चंदा की सालाना रकम का हो निर्धारण
मधुबनी : बजट के बाद हर वर्ग के लोगों में प्रतिक्रियाओं को दौर शुरू हो गया है. खासकर राजनीतिक दलों को दो हजार ही कैश से चंदा लेने व इसके उपर की राशि चेक, ड्राफ्ट या डिजिटल मोड में पेमेंट किये जाने पर प्रतिक्रियाएं आने लगी है. राजनीतिक दलों से लेकर समाजसेवी, व्यापारी, किसान, नौकरी […]
मधुबनी : बजट के बाद हर वर्ग के लोगों में प्रतिक्रियाओं को दौर शुरू हो गया है. खासकर राजनीतिक दलों को दो हजार ही कैश से चंदा लेने व इसके उपर की राशि चेक, ड्राफ्ट या डिजिटल मोड में पेमेंट किये जाने पर प्रतिक्रियाएं आने लगी है. राजनीतिक दलों से लेकर समाजसेवी, व्यापारी, किसान, नौकरी पेशा लोग सभी इस पर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. हालांकि इस घोषणा को भी आम लोगों ने महज पांच राज्यों के चुनाव का बजट ही बताया है.
किसान भूषण रामराजी सिंह बताते हैं कि सरकार कुछ भी कर ले. राजनीति ना तो कभी पवित्र रही है और ना कभी भी इसमें पवित्रता आयेगी. एक रास्ता बंद होता है उससे पहले ही राजनीतिक दल के कार्यकर्ता व नेता दूसरा रास्ता खोले रहते हैं. जिस समय में सरकार ने नोटबंदी किया था उस समय भी आम लोग ही परेशान थे. नेताओं के घर से उस कठिन दौर में भी नये नये नोट लाखों में निकल रहे थे. फिर किस आधार पर पारदर्शिता की बात कही जा सकती है.
सरकार की यह घोषणा एक दिखावा भर है. राजनीति के गलियारे में आने वाले कभी भी पूरी तरह से सच्चाई के राह पर या ईमानदारी से काम कर ही नहीं सकते. इस घोषणा में भी सरकार ने यह साफ नहीं किया है कि एक पार्टी के चंदा में आये कुल रकम का दायरा क्या होगा. इसका रकम निर्धारण होना चाहिए. पर यह नहीं है. वहीं समाजसेवी सह जेपी सेनानी हनुमान राउत कहते हैं कि बहुत हद तक राजनीतिक दलों पर इससे कोई शिकंजा कसने वाला नहीं है.
हर राजनीतिक दलों को आमदनी व खर्च का ब्यौरा देना होता है.
जो पार्टी पहले दो लाख रुपये चंदा शो करती थी अब वह मात्र दो हजार शो करेगी. बाद बांकी कुछ नया नहीं होगा. हालांकि इसमें भी सरकार घोषणा पर सही तरीके से पहल करे. यदि इस पर सरकार सख्ती से पहल करती है तो निश्चय ही राजनीति का नया दौर शुरू होगा. बजट में चंदा की बात से पहली नजर में लोगों को अच्छा लगता है. पर इसमें जब तर्क करें तो नयी बात कुछ भी नहीं है. कभी भी राजनीति शुद्ध नहीं हो सकेगी.
युवा व्यवसायी विक्रम कुमार बताते हैं कि सरकार ने चंदा का दायरा कैश में लेन देन दो हजार तक निर्धारित कर दिया है. पर इसमें अभी भी कई पेंच बरकरार हैं. कितने लोगों से चंदा लिया जा सकता है और यह आम लोगों को कैसे पता चलेगा, इस पर कोई ठोस बातें नहीं कही गयी है. सब कुछ स्पष्ट नहीं है. सरकार को इसको पूरी तरह स्पष्ट करना चाहिए. हालांकि इससे बहुत हद तक राजनीति को नयी दिशा मिलने की संभावना है. पर सरकार को ठोस निर्णय लेने होंगे.
जब तक सरकार राजनीतिक दलों के चंदा पर पूरी तरह से रोक नहीं लगायेगी, राजनीति का शुद्धिकरण नहीं हो सकता है. राजनीति में आने वाले के लिये इस बजट से बेहतर होगा कि संविधान में कुछ संशोधन लाया जाये कि सीएम, विधायक, सांसद आदि जैसे पदों के लिये शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण होना चाहिए. दो हजार के चंदा कैश लेनदेन निर्धारित करना कोई बड़ी पहल नहीं है.
ग्रामीण बैंक के वरीय प्रबंधक दिलीप कुमार ठाकुर बताते हैं कि केंद्र सरकार ने यह पहल कर राजनीतिक दलों को एक तरह से पारदर्शिता बरते जाने की पहल शुरू की है. इसका तत्काल प्रभाव भले ही ना दिखे. पर इसका दूरगामी प्रभाव जरूर दिखेगा. इससे राजनीति में पारदर्शिता आये ना आये पर सरकार ने यह मंशा साफ कर दिया है कि सरकार अब कैशलेश ट्रांजेक्सन को बढ़ावा देने पर जोर दिया है. राजनीतिक दलों के लिये लाया गया यह नियम भी कैश लेश ट्रांजेक्शन का ही एक हिस्सा है.
राजनीति कभी भी साफ नहीं हो सकती है और कभी भी इसमें पूरी तरह से देश हित , समाज हित की भावना रखने वाले ही आयेंगे यह भी संभव नहीं है. सत्ता का लोभ कभी भी राजनीति को साफ सुथरा नहीं रहने देगा.