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बिहारीगंज से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व देश के बड़े शहरों में जा रहा मक्का

बिहारीगंज से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व देश के बड़े शहरों में जा रहा मक्का

बिहारीगंज. बिहारीगंज रेलवे रैक प्वाइंट पर प्रतिदिन मक्का से भरा ट्रैक्टर आता है. रैक प्वाइंट पर किसानों से मक्का दो हजार रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर के दाम पर लिया जाता है. जानकारी के अनुसार बिहारीगंज रैक प्वाइंट की क्षमता 2600 टन है. समस्तीपुर रेल मंडल के वरिष्ठ उप वाणिज्य प्रबंधक शुचि सिंह ने बताया कि बिहारीगंज रेलवे रैक प्वाइंट से बीते 14 अप्रैल से मक्का मालगाड़ी द्वारा बाहर भेजना शुरू हुआ है. उप वाणिज्य प्रबंधक ने बताया कि पूर्व मध्य रेलवे समस्तीपुर के अंतर्गत बिहारीगंज रेलवे स्टेशन के रैक प्वाइंट की वर्तमान क्षमता 2600 टन है. बिहारीगंज रैक प्वाइंट से मक्का नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, देश के बड़े शहरों में भेजा जाता है. उप वाणिज्य प्रबंधक बताया कि 14 अप्रैल से मक्का ढोने का काम शुरू हुआ. मक्का ढुलाई का काम 14, 17, 20, 28, 30 अप्रैल के बाद 03, 05, 11, 12, 14, 16, 18, 20 और 22 मई तक हुआ है. यह कार्य किसानों के मक्का संग्रहण और विक्रय पर निर्भर है. मक्का व्यापारियों से जुड़े जवाहर चौक स्थित फैक्टरी बाजार के मालिक सुनील अग्रवाल ने कहा कि बिहारीगंज रेलवे रैक प्वाइंट पर मक्का विक्रय की दर 17 मई को 2080 रुपये प्रति क्विंटल थी. 21 मई से बढ़कर यह 2110 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है. वर्तमान दर भी यही है. बिहार के मक्के से मालमाल हो रहा दूसरे देश- मक्का को पीला सोना यूं ही नहीं कहा जाता है. सोना जैसी पीली चमक लिए मक्के की खेती से स्थानीय किसानों की जेब में पैसा जरूर आने लगा है. किसान की आय में वृद्धि हुई है. किसानों की चाहत है कि मक्का आधारित कोई उद्योग कोसी व सीमांचल के क्षेत्र में लगे. मालूम हो कि बिहारीगंज रेलवे रैक से 42 रैक के एक मालगाड़ी में 2600 टन की क्षमता से समय-समय पर मक्का लदान किया जाता है. मक्का निकट के सीमांचल, नेपाल, भूटान आदि देशों में कई कार्यों के लिए जाता है. साथ ही हैदराबाद, कोलकाता व मुंबई जैसे बड़े शहरों में खाद्य उत्पाद में भी जाता है. सस्ते दर में खरीद, महंगे में बेचता है उत्पाद- कोसी व सीमांचल क्षेत्र में प्रति वर्ष हजारों टन मक्के की पैदावार होती है. कभी धान और गेहूं के साथ दलहन के लिए विख्यात स्थानीय कृषि योग्य भूमि में अब मक्के की फसल को आमदनी का मुख्य जरिया लोग मानने लगे हैं. 20 से 22 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री को विवश किसान जानते हैं कि उनके बच्चे इन्हीं मक्के से बने कुरकुरे, स्प्रिंग आदि अन्य चीजों के लिए सैकड़ों रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खर्च करते हैं. बिचौलियों की आमदनी में इजाफा- किसानों और व्यापारियों के बीच की कड़ी में बिचौलिया शामिल रहता है. बिचौलियों की पहुंच किसानों के खेत तक होती है. छोटे किसानों की पहुंच बाजार या रेलवे रैक प्वाइंट तक नहीं होती है. कई लघु किसान गांव-देहात में ही 1700-1800 की दर पर मक्का को स्थानीय स्तर पर बेच देते हैं. गुणा-भाग में किसानों को नकद दाम ने मक्का बिक जाता है. रेलवे रेल प्वाइंट पर मक्का भरे बोरों से लदे ट्रैक्टर को खाली होने कभी घंटों या फिर दिन भी लग जाते हैं.

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