है. ज्ञात हो कि शादी-विवाह सहित अन्य उत्सवों में थर्मोकोल के प्लेट व प्लास्टिक ग्लास के बढ़ते चलन से भी प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है.थर्मोकॉल प्लेट व प्लास्टिक निर्मित ग्लास प्रदूषण के बड़े कारक माने जाते हैं. बताया जाता है कि पहले शहरी क्षेत्रों में इन प्लेट व ग्लास का इस्तेमाल पूर्व से ही होता आ रहा था. अब ग्रामीण क्षेत्र में भी इनका अधिकाधिक उपयोग होने लगा है. खासकर इसके निस्तारण के प्रति उदासीनता से स्थिति और विकट होती जा रही है.

बाजारों में प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी

प्लास्टिक व थर्मोकोल पर्यावरण के लिए घातक हैं. इसे देखते हुए सरकार द्वारा प्लास्टिक व पॉलीथिन के प्रयोग को प्रतिबंधित किया गया है. इसके बावजूद शहरी एवं ग्रामीण बाजारों में धड़ल्ले से पॉलीथिन का प्रयोग किया जा रहा है. पॉलीथिन पर पाबंदी को प्रभावी बनाने के लिए प्रशासन द्वारा भले ही सख्ती बरती जा रही है, लेकिन जनप्रतिनिधि व राजनेता इस संबंध में समुचित रुचि नहीं ले रहे हैं. जानकारों का मानना है कि महज प्रशासन की सख्ती से ही पॉलीथिन पर रोक संभव नहीं है. इसके लिए खास से आम सभी नागरिकों को जागरूक होना होगा.

दुष्परिणाम से अनभिज्ञ हैं लोग

थर्मोकोल व प्लास्टिक निर्मित सामान के दुष्परिणाम की अनभिज्ञता से लोग इसका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है. साथ ही प्रशासनिक स्तर से भी इसके प्रयोग को लेकर कोई भी दिशा-निर्देश व सख्ती नहीं बरती जा रही है. जानकारों की मानें तो इसके प्रयोग से जहां आमलोग तरह-तरह की बीमारी का शिकार हो रहे हैं. वहीं भोजन की तलाश में कचरे पर विचरण करने वाले मवेशी विभिन्न रोगों से ग्रसित होकर बांझपन जैसी समस्या से भी दो चार हो रहे हैं.

प्लास्टिक कचरे की में हो रही बढ़ोतरी

प्लास्टिक का सवाल समूचे विश्व के लिए अहम बना हुआ है. यह समस्या हमारे यहां ज्यादा गंभीर है. देश में जारी स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युक्त कचरे से गांव, कस्बा, शहर तक अछूता नहीं हैं. प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है. जानवरों के लिए तो काल भी बन चुका है. सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि इस बाबत न प्रशासन और न स्थानीय लोग गंभीर हैं. इस कचरे के बोझ तले पृथ्वी इतनी दब चुकी है कि अब उसके लिए सांस लेना दूभर हो गया है. अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता है.

पॉलीथिन मिक्स कूड़ा जलाना नुकसानदेह

प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता. यह पांच सौ साल तक नष्ट नहीं होता. यह जमीन में पड़े-पड़े सड़ता भी नहीं है. यह जमीन में केंचुआ जैसे मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाले जीवों को भी क्षतिग्रस्त कर देता है. पॉलीथिन मिक्स कूड़ा जलाना तो और भी नुकसानदेह है. क्योंकि यह हवा में हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोक्साइड घुलकर सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाता है. आज पैदा किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक हमारे साथ बना रहेगा जो हमारे जीवन और पर्यावरण से खिलवाड़ करता रहेगा. इसकी भारपाई असंभव होगी.

पारंपरिक पत्तों व कुल्हड़ के इस्तेमाल को देना होगा बढ़ावा

शादी-विवाह सहित विभिन्न उत्सव के मौके पर केले या सूखे पत्तों से बने प्लेटों में खाने की परंपरा अब खत्म होती जा रही है. जबकि आमलोगों को आधुनिकता को त्याग कर पारंपरिक पत्तों एवं मिट्टी के कुल्हड़ के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा. ऐसे अवसरों पर थर्मोकोल व प्लास्टिक निर्मित समान का बहिष्कार कर केले या सखुआ के पत्तों से बने प्लेटों में खाने तथा मिट्टी के कुल्हड़ में पानी पीने की परंपरा को फिर से पुनर्जीवित करना होगा. इससे जहां कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. वहीं बढ़ते प्रदूषण पर भी विराम लगेगा. मधेपुरा जिले में इसके उपयोग को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है.

अधिक उपयोग पर लीवर व किडनी को खतरा

डॉ मिथिलेश कुमार का कहना है कि है कि मानक के अनुरूप नहीं रहने वाले थर्मोकोल प्लेट व प्लास्टिक का ग्लास स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है. इसके लगातार प्रयोग से लीवर, किडनी एवं पेट से संबंधित विभिन्न प्रकार के रोग से लोग ग्रसित होते हैं. जागरूकता के अभाव में आजकल थर्मोकोल व प्लास्टिक निर्मित चाय कप से लेकर खाने-पीने की थाली, कटोरे व ग्लास का प्रयोग लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं. जो दर्जनों जानलेवा बीमारियों को आमंत्रित करता है.

वायु व उपजाऊ भूमि को करता है प्रभावित

थर्मोकोल के प्लेट एवं प्लास्टिक का ग्लास आसानी से नष्ट नहीं होते हैं. आमलोग इसके प्रयोग के बाद इसे यत्र-तत्र फेंककर जला डालते हैं. जबकि इसके जलाने से विभिन्न प्रकार के जहरीले गैस जहां वातावरण में फैलकर पर्यावरण को दूषित करता है. वहीं इसके अवशेष भूमि की उपजाऊ शक्ति को बुरी तरह प्रभावित करते हैं.

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