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रात में बीमार पड़े तो भगवान ही मालिक !

रात में बीमार पड़े तो भगवान ही मालिक !सदर अस्पताल में सुविधा नहीं, निजी क्लिनिक भी रहता है बंदसुविधाओं के अभाव में मरीज परेशान आईसीयू बंद रहने से मरीजों पर आफत दवाओं के अभाव में सदर अस्पताल में हाहाकार फोटो: 6, 7परिचय . सदर अस्पताल, पर्ची पर लिखा गया दवा जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं […]

रात में बीमार पड़े तो भगवान ही मालिक !सदर अस्पताल में सुविधा नहीं, निजी क्लिनिक भी रहता है बंदसुविधाओं के अभाव में मरीज परेशान आईसीयू बंद रहने से मरीजों पर आफत दवाओं के अभाव में सदर अस्पताल में हाहाकार फोटो: 6, 7परिचय . सदर अस्पताल, पर्ची पर लिखा गया दवा जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. मधुबनी. आर के कॉलेज रोड के समीप शांभवी कॉलोनी निवासी अलका कुमारी की तबीयत अचानक खराब हो जाती है. उसे सीने में तेज दर्ज व दम फूलने की परेशानी हो जाती है. परिजन उसे लेकर सदर अस्पताल पहुंचते हैं. सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में चिकित्सक मौजूद हैं. वे अलका का चेकअप कर एक दवा लिखते हैं . बोलते हैं कि बाहर से खरीद कर ले आइये. परिजन दवा खरीदने के लिये पूरे शहर में कुहासे भरी रात में परेशान हो जाते हैं. दवा नहीं मिलती है. परिजन थक हार कर वापस अस्पताल आते हैं. डॉक्टर से समस्या बता दूसरी दवा लिखने का आग्रह करते हैं पर समस्या इस बार भी वही. दूसरी बार लिखा गया दवा भी कहीं नहीं मिलता. अस्पताल के सामने खुले दवा विक्रेता दवा नहीं होने की बात बताते हैं. इस समय में अलका की तबीयत समय दर समय खराब हो रही है. वह कराह रही है. परिजन बेबस आखों से उसे कराहते देख रहे हैं. जब उसकी कराह देखी नहीं जाती तो उसे लेकर किसी निजी क्लिनिक में जाने को निकलते हैं . पर दुर्भाग्य या जिले में स्वास्थ्य महकमा की बदहाली या मनमर्जी कि पूरे शहर में एक भी निजी क्लिनिक भी ना तो खुला मिला और ना ही किसी डॉक्टर ने अपने दरवाजे को खोला. पूरी रात अलका कराहती रही और परिजन बेबस हो देखते रहे. यह किसी फिल्म या किताब की कहानी नहीं. स्वास्थ्य विभाग की बदहाली की एक हकीकत है. दरअसल रात को ईलाज के लिये शहर मेें कोई व्यवस्था ही नहीं है. खुदा ना करें. यदि आपके अपनों की तबीयत रात में खराब होती हेै तो आप बेबस आंखों से अपनों को कराहते, तड़पते देखते भर रह सकते हैं. आपको कहीं इलाज की सुविधा नहीं मिलेगी. लोग परेशानी में या तो सदर अस्पताल आते हैं या फिर निजी क्लिनिक का ही सहारा लेते हैं. पर जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल सिर्फ नाम को है. यहां दवा ही नहीं है. जिससे मरीजों को इलाज किया जा सके. और रात के समय में एक भी दवा की दुकान या निजी क्लिनिक में भी चिकित्सक ईलाज को नहीं आते हैं. यह बात और है कि दिन में सैकड़ों के संख्या में निजी क्लिनिक खुले मिल जायेंगे. जहां मरीजों का जमकर शोषण किया जाता हेै. बिना फार्मासिस्ट का कोर्स किये हुए सैकड़ों की संख्या में दवा की दुकानें भी मिल जायेगी. बाहर से ही खरीद कर लाना होता है दवा : ललिता देवी गोबरौड़ा गांव से आई है. उन्हें जांडिस हो गया है. इमर्जेंसी वार्ड में वह भरती है. वह परेशान है. उसे बाहर से 350 रुपये की दवा खरीदनी पड़ी है. आउटडोर के आगे खांसी से पीडि़त राम कुमार नामक मरीज काफी गरीब है. उसे सदर अस्पताल से खांसी की दवा नहीं मिल सकी. उसके पास रुपये नहीं है कि वह कफ सीरप बाजार से खरीद सकें. उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाया है. आउटडोर में मीरा आइरन व कैल्सियम का टैबलेट के लिये तरस रही हैं. गैस से परेशान शंभू कारक काफी नाराज नजर आ रहे हैं. कहते हैं सदर अस्पताल है पर यहां गैस की दवा नहीं है. सदर अस्पताल में दवाओं के लिये मरीजों में हाहाकार मचा है. आउटडोर में एंटी बायटिक दवा तक नहीं है. ये दवा हैं आउटडोर में आउटडोर में 36 तरह की दवा रहने का प्रावधान है. पर सदर अस्पताल के आउटडोर में सिर्फ 12 तरह की ही दवा है. इससे मरीजों में बेचैनी बढ़ गई है. अमीर तो दवा बाहर से खरीद लेते हैं पर गरीब मरीजों पर मौत का साया मंडराने लगा है.आउटडोर में सिर्फ पारासिटामोल,डायजेपाम,ओफलोक्सासीन सिरप, ओंडम,एमॉक्सिसीलिन सीरप, अलप्राजोलम, अलबेंडाजोल, मेडिजोल सहित 12 तरह की दवाएं उपलब्ध हैइमरजेंसी में दवाओं का अभावसदर अस्पताल में आईसीयू बंद है. आईसीयू बंद रहने के कारण गंभीर रूप से बीमार मरीज इमर्जेंसी में इलाज के लिये आते हैं. पर यहां आने के बाद उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है. क्योंकि 112 तरह की दवाओं की जगह सिर्फ 11 तरह की दवा है. आईसड्रील, सेपकोरलिन सूई,रैनिटिडीन सूई, मेटोक्लोफ्रेमाइट, आरएल, एनएस,डीएनएस ही उपलब्ध है. इमर्जेंसी में दवा के अभाव में मरीजों में त्राहिमाम की स्थिति है. इमर्जेंसी में भी उच्च रक्तचाप व डायबिटिज की दवा नहीं है. दवा के अभाव में मरीजों का सदर अस्पताल से मोहभंग होता जा रहा है. बंद हुआ आईसीयू आईसीयू बंद रहने से सदर अस्पताल आये गंभीर मरीजों में हाहाकार मचा है. न कार्डियक मॉनिटर की सुविधा इमर्जेंसी में है न वेंटिलेटर. हृदयरोगियों के लिये इमर्जेंसी में स्पेशल बेड की भी व्यवस्था नहीं है. आईसीयू का भवन वीरान पड़ा है. पिछले लगभग पांच तीन साल से आइसीयू बंद है पर जिला स्वास्थ्य प्रशासन आईसीयू को चालू कराने में सक्षम नहीं हो रहा है. ऑक्सीजन चैंबर व एनेस्थीसिया के डॉक्टर का अभाव है. नहीं खुल सका एसएनसीयू जिला स्वास्थ्य प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी शिशुओं को अत्याधुनिक चिकित्सा उपलब्ब्ध कराने के लिये स्पेशल न्यू बॉर्न केयर युनिट नहीं खुल सका है. सरकारी डॉक्टरों का मोहसदर अस्पताल में पदस्थापित अधिकांश डॉक्टर निजी क्लिनिक चलाने में व्यस्त नजर आते हैं. वे वेतन के लिये सदर अस्पताल में काम करती हैं पर निजी क्लिनिक में उसी मरीज के आने पर बेहतरीन इलाज करते हैं. शहर के समाजसेवियों ने स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव से सरकारी डॉक्टरों के निजी क्लिनिक पर रोक लगाने की मांग की है. सदर अस्पताल में जांच घर सहित निजी क्लिनिकों के दलाल घूमते रहते हैं. वे मरीजों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं. क्या कहते हैं अधिकारी डीपीएम दयाशंकर निधि ने बताया कि आउटडोर में 33 के विरुद्ध 15 तरह की दवाएं उपलब्ध है. उन्होंने कहा कि इमरजेंसी में 112 की जगह 36 तरह की दवाएं उपलब्ध है. क्या कहते हैं विधायक विधायक समीर कुमार महासेठ बताते हैं कि मामला गंभीर है. जल्द ही इस समस्या को लेकर सीएस व सरकार से बात की जायेगी. कहा कि कुछ पहल सीएस को भी करनी चाहिये. सीएस मरीजाें के इलाज करने से कतराते हैं. उन्हें यह याद रखना चाहिये कि पहले वे डॉक्टर हैं फिर अधिकारी.

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