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भूकंप में माता-पिता व भाइयों की मौत
मधुबनी/हरलाखी : सिर पर बड़ा सा बैग लिए 14 साल की बच्ची जटही बस पड़ाव पर पान दुकानदार से जगह का नाम पूछती है. फिर आगे कौन सी जगह होगी, इसकी जानकारी लेती है. मैले कुचले बटुए से नेपाली दस का नोट निकाल कर दुकानदार को देते हुए नेपाली में कहती ‘आब दरभंगा कितना दूर […]
मधुबनी/हरलाखी : सिर पर बड़ा सा बैग लिए 14 साल की बच्ची जटही बस पड़ाव पर पान दुकानदार से जगह का नाम पूछती है. फिर आगे कौन सी जगह होगी, इसकी जानकारी लेती है. मैले कुचले बटुए से नेपाली दस का नोट निकाल कर दुकानदार को देते हुए नेपाली में कहती ‘आब दरभंगा कितना दूर आहे’.
फिर दुकानदार से पड़ाव पर खड़ी बस की ओर इशारा किया. वह वापस दूर खड़ी अपने से कुछ छोटी लड़की के पास जाकर बात करती है. बिस्कुट खाने लगती है. इसी बीच दूसरी लड़की रोने लगती है, तो वह कांधे से लगाकर आंसू पोछते हुए कहती है ‘हम हैं हे न गे’. ये दो बहनें हैं. नाम सीता और गीता है. दोनों नेपाल के भक्तपुर की रहने वाली हैं. 25 अप्रैल को आये भूकंप में पिता राम किशन साव, माता अंकुर देवी व दोनों भाई रमेश व अरुण की मौत हो गयी.
बताती है जब भूकंप आया तो उस समय दोनों बहन माता-पिता के साथ खेत में काम कर रही थी. इसी बीच चाची बीमार होने की सूचना मिली, तो माता-पिता दोनों घर चले गये और दोनों बहन को खेत में रहने को कहा. कुछ देर बाद सब्जी का खरीदार आया तो पुराना पैसा तीन हजार रुपये देकर खेत में रखी सब्जी ले गया. फिर दोनों बहन घर की ओर रवाना हुई, तभी अचानक जमीन हिलने ली. कुछ देर तो दोनों कुछ नहीं समझी, तभी गांव के लोगों को भागते देख डर हुआ तो मचान के नीचे जाकर दोनों बहन छिप गयी.
रोते हुए सीता कहती है कि देर तक खेत और जमीन हिलती रही.
खेत से दिखने वाले गांव के सभी घर गिरने लगे. कुछ देर बाद गांव में चीख पुकार शुरू हो गयी. हम दोनों बहन भी मचान के नीचे से निकल घर की ओर भागे, लेकिन बड़का बाव (गांव के एक बुजुर्ग) ने दोनों को पकड़ लिया. दोनों बहन काफी रोते रहीं. कुछ समय बाद जब धरती शांत हुई तो हम घर की ओर गये. गांव में सारा घर गिरा हुआ था. हमारे घर का अता-पता नहीं था. सब अपने-अपने घर के मलवा को हटा रहे थे.
हम दोनों बहन भी खपड़ा हटना शुरू किया तो बहुत समय बाद मां का पांव दिखा. फिर बड़े भाई अरुण का सर दिखाई पड़ा. हमरा घर के सब दब के मर गये. गांव में कम लोग ही बचे. उनके गांव में करीब 150 घर था. सब ध्वस्त हो गया. तीन दिन तक गांव में रही. पोखरा पाली बाजार में मामा-मामी का कुछ अता-पता नहीं लगा, तो चचेरी मौसी के यहां रवाना हुई. जैसे-तैसे मंगलवार की जटही बस स्टैंड पहुंची. बताती है कि दरभंगा में उसकी मौसी रहती है, लेकिन कहां यह उसे पता नहीं. मौसा राज कुमार राज मिस्त्री है. बस इससे ज्यादा से कुछ पता नहीं. कहती अब मौसी के अलावे कोई सहारा नहीं है.
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