बाढ़िक राति कठिन अछि काटब, होइयए बड़ तकलीफ

बेनीपट्टी : बाढ़िक राति कठिन अछि काटब, होइय बड़ तकलीफ, कतबो ध्यान हटाबी तइयो नजरि जाइए बाढ़िक पाइनक दिस. ये दर्द भरी दास्तान प्रखंड के चानपुरा के रिंग बांध पर तंबू में रह रही दुलारचंद सदाय की पत्नी लक्ष्मी देवी की है. जो 15 जुलाई से बाढ़ के पानी के बीच उस छह फुट चौड़े […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2019 5:48 AM

बेनीपट्टी : बाढ़िक राति कठिन अछि काटब, होइय बड़ तकलीफ, कतबो ध्यान हटाबी तइयो नजरि जाइए बाढ़िक पाइनक दिस. ये दर्द भरी दास्तान प्रखंड के चानपुरा के रिंग बांध पर तंबू में रह रही दुलारचंद सदाय की पत्नी लक्ष्मी देवी की है. जो 15 जुलाई से बाढ़ के पानी के बीच उस छह फुट चौड़े बांध पर तंबूनुमा झोपड़ी बनाकर बाढ़ व बारिश से लड़ने की जदोजहद में जुटी थी. लक्ष्मी बताती है कि बाढ़ के पानी में अनाज और कपड़े बह गये.

लोगों की मदद से यहां काम चलाउ झोपड़ी बनाकर अपने छोटे-छोटे पांच बच्चों के साथ मुसीबतों का सामना कर रही है. लेकिन 16 जुलाई की सुबह बाढ़ के पानी की वजह से सभी दिवारें गिर गयी. इन पांचों बच्चों के हाथ पैर में रस्सी बांधकर रात में सोते हैं, ताकि बांध से लुढ़कर पानी में न जा डूबे. बाढ़ और मूसलधार बारिश की वजह से घर की मिट्टी धंसने लगी है. पिछले तीन दिनों से आसमान से आफत बनकर बारिश की बूंदे उनके साहस की परीक्षा ले रही है. मूसलधार बारिश ने चूल्हे में पानी भर दिया.
वहीं कुदाल लेकर अपने झोपड़ी को दुरुस्त कर रहे पसीने से सराबोर दुलारचंद हांफते -हांफते बोलने लगा अहां सभ खाली फराक-फराक फोटबे खिंचय आयल छी. वोट लेबै लेल सब दौड़ल आयत आ दुखक घड़ी में ककरो कोई मतलब नहि. उसने कहा कि पिछले बाढ़ में भी यहां के दो दर्जन लोगों का घर गिर गया था. कोई देखने नहीं आया. बाद में ब्लॉक के कुछ कर्मी आये और पानी में गिरे घर के साथ फोटो लेकर चले गये. कर्मियों ने कहा था सबको घर का पैसा मिलेगा लेकिन दो साल बीत गये किसी को एक रुपये की भी मदद नहीं मिला. लक्ष्मी कहने लगी कि खाय लेल त एको पाई देबे न कैलक आ घर बनबय लेल पाई देत.
बता दें कि दुलारचंद के पांच बच्चे कंचन (8), सोनाक्षी (6), स्मिता (5), आदित्य (2) और संध्या 2 माह की है. अपने बच्चों के लिये दुलारचंद कभी गांव से मांगकर खाना लाते हैं तो कभी परोस की दुकान से उधार बिस्कुट लाकर बच्चों को खिलाते हैं. दुलारचंद व उनकी पत्नी कभी अपने बच्चों के छोड़े जूठन खाकर सो जाती हैं तो कभी आसपास के लोगों की मदद से पेट की आग बुझाती है.

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