परेशानी झेलने के बाद चेहरे पर थी चमक

मधुबनी : आस्था के आगे शारीरिक व मानसिक परेशानी भी श्रद्धालुओं के मनोबल को डिगा नहीं सका. 38-39 घंटे के कष्टपूर्ण यात्रा के बाद भी पर्व में शरीक होने परदेश से लोग अपने घर पहुंचे तो चेहरे पर परेशानी के बदले चमक साफ दिख रही थी. स्टेशन पर पहुंचने के बाद सभी परेशानियों को भूल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2019 1:27 AM

मधुबनी : आस्था के आगे शारीरिक व मानसिक परेशानी भी श्रद्धालुओं के मनोबल को डिगा नहीं सका. 38-39 घंटे के कष्टपूर्ण यात्रा के बाद भी पर्व में शरीक होने परदेश से लोग अपने घर पहुंचे तो चेहरे पर परेशानी के बदले चमक साफ दिख रही थी. स्टेशन पर पहुंचने के बाद सभी परेशानियों को भूल राहत की सांस ली.

पर्व के समय रेलवे द्वारा पूजा स्पेशल ट्रेनों का परिचालन तो किया गया, लेकिन लंबी दूरी के घंटो विलंब परिचालन होने तथा ट्रेनों अत्यधिक भीड़ होने के कारण यात्रियों को यात्रा में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. भीड़ का आलम यह है कि छोटे- छोटे बच्चों के साथ यात्री सीट के नीचे तथा शौचालय के समीप घंटों बैठकर यात्रा पूरा की. अमृतसर जयनगर शहीद एक्सप्रेस बुधवार को तय समय रात 11.37 से 12.40 घंटा विलंब से होकर गुरूवार 12.15 बजे पहुंची.
38-39 घंटे का रहा कष्टदायी सफर. सनपतही निवासी सियाराम यादव अपनी पत्नी गीता देवी व अपने तीन बच्चे सरोज, गौतम व रोहित कुमार के साथ छठ पर्व मनाने के लिए घर आये हैं. श्री यादव ने बताया कि सोमवार को रात भर स्टेशन पर गुजारने के बाद मंगलवार की सुबह 6 बजे शहीद एक्सप्रेस मिला. भीड़ इतनी थी कि शौचालय के समीप बैठकर यात्रा करनी पड़ी. गीता देवी ने बताया कि आज नहाय खाय का दिन है और सभी सफर में ही है. लेकिन छठ मईया की महिमा है कि घर पहुंचने में कामयाव हुए. कष्ट तो हुआ लेकिन पर्व के कारण सभी कष्टों को भूल गयी हूं. बच्चों को भी काफी परेशानी हुई. साथ ही भीड़ के कारण खाना भी नहीं खा पाया.
सफर के लिए जो खाना था वह बुधवार को ही खत्म हो गया. ऐसे में किसी प्रकार कष्ट व यातना सहकर घर पहुंची हूं. इसी प्रकार बलानसेर निवासी राम उदगार पासवान, विंदेश्वर पासवान व अरूण पासवान ने बताया कि सोमवार रात को जालंधर से 11 बजे ट्रेन खुली. भीड़ इतना अधिक था कि कई गई घंटे खड़े होकर बितना पड़ा. पैर रखने का जगह नहीं था.
सोने व बैठने की बात कौन कहें खड़ा होने में कठिनाई हो रहा था. लेकिन छठ आस्था का पर्व है. जिसके कारण सभी कष्टों को भूलकर पर्व के दिन घर आ गये. यहीं हाल देपुरा निवासी धर्मेश्वर के परिवार का भी था. उन्होंने बताया कि ट्रेन में क्या रिजर्वेशन और क्या जेनरल कोच सभी एक समान था. उनकी पत्नी श्रीवती देवी ने बताया कि छठ पर्व मैं स्वयं करती हूं. मंगलवार का सुबह 9 बजे गाजियावाद में शहीद ट्रेन में किसी प्रकार सवार हुई.
भीड़ के कारण तीन बच्चों के साथ इतनी कष्टदायी यात्रा कभी नहीं हुआ. पर्व में हजारों यात्री परदेश से घर आते हैं और रेलवे द्वारा एक दो जोड़ी पूजा स्टेशल ट्रेन चलाया जाता है. जिससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. काफी कष्टदायी यात्रा रहा फिर भी अपने स्टेशन पर पहुंचने के बाद राहत के साथ ऐसा लग रहा है कि छठी माता की कृपा रही कि देर से ही सही पर्व के दिन घर पहुंच गये.

Next Article

Exit mobile version