नहीं बनाएं दहेज को स्टेटस सिंबल
मधुबनी : प्रभात खबर की ओर से जेएमडीपीएल महिला महाविद्यालय में बाल विवाह व दहेज प्रथा अभिशाप विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी. इस दौरान शिक्षकों व छात्रों ने बाल विवाह व दहेज प्रथा को एक स्वर में अभिशाप कहा तथा समाज के विकास में बाधक कहा. शिक्षकों ने कहा यह सामाजिक कुरीति है. दीमक […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
January 20, 2018 6:19 AM
मधुबनी : प्रभात खबर की ओर से जेएमडीपीएल महिला महाविद्यालय में बाल विवाह व दहेज प्रथा अभिशाप विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी. इस दौरान शिक्षकों व छात्रों ने बाल विवाह व दहेज प्रथा को एक स्वर में अभिशाप कहा तथा समाज के विकास में बाधक कहा. शिक्षकों ने कहा यह सामाजिक कुरीति है. दीमक की तरह हमें खाते जा रहा है,
पर हम इसे समझ नहीं पा रहे है. सिर्फ कानून से इस प्रथा को नहीं रोका जा सकता है. इसके लिए समाज को जागरूक करने की जरूरत है. वहीं दूसरी ओर छात्रों ने संकल्प लिया कि इस अभिशाप के खिलाफ समाज को जागरूक करेंगे. न सिर्फ अपने परिवार में बल्कि समाज में इस प्रथा को बढ़ावा देने वालों का विरोध करेंगे. ऐसे समारोह का व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का संकल्प लिया. अंत में शिक्षकों व छात्राओं ने बाल विवाह व दहेज प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाने व इस पर पूरी तरह से रोक लगाने का संकल्प लिया.
डाॅ उदय नारायण तिवारी (प्रधानाचार्य) ने प्रभात खबर के इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस अभियान में हम सब मिलकर इस कुरीतियों को दूर करेंगे. यह प्रथा समाज में कई तरह की कुरीतियों को जन्म देती है. उन्होंने माना कि बाल विवाह का मुख्य कारण गरीबी व अशिक्षा है. वहीं दहेज प्रथा लोगों का स्टेटस सिंबल बन गया है. जबतक हम जागरूक नहीं होंगे इस कुप्रथा को समाप्त नहीं किया जा सकता है. उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि इस बढ़ावा देकर ही इन कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है.
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि जिस परिवार में या समाज में ऐसी कुप्रथाओं को बढ़ावा दिया जा रहा हो वहां होने वाला समारोह का सामूहिक रूप से विरोध करें.
डाॅ काशीनाथ चौधरी(प्राध्यापक) ने कहा कि हमारे समाज की विपरीत मानसिकता ऐसी कुरीतियों को बढ़ावा दे रही है. अगर हम लड़कियों की शिक्षा के प्रति गंभीर होकर इसे इस योग बनाएं कि लड़का वाले दहेज मांगने की हिम्मत नहीं करें. एक ओर जहां हमारी संस्कृति नारी का सम्मान करना सिखाती है. वहीं दूसरी ओर हमलोग दहेज प्रथा जैसी कुरीति से उसका अपमान करते हैं. नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देकर इन कुरीतियों को दूर किया जा सकता है.
डाॅ ब्रज किशोर भंडारी (प्राध्यापक) हमारे समाज की कुंठित मानसिकता इस कुप्रथा को बढ़ावा दे रही है. हम इस कुप्रथा को बढ़ावा देने में खुद संलिप्त रहते है. वहीं दूसरे को इसके लिए कोसते है. ऐसी मानसिकता बदलनी होगी. उन्होंने कहा प्राचीन काल में इन कुरीतियों को बढ़ावा मिला जो आज तक चलता आ रहा है. जो हमारे विकास में सबसे बड़ा बाधक है. जब हमारे संविधान में बेटा और बेटी को समान अधिकार दिया है, तब इसमें विभेद नहीं होनी चाहिए. लड़कियों की शिक्षा पर जोड़ देते हुए उन्होंने कहा इसे बढ़ावा देकर हम कुरीतियों पर रोक लगा सकते हैं. डाॅ मिथिलेश कुमार झा(प्राध्यापक) ने कहा कि समाज के कुंठित मानसिकता ऐसे कुरीतियों को बढ़ावा दे रहे हैं. हम अपने आपको शिक्षित कहते है पर जब कुरीतियां दिखाई देती है
तो हम चुपचाप बैठ जाते हैं. इसके लिए एक- एक व्यक्ति को जागरूक होने की जरूरत है. इन कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए सबसे पहले महिला को जागरूक होना जरूरी है. उनका मानना है कि आने वाला कल युवाओं के हाथ में है. युवा आगे आये इन कुरीतियों को आगे बढाये. डाॅ कल्पना कुमारी (प्राध्यापक) ने कहा कि सिर्फ कानून बनाने से कोई भी कुरीतियां नहीं मिटायी जा सकती है इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. उन्होंने कहा बाल विवाह एवं दहेज प्रथा जैसे कुरीतियों में महिलाएं दंडित हो रही है. बिना नारी के विकास के हम राष्ट्र निर्माण के बात नहीं कर सकते है. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे ऐसे कुरीतियों को हटाने में अपना सहयोग दें. अंजली कुमारी ने कहा कि दहेज लेना महिलाओं को अपमान करना है. इन कुरीतियों को बढ़ावा देने में महिलाएं भी आगे रही है. उन्हें यह सोचना चाहिए कि आप भी किसी के बेटी रही है. हमें चाहिए बेटा- बेटी को समान शिक्षा देकर समाज को जागरूक करें तभी ये कुरीतियां दूर हो सकेंगे. शालिनी आनंद ने कहा कि हम जानते है यह कुरीतियां अपराध के श्रेणी में लायी गयी है. पर हम गलती करते जाते है इसके सुधार के लिए किसी तरह की सामाजिक गतिविधि नहीं करते है. भ्रूण हत्या जैसे अपराध हमारे आंखों के सामने होते है तो हम चुपचाप देखते रहते है. समाज अपने मानसिकता बदले इसके लिए जागरूकता की जरूरत है.
जानकी नंदनी ने कहा कि जब घर में बेटी जन्म लेती है तो हम उसके दहेज के लिए पैसा इकट्ठा करने में लग जाते है. जो खर्च उनके पढ़ाई पर करनी चाहिए वह यहीं सिमट कर रह जाता है. समाज को चाहिए कि वे बेटा- बेटी में अंतर न समझ समान रूप से लालन पालन व शिक्षा दें. बेटी शिक्षित होगी तो अपने आप यह कुरीतियां हमारे समाज से मिट जायेगी. शिवानी कुमारी ने कहा कि समाज की कुंठित मानसिकता इन कुरीतियों को बढ़ावा दे रहे है. इसके लिए महिला व पुरुष समान रूप से दोषी है. हमें चाहिए लड़की को परायी धन न समझ कर इन्हें शिक्षित कर आत्म निर्भर बनायें. जिसके बाद समाज की मानसिकता बदलेगी. इन कुरीतियों को दूर करने में यह सबसे बड़ा हथियार होगा. अंशु कुमारी ने कहा कि यह प्रथा हमारे समाज को दीमक की तरह खाई जा रही है. इस प्रथा को बढ़ावा देने में समाज के साथ- साथ परिवार के लोग भी कम जिम्मेवार नहीं है. समाज को स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दें. लड़कियां आत्मनिर्भर होगी तो इस कुप्रथा में विराम लगेगी. बेटा- बेटी में कभी विभेद न हो दोनों को समान शिक्षा मिलें.