बाबू अबकी हमर आउर के बच्चा की खायेगा से बताइये ….

मधुबनी : धनछीहा पंचायत का नवका टोल की आबादी करीब पांच हजार से अधिक है. अधिकांश लोग किसान. खेती कर किसी तरह अपना गुजर बसर करते हैं. गांव के बीच से तिलयुगा नदी के गुजरने के कारण पूरी बस्ती दो भागों में बंटी है. हर साल यह तिलयुगा नदी लोगों के खेती के लिये सिंचाई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 24, 2017 5:11 AM

मधुबनी : धनछीहा पंचायत का नवका टोल की आबादी करीब पांच हजार से अधिक है. अधिकांश लोग किसान. खेती कर किसी तरह अपना गुजर बसर करते हैं. गांव के बीच से तिलयुगा नदी के गुजरने के कारण पूरी बस्ती दो भागों में बंटी है.

हर साल यह तिलयुगा नदी लोगों के खेती के लिये सिंचाई का एकमात्र साधन रहा करता था. लोग हर साल इसकी सावन में पूजा भी करते हैं. पर इस साल इस तिलयुगा नदी में कोसी बैराज का पानी क्या आया इस गांव की सारी खुशियां ही समाप्त हो गयी. एक ही दिन में पूरे पंचायत की हजारों एकड़ में लगा धान, मक्का, केला का फसल डूब कर बर्बाद हो गया तो दूसरी ओर फूस के करीब दो सौ से अधिक घर भी गिर गये. तबाही का मंजर तो पानी में दिखा नहीं. अब पानी कम होने के बाद जब लोग अपनी आखों से तबाही को देखते है तो हर किसी का कलेजा फट रहा है. कोई खेत में सिर पकड़ कर बैठा है तो कोई उजरे घर को दुबारा खड़ा करने में लगा है.
न बचा खेती न बचा बिचड़ा
किसान रामबाबू मंडल अपने खेत के मेड़ पर बैठे चौपट हो खेती को देख रो रहे थे. हमारे पहुंचते ही इनके आखों के आंसूओं की धारा कुछ अधिक ही हो गयी. सही से बोल भी नहीं पा रहे थे. हिंदी और स्थानीय देहाती बोली को फेंट कर बताते हैं कि ” बाबू अबकी हमर आउर के बच्चा की खायेगा से आंही लोग बताईये. खेत के दिखिये रहे हैं. आन बेर पानी आता था तो डूबलो फसल में से पम्ही (नया जड़) जनइम जाता था. लेकिन अबकि तो नै पता कि पानी में कोन सा समान मिलैल था जे पानी चैल जाने के बाद दिनों दिन फसल गलले जा रहा है. कत्तौ कुनो किसान के पास बिचड़ो नै बचा है. आ ने खाउरे (धान के फसल को उखाड़ कर रोपने की विधि) बचल है जइ् ल क धान के खेती करेंगे. अई बेर बच्चा सब खायेगा कि से बताईये” हर शब्द में दर्द. यह दर्द और आंसू सिर्फ दिखावे को नहीं थे. हकीकत में दूर दूर तक जहां तक नजर जाती खाली पड़ा बधार इनके दर्द की हकीकत को बयां कर रहा था. यह दर्द किसी एक रामबाबू की नहीं थी.
गांव के हर किसानों का दर्द एक समान था. गांव के लोग बताते हैं कि गांव से करीब 19 किलोमीटर की दूरी पर कोसी बैराज है. वहां से इस बार पानी आया तो तबाही मच गयी. लोगो के जान बचाना मुश्किल हो गया. किसी तरह गांव में लोग जान बचाये. किसी ने केले के थंब पर अपने जीवन को गुजारा तो किसी ने बांस को पकड़ कर. इस पानी में हजारों एकड़ में लगा फसल पूरी तरह बर्बाद हो गया.

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