सरकारी शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में!
मधुबनी : एक तरफ सरकारी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों के खंडहर में तब्दील होते भवन तो दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों के ऊंचे व भव्य इमारतें. सरकारी विद्यालयों में जहां पोशाक योजना लागू होने के बाद भी मैले कुचले कपड़ों में बचपन लिपटा नजर आता है. वहीं, निजी विद्यालयों में बेंच और डेस्क पर बच्चे पढ़ाई […]
मधुबनी : एक तरफ सरकारी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों के खंडहर में तब्दील होते भवन तो दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों के ऊंचे व भव्य इमारतें. सरकारी विद्यालयों में जहां पोशाक योजना लागू होने के बाद भी मैले कुचले कपड़ों में बचपन लिपटा नजर आता है. वहीं, निजी विद्यालयों में बेंच और डेस्क पर बच्चे पढ़ाई करते हैं, वहीं सरकारी विद्यालयों में बरामदे पर बोरे पर बैठकर पढ़ना छात्र छात्राओं की नियति बन गयी है.
सरकारी विद्यालयों के छात्रों को सामान्य ज्ञान तक की बमुश्किल जानकारी रहती है. वहीं, निजी विद्यालयों के छात्र पर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. ऐसे में सरकारी विद्यालयों से अभिभावकों का मोहभंग लाजिमी है. यह कहना है जिले के शिक्षाविदों का. सर्वशिक्षा अभियान भी जिले में सरकारी विद्यालयों की तसवीर बदलने में विफल रही है.
शिक्षकों को सालों भर गैर शैक्षिक कार्य में लगाये जाने के कारण भी पढ़ाई बाधित होती है. हालत इतनी बदतर हो गयी है कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों और शिक्षिकाएं भी अपने बच्चों का नामांकन निजी स्कूल में कराने को मजबूर हैं.
गुणवत्ता शिक्षा नहीं
हाल के यूनिसेफ और प्रथम संस्था के रिपोर्ट ने जिले में सर्वशिक्षा अभियान की पोल खोलकर रख दी है. रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश बच्चे गणित में कमजोर हैं. अंग्रेजी में तो बच्चे कमजोर हैं ही कई सरकारी विद्यालयों में बच्चों का हिंदी भी काफी कमजोर पाया गया. हम भले ही दावा कर लें कि बिहार शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया है,
लेकिन हकीकत जानने के लिए आपको जिले के विभिन्न प्राइमरी और मिडिल स्कूल जाना होगा. जिला मुख्यालय में ही एक कमरे में पांच-पांच कक्षा की पढ़ाई होती है. कई स्कूलों में चापाकल नहीं है तो कई स्कूलों में शौचालय नहीं. जिले में सरकारी विद्यालयों के लिए बनायी गयी योजनाएं ढपोरशंखी साबित हो रही है. मध्याह्न भोजन को लेकर बच्चों के निवाले में घपलेबाजी की खबर आये दिन प्रकाशित हो रही है, लेकिन विभाग चैन की नींद सोया है.
वास्तविक छात्रों से अधिक उपस्थिति दिखाकर मध्याह्न भोजन में धांधली का आरोप जांच का विषय है. सरकार का करोड़ों रूपये मध्याह्न भोजन पर खर्च हो रहा है पर यह योजना भी सरकारी स्कूलों के प्रति बच्चों का आकर्षण नहीं बढ़ा सकी है. सरकारी स्कूलों में नामांकन में गिरावट आने की आशंका है.
समय से नहीं मिलती पुस्तकें
समय से बच्चों को पुस्तकें नहीं मिल रही है. मिडिल स्कूलों में कंप्यूटर लगाने की योजना साकार नहीं हो सकी है. विद्युतीकरण की योजना धीमी है. शिक्षा समिति का गठन भी सरकारी विद्यालयों में व्याप्त समस्याओं का निदान नहीं कर सका है. शिक्षकों के प्रशिक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी सरकारी स्कूलों के शिक्षा के स्तर में गुणवत्तापूर्ण सुधार नहीं आ रही है. जिले में फर्जी शिक्षकों की बहाली प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्था को कलंकित करती रही. बालिका शिक्षा के लिए चलाये गये अभियान के बाद भी उनका निजी विद्यालयों की ओर पलायन जारी है.
क्या कहते हैं अधिकारी
डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान हरि नारायण झा का कहना है कि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा रही है. बालिका शिक्षा की स्थिति की स्थिति भी अच्छी है. नि:शक्त बच्चों को विशेष शिक्षा सुविधा दी जा रही है. कुछ सुविधाओं का अभाव जरूर है. उनका समाधान भी जल्द कर लिया जायेगा.