भाई-बहन के अटूट प्रेम व विश्वास का प्रतीक समा चकेवा का हुआ समापन
भाई-बहन के अटूट प्रेम व विश्वास का प्रतीक समा चकेवा का हुआ समापन
प्रतिनिधि, मधेपुरा
भाई-बहन के अटूट प्रेम आस्था व विश्वास का प्रतीक समा चकेवा पर्व शुक्रवार की रात्रि हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया. परंपरा के अनुसार काफी समय से पूर्व मनाया जाता है. खासकर बहने इसे पूरी आस्था के साथ मनाती है. इसी परंपरा के तहत बहनों ने सामा-चकेवा, खाजन, चिड़या, सतभईया, ढोलकिया, सखाड़ी, भंवरा-भंवरी, चुगला, वृन्दावन, कचबचिया एवं अन्य की प्रतिमा को पूरी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर सर पर रख गीत गाते हुए पूर्णिमा की रात स्थानीय तालाब में विसर्जन कर अपने भाई के सुख समृद्धि एवं लम्बी उम्र की कामना की. वहीं भाइयों ने अपने बहनों को उपहार स्वरूप कई सामान गिफ्ट दिया. सामा चकेवा के गीत से पूरा वातावरण गुंजायमान रहा. बहन के स्नेह व प्यार भरे संबंधों का जीवंत रूप सामा चकवा की शुरुआत छठ पर्व के खरना से ही शुरुआत हो जाता है. मैथली गीत से पूरा इलाका गुंजायमान होने लगता है. यह एक परपंरागत पर्व है, जो बहने अपने भाई के दीर्घायु के लिए करती है. यह पर्व पौराणिक मान्यता पर आधारित है. कहा जाता है कि भाई ने अपनी तपस्या से बहन को श्राप मुक्त कराया था. इस पर बहन सामा ने संसार के सभी बहनों को भाई के दीर्घायु के लिए यह व्रत रखने की प्रेरणा दी थी. भाई ने बहन की मुक्ति के लिए की थी तपस्या सामा चकेवा भाई बहन के अगाध प्रेम की कहानी है. एक व्यक्ति के चुगली पर पिता ने पुत्री को पक्षी बनने का श्राप दिया था. जिसकी जानकारी मिलने पर भाई चकेवा ने बहन की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की तथा अपनी बहन को पक्षी से पुन: मानव बनाने के लिए रास्ता की जानकारी प्राप्त की. इसी को लेकर बहन सामा ने दुनिया के सभी बहनों को भाई के दीर्घायु करने के लिए सामा चकेवा का व्रत करने की बात कही. इसी को लेकर कार्तिक माह में सामा-चकेवा शुरू हुआ.
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