जिले के दो दर्जन गांवों में गूंजने लगी चरखे व करघे की आवाज

-शैलेंद्र कुमार- मधुबनीः एकजुटता में वास्तव में काफी ताकत है. मधुबनी खादी ग्रामोद्योग संघ के कार्यकर्ता इसे साबित कर रहे हैं. छोटे स्तर पर भले ही सही इन्होंने गांव में चरखे व करघे की आवाज को दुरुस्त करने की पहल की है. संघ ने आर्थिक तंगी के बावजूद 1 लाख 13 हजार से 5 क्विंटल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2014 4:26 AM

-शैलेंद्र कुमार-

मधुबनीः एकजुटता में वास्तव में काफी ताकत है. मधुबनी खादी ग्रामोद्योग संघ के कार्यकर्ता इसे साबित कर रहे हैं. छोटे स्तर पर भले ही सही इन्होंने गांव में चरखे व करघे की आवाज को दुरुस्त करने की पहल की है. संघ ने आर्थिक तंगी के बावजूद 1 लाख 13 हजार से 5 क्विंटल 10 किलो टेप की खरीद की है. इससे जिले के 20 से अधिक गांवों में धागा बनाने का काम शुरू हो गया है.

मधुबनी खादी ग्रामोद्योग संघ से जुड़े शाहपुर, गंधवार, ब्रह्मेतरा व बड़ागांव आदि गांव में धागा बनाने का काम शुरू हो गया है. इसी तरह से रहिका के धकजरी, रहिका, सिमरी, कपिलेश्वर राजनगर प्रखंड के बेल्हबाड़ व परिहारपुर व जयनगर के विभिन्न गांव में यह पहल शुरू हो गयी है. जिला मंत्री अनिल झा व सहायक जिला मंत्री अरुण चौधरी ने बताया कि खादी स्थानीय परिवेश में आजीविका सशक्त साधन रहा है. कुछ समस्याएं इस राह की रुकावट बन गयी है. जिसे दूर करने की कोशिश की जा रही है. सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इसकी रौनक व महत्ता को एक बार फिर से स्थापित किया जाना संभव हो सकेगा. खादी में अपने जीवन को खपा देने वाली संघ के अध्यक्ष सरला देवी ने बताया कि इसे वैज्ञानिक तौर पर लेना पड़ेगा. टेप के निर्माण व धागा बनाने से लेकर कपड़े के उत्पादन व इसकी बिक्री के तौर तरीके को आधुनिक माहौल के अनुकूल तैयार करनी होगी. ताकि इस स्पर्धा के बाजार में ये अपना बाजार बना सके.

इसके लिये शुरुआत में सरकार को मदद करनी होगी. इसे लोगों के रोजगार व क्षेत्र के अर्थव्यवस्था से जोड़ कर देखना होगा. इसे केवल कमाई के जरिये के रूप में लेना नाइंसाफी होगी. फिलहाल, 100 रुपये प्रति किलो टेप खपाने पर कतिन को देने का निर्णय लिया गया है. इससे गांव की महिला व पुरुष अपने को रोजगार से जोड़ पाये हैं. खासकर, नि:शक्त व वृद्ध घर की माली हालत में अपना योगदान देने लगे हैं.

ठंड में गरमाया बाजार

संघ ने काश्मीरी चादर, बंडी, मफलर व अन्य गर्म कपड़े मंगवाये हैं. 1 लाख 9 हजार के मंगाये गये माल महज कुछ दिनों में ही बिक गये हैं. जो यह साबित करता है कि खादी का लेवल बाजार में बेहतर माना जाता है. लोगों की पंसद में यह सबसे ऊपर है. खादी कार्यकर्ता राम नारायण साहू, दिवानाथ झा, विजय कुमार यादव आदि ने बताया कि खादी की अपनी साख है. बस, जरूरत है इसे मूर्त रूप देने की.

प्रथम राष्ट्रपति थे प्रभावित

यहां के कपड़े की गुणवत्ता की चर्चा हमेशा होती रही है. यहां के खादी से बनाये गये कपड़े प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हमेशा करते रहे. यहां की व्यवस्था को विनोबा भावे अनुकरणीय बताया था. खादी की बेहतरी व यहां की व्यवस्था के लिये महात्मा गांधी लगातार यहां के लोगों से संपर्क में रहे हैं. इसकी गुणवत्ता की चर्चा पूरे सूबे में होती रही है. अब भी विभिन्न जिले में मधुबनी खादी मिलने के बोर्ड लगे हुए हैं. यहां के कार्यकर्ता ने बताया कि गुणवत्ता अब भी वही है. बस इसे प्रोत्साहन देने की जरूरत है. यहां की गुणवत्ता के बारे में यह चर्चा होती है कि यहां के मसलन की खादी से बने चादर अंगूठी से गुजर जाने वाली होती थी.

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