अस्पताल में 67 के विरुद्ध आठ डाॅक्टर
मधुबनी : जिले के अस्पतालों में औसतन 56 हजार लोगों के इलाज के लिए महज एक चिकित्सक हैं. यह आंकड़ा जिला की कुल आबादी लगभग 50 लाख पर आधारित है. जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित 64 व संविदारत 28 चिकित्सक हैं. हालत यह है कि जिले के तीन अनुमंडलीय अस्पताल में कहीं एक तो […]
मधुबनी : जिले के अस्पतालों में औसतन 56 हजार लोगों के इलाज के लिए महज एक चिकित्सक हैं. यह आंकड़ा जिला की कुल आबादी लगभग 50 लाख पर आधारित है. जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित 64 व संविदारत 28 चिकित्सक हैं. हालत यह है कि जिले के तीन अनुमंडलीय अस्पताल में कहीं एक तो कहीं दो चिकित्सक पदस्थापित हैं. दरअसल सदर अस्पतल सहित अनुमंडल व प्रखंड क्षेत्रों में कार्यरत स्वास्थ्य संस्थानों में 362 चिकित्सकों के विरुद्ध मात्र 64 नियमित 28 संविदा व 57 आयुष चिकित्सक कार्यरत हैं.
कैसे हो बेहतर इलाज. सरकार द्वारा समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्तियों तक बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने की कवायद भले ही किया जा रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि स्वीकृत पद के विरुद्ध जिला अस्पताल से लेकर पीएचसी स्तर तक महज 15 से 17 फीसदी ही चिकित्सक हैं. ऐसे में एपीएचसी व एचएससी की बात कौन कहे सदर अस्पताल में भी गुणवत्तापूर्ण चिकित्सीय सेवा नहीं मिल रही है. जिला अस्पताल में अधीक्षक सहित नियमित चिकित्सकों का 70 पद स्वीकृत है.
जिसके विरुद्ध वर्तमान में 8 नियमित 3 संविदा व 4 प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं. विदित हो कि सदर अस्पताल रहले 150 बेड का था. जिसे 2009 में 500 बेड में उत्क्रमित कर दिया गया. दस वर्ष होने के बाद भी अस्पताल में 5 सौ बेड का संचालन चिकित्सक के अभाव में नहीं की जा सकी है. विडंबना है कि दो वर्ष पूर्व जिला अस्पताल को मॉडल अस्पताल बनाने की कवायद भी शुरू कर दी गयी. लेकिन नतीजा 5 सौ बेड में उत्क्रमित होने जैसा ही है. अनुमंडलीय अस्पताल झंझारपुर में चिकित्सकों के स्वीकृत 30 पद के विरुद्ध 10 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. जयनगर अनुमंडलीय अस्पताल में 30 स्वीकृत पद के विरुद्ध महज 4 चिकित्सक कार्यरत हैं. जिले के तीन अनुमंडलीय अस्पतालों के कुल स्वीकृत पद 90 के विरुद्ध महज 15 चिकित्सक कार्यरत हैं.
रेफरल व पीएचसी का हाल बदतर. जिला व अनुमंडलीय अस्पताल की भांति ही रेफरल व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भी हाल बदहाल है. कुल 206 स्वीकृत पद के विरुद्ध महज 35 चिकित्सक ही कार्यरत है. ऐसे में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गयी है. जबकि स्वास्थ्य सेवा पर प्रति वर्ष स्वास्थ्य विभाग द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किया जा रहा है.
स्वीकृत पद के विरुद्ध नहीं हैं डाक्टर. जिला में तीन अनुमंडलीय अस्पतालों में कुल स्वीकृत पद 90 के विरुद्ध महज 15 चिकित्सक कार्यरत हैं. वहीं 3 रेफरल व अस्पताल व 21 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वीकृत पद 206 के विरुद्ध मात्र 35 चिकित्सक ही कार्यरत है. जबकि 21 पीएचसी में से 10 को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तब्दील कर दिया गया है. जिला में 74 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. वहीं सदर अस्पताल में 66 स्वीकृत पद के विरुद्ध मात्र 11 चिकित्सक कार्यरत हैं. जबकि सदर अस्पताल के ओपीडी में प्रतिदिन 5 से 6 सौ मरीजों का पंजीकरण किया जाता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
सीएस डॉ मिथिलेश झा ने कहा कि चिकित्सकों की कमी की जानकारी स्वास्थ्य संस्थानों मिली है. जिसकी सूचना विभाग को कईबार दी गयी है. राज्य स्तरीय बैठक में भी यह मुद्दा उठाया जाता है. लेकिन सीमित चिकित्सकों के सहारे जिला अस्पताल से लेकर प्रखंड स्तरीय सेवा संस्थानों में आने वाले मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराया जा रहा है.