पहले था धोबीघाट, अब रहते हैं होमगार्ड
सदर अस्पताल के बर्न वार्ड में सिपाहियों का डेरा, जले मरीजों को रखा जाता है जेनरल वार्ड में सरकार चिकित्सा व्यवस्था को दिन व दिन आधुनिकता के साथ बेहतर बनाने की कोशिश में जुटी है. इस पर पानी की तरह पैसा भी बहाया जा रहा है. ताकि आम जन को इलाज की सुविधा स्थानीय स्तर […]
सदर अस्पताल के बर्न वार्ड में सिपाहियों का डेरा, जले मरीजों को रखा जाता है जेनरल वार्ड में
सरकार चिकित्सा व्यवस्था को दिन व दिन आधुनिकता के साथ बेहतर बनाने की कोशिश में जुटी है. इस पर पानी की तरह पैसा भी बहाया जा रहा है. ताकि आम जन को इलाज की सुविधा स्थानीय स्तर पर ही मिल सके. पर जो व्यवस्थाएं अस्पतालों में पहले से बनी हुई है, उसकी हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है.
ऐसे में आमलोगों को सुविधा मिलना तो दुर सुविधा के लिये अब फजीहत तक ङोलनी पड़ रही है. इन दिनों सदर अस्पताल के बर्न वार्ड का यही हाल है. वार्ड तो है पर यहां मरीजों का इलाज नहीं होता है. देखिये यह रिपोर्ट.
मधुबनी : सदर अस्पताल में करीब आठ साल पहले बर्न वार्ड बनाया गया. उस समय यह महसूस की गयी थी कि जिले के विभिन्न भागों से आग में जले मरीजों की तादाद बढ़ी है.
पर अलग वार्ड नहीं होने के कारण मरीजों के इलाज में काफी दिक्कत होती है. विभागीय कर्मी बताते हैं कि लक्ष्मीपुर गांव में आगलगी की एक भीषण घटना हुई थी. इसमें करीब एक दर्जन लोग बुरी तरह से झुलस गये थे. इन सबों का इलाज के लिये सदर अस्पताल लाया गया था. पर इंतजाम के अभाव में सबों को डीएमसीएच रेफर कर दिया गया था. तब काफी हल्ला मचा था. तभी विभागीय स्तर पर बर्न वार्ड शुरू करने का निर्णय हुआ था.
पहले पैथोलॉजी के लिये बना था मकान : करीब आठ साल पहले जिस मकान में बर्न वार्ड का निर्माण कराया गया था. दरअसल, वह पैथोलोजी विभाग के लिये बना था. बताया जाता है कि उस समय सेंट्रल पैथोलोजी लैब की स्थापना होना था. जिसके लिये अलग से भवन की जरूर थी.
तब अस्पताल के पूर्वी भाग में तीन कमरे का एक भवन का निर्माण कराया गया था, लेकिन बाद में बर्न केस की बढ़ती संख्या को देखते हुए इस भवन को ही बर्न वार्ड बना दिया गया.
पहले रखा जाता था वार्ड का कपड़ा : इस भवन को बर्न वार्ड घोषित किये जाने के बाद कुछ समय तक तो बर्न केस के लिए इसे उपयोग किया गया था, लेकिन करीब एक साल बाद इसमें वार्ड के कपड़े रखे जाते थे.
इसको लेकर कई बाद अस्पताल प्रशासन को फजीहत तक ङोलनी पड़ी. फिर यह बर्न वार्ड में के रूप में संचालित होने लगा. पर यह ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका. अब इसमें अस्पताल के सुरक्षा में तैनात होम गार्ड के जवान अपना डेरा बना रखे हैं. वार्ड के तीन कमरे हैं. दो कमरे में कुछ छह बेड सिपाहियों ने अपने रहने के लिये लगा रखा है. इसी में ये सभी रहते हैं और भोजन बनाते हैं.
बदलता रहा वार्ड का स्वरूप : बताया जाता है कि इस भवन को कभी भी बर्न केस के लिये स्थायी तौर पर नहीं रहने दिया गया.
इसके स्वरूप को समय-समय पर अस्पताल प्रशासन अपनी सुविधा के अनुसार बदलती रही है. कभी इसे आइसोलेशन वार्ड तो कभी स्वाइन फ्लू के लिये अलग से वार्ड इसी भवन को बनाया गया. यानी जब जब अस्पताल प्रशासन को जिस तरह की जरूरत हुई इस बर्न वार्ड उस तरह का स्वरूप दिया गया.
जेनरल वार्ड में रहते बर्न केस : बर्न वार्ड के लिये घोषित भवन आज भी सदर अस्पताल के परिसर में कायम है.
पर इसमें होम गार्ड के सिपाहियों का डेरा है. जबकि बर्न केस को इन दिनों अस्पताल के जेनरल वार्ड में रखा जाता है. इसको लेकर कई बार सवाल भी उठा है. पर अस्पताल प्रशासन के पास इन दिनों दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है.
खतरनाक है जेनरल वार्ड में इलाज : वहीं जेनरल वार्ड में बर्न केस के इलाज को लेकर डॉक्टरों ने ही आपत्ति जतायी है.नाम नहीं छापने के शर्त पर एक वरीय चिकित्सक ने बताया है कि बर्न केस को आइसोलेशन पर रखा जाता है. यह एक संवेदनशील मरीज होता है. इसके इन्फेक्शन का खतरा बराबर बना रहता है. अगर इन्फेक्शन हो जाय तो ऐसे मरीजों की जान भी जा सकती है. इसलिए जेनरल वार्ड में बर्न केस का इलाज खतरनाक है.