ठंड के कारण लाखों की फसल हो रही बरबाद

जयनगरः कमला नदी के बालू पर उगने वाला हरा सोना, शीत लहर की चपेट में आ गयी है. क्षेत्र में कड़ाके की ठंड की कहर जारी है. इसका सीधा प्रभाव बालू पर ऊग रहे तरबूजा, ककड़ी, खीरा एवं अन्य फलों के कोमल पोधे पर पड़ रहा है. ये पौधे जो गरमी के शुरूआत में ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2014 4:28 AM

जयनगरः कमला नदी के बालू पर उगने वाला हरा सोना, शीत लहर की चपेट में आ गयी है. क्षेत्र में कड़ाके की ठंड की कहर जारी है. इसका सीधा प्रभाव बालू पर ऊग रहे तरबूजा, ककड़ी, खीरा एवं अन्य फलों के कोमल पोधे पर पड़ रहा है.

ये पौधे जो गरमी के शुरूआत में ही मीठा एवं ठंडा फल देती है. कड़ाके की ठंड के वजह से बरबाद हो रहा है. कोमल पौधे असहनीय ठंड बरदाश्त नहीं कर पा रही है. पूर्ण रूप से पौधा बनने से पूर्व ही उक्त फलों के पौधे ठंड से गल रहा है. किसानों के चेहरा पर मायूसी छा गये है. उनकी परेशानियां इस कदर बढ़ गया है कि उसे कुछ समझ में नहीं आता है कि पौधे को बचाने के लिए करें तो करें क्या? ठंड से पौधे को बचाने के किसान विभिन्न प्रकार के तरकीब अपना रहे है. बालू पर ऊग रहे पौधे पर ठंड से बचाव के लिए किसान पुआल डाल रहे है.

लेकिन इस शीत लहर के सामने ये भी अच्छा विकल्प साबित नहीं हो रहा है. सैकड़ों किसान इस धंधे से जुड़े तथा लाखों रुपये इस धंधे में निवेश किये हैं. फल अच्छी होने पर किसान मालों माल हो जाते हैं. कई किसान वैसे भी है तो तरबूजा, ककड़ी की खेती करने का हुनर जानते हैं लेकिन उनके पास खेती में निवेश करने के लिए रुपये नहीं है. वैसे किसान साहु कारों से कर्ज लेकर बालू पर खेती कर रहे है. ये इस आस में है कि बालू से निकलने वाली हरा फल ही मुङो सोना देगा. किसानों को इस हरा सोना की खेती में काफी श्रम की भी आवश्यकता पड़ती है. सितंबर माह से ही किसान इस कार्यो में जुट जाते है. अक्तूबर, नवंबर माह में किसान बालू के अंदर उक्त फलों के बीज डालते हैं.

उसे 4 फीट बालू में गड्डा खोद कर उसके अंदर, गोबर, खाद एवं रासायनिक पदार्थ डालते है. पौधे निकलने के बाद तेज हवा एवं आंधी से बचाव के लिए किसान चारों तरफ खड़ पुआल का वार लगाते हैं. 24 घंटे किसान उन पौधों को इस प्रकार देख रेख करते हैं. किट नाशक दवा, छिड़काव, खाद एवं सुरक्षा संबंधी अन्य कार्यो को कहते है. मदन यादव, दिलीप पासवान, अरुण पासवान, रवि पासवान, उमेश यादव, गंगा चौड़वार समेत कई किसानों ने बताया कि बालू पर मीठे फलों की खेती करने में काफी पैसा एवं श्रम लगता है. बाढ़ एवं ठंड से यदि फसल बच जाते हैं तो किसान को इन फलों से सोना प्राप्त होता है. जानकारों का कहना है कि कमला के बालू पर 40 साल पूर्व से ही फलों की खेती किसानों के द्वारा की जा रही है. पूर्व में उत्तर प्रदेश के कुछ किसान यहां डेरा, डाल कर खेती करते थे. बाद में स्थानीय किसान खेती करने लगे. खेती में जितना राशि निवेश किया जाता है उस से चार गुणा फायदा होता है. छात्र नेता कुमार धर्मेद्र ने हुई नुकसान को प्रशासन से भरपाई करने का आग्रह किया है.

Next Article

Exit mobile version