बीमार हैं सदर अस्पताल, बेहतर इलाज की जरूरत

सदर अस्पताल में समस्या ही समस्या दूर करने की नही हो रही पहल

By Prabhat Khabar News Desk | July 9, 2024 6:32 PM

-सदर अस्पताल में समस्या ही समस्या दूर करने की नही हो रही पहल – – अस्पताल में समस्याओं का अंबार- -मरीजो की झेलनी पड़ रही आर्थिक परेशानी प्रतिनिधि मधेपुरा. बाहर से दिखने पर एक अतिसुसज्जित अस्पताल वाली फीलिंग मिलेगी, लेकिन जब आप इलाज के नीयत से सदर अस्पताल के अंदर दाखिल होंगे तो जमीनी हकीकत से आपका सामना होगा. सदर अस्पताल के हर विभाग में कर्मियों का अभाव है. बाहर से देखने में भले ही यह सदर अस्पताल बेहतर लगने लगा हो. लेकिन अंदर जाने के बाद अस्पताल की व्यवस्था की पोल खुल जाती है .सदर अस्पताल में सिर्फ समस्या है सुविधा तो आलमारी के अंदर फाइलों में बंद है. अस्पताल में डॉक्टरों कर्मी व नर्सो की कमी को देखकर कहा जा सकता है कि मरीजों का इलाज भगवान भरोसे ही होता होगा. जानकारी हो कि सदर अस्पताल में जिलाधिकारी से लेकर प्रशासनिक व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का लगातार आना जाना लगा रहता है. इसके बावजूद व चिकित्सक एवं कर्मियों की कमी का समाधान नहीं हो पा रहा है. इसका खामियाज मरीज और उनके परिजन भुगतते रहते है. – सिटी स्कैन की सुविधा नही है, रोजाना दर्जनों मरीज हो रहे रेफर- सदर अस्पताल में सीटी स्कैन की सुविधा नहीं है. सिटी स्कैन की सुविधा नही रहने के कारण मरीजों को हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है. सदर अस्पताल में सिटी स्कैन की सुविधा नही रहने के कारण गंभीर मरीजों का इलाज कराने में काफी परेशानी होती है. मिली जानकारी के अनुसार प्रतिमाह सौ से अधिक मरीजों को पीएमसीएच या डीएमसीएच रेफर किया जाता है. खासकर कोई बड़ी घटना या दुर्घटना होने पर अस्पताल में मरीजों का उचित इलाज नहीं हो पा रहा है. जब मरीजों को सदर अस्पताल से हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है. तो कभी कभी यह आलम होता कि मरीजों को हायर सेंटर ले जाते के क्रम में ही रास्ते में मौत हो जाती है. लोगों का कहना है कि अगर सिटी स्कैन की सुविधा यहां होती तो घायलों की जान बच सकती थी. – आधा अधूरा है मधेपुरा का ट्रामा सेंटर- सदर अस्पताल में ट्रामा सेंटर का निर्माण आधा अधूरा ही है. चार मंजिल के ट्रामा सेंटर का काम पचास प्रतिशत ही किया गया है. जिसको लेकर लोग सशंकित है कि यह सुविधा मिलेगी या नहीं. विदित हो कि ट्रामा सेंटर का निर्माण के लिए चार करोड़ 44 लाख 95 रुपया 643 रुपया बिहार चिकित्सा सेवाएं व आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड को निर्गत करने को बाद जिले के आला अधिकारी कर चुके हैं. इस ट्रामा सेंटर के बनने के बाद दुर्घटना में घायल होने वाले मरीजों के त्वरित उपचार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा. -रेडियोलॉजिस्ट का पद स्वीकृत नही, कैसे होगा अल्ट्रासाउंड – सदर अस्पताल में लाखों रुपए की अल्ट्रासाउंड मशीन स्थापित होने के बावजूद भी मरीजों को गत कई वर्षो से नहीं मिल पा रहा है. इसके कारण इलाज के लिए अस्पताल आने वाले मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है.वही गर्भवती महिलाओं की सदर अस्पताल प्रशासन की तरफ से दो महिला स्टाफ को प्रशिक्षण देकर गर्भवती महिलाओं को सुविधा मिल पर रहा है. लेकिन आम रोग से ग्रस्त मरीजों की समस्या से सदर अस्पताल प्रशासन बेखबर है.बाकी मरीजों को अपनी जेब ढ़ीली करनी पड़ती है. सदर अस्पताल महिला चिकित्सक की माने तो प्रत्येक गर्भवती महिलाओं का गर्भधारण से लेकर प्रसव पूर्व तक तीन बार कराना अनिवार्य है. सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ फूल कुमार की मानें तो रेडियोलॉजिस्ट का पद रिक्त होने के कारण अल्ट्रासाउंड नहीं हो पा रहा है. लेकिन गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड किया जा रहा है. – मेडिकल कचरा से परेशानी- अस्पताल के नजदीक अपशिष्ट पदार्थों का जमावड़ा है. जिसे गाय एवं आवारा पशु विचरण कर रहे है.वही ऐसे में गाय बीमार पड़ सकते हैं. यह आशंका बनी रहती है कि यदि वे अपनी इलाज करवाने अस्पताल जाएं तो पुरानी बीमारी के साथ-साथ कोई नया बीमारी भी उन्हें ग्रसित ना कर ले. जहां स्वस्थ व्यक्ति और उस रास्ते से गुजरे तो वो भी बीमार हो जाए. सदर अस्पताल परिसर से नजदीक में कचरा की वजह से कई तरह के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. लेकिन अस्पताल प्रबंधन इन सबसे बेखबर है. ज्ञात हो कि प्रतिमाह साफ सफाई के नाम पर लाखों रुपए खर्च किया जा रहा है. सफाई के नाम पर लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद भी मेडिकल वेस्टेज उठाव के बाद भी मेडिकल वेस्ट अस्पताल परिसर में पहले बिखरा रहता था. लेकिन इसके बाद अब ऑक्सीजन प्लांट स्तिथ कचरा फैला हुआं है. जिससे कई प्रकार के संक्रमण का खतरा हमेशा आने वाले मरीजों व परिजनों को लगा रहता है. वही इधर से जाने में आम जनमानस या बसे हुए लोग खुद को असमंजस महसूस करते हैं.

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