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देवशयनी एकादशी आज, मांगलिक कार्य पर लगा विराम

उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु के शयन में जाने की कथा प्रचलित है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 16, 2024 10:37 PM

मधुबनी. उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु के शयन में जाने की कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं. इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. इसके बाद 18 नवम्बर से मांगलिक कार्य शुरू हो जाता है. देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को होगी. इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाएगा. देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है. जिसे आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इसे हरिशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी या तुरी एकादशी भी कहते हैं. आषाढ़ शुक्ल की एकादशी तिथि का आरंभ 16 जुलाई की रात 8:33 से शुरू होगा और समापन 17 जुलाई की रात 9:02 पर होगा. उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को होगी. इस दिन भगवान विष्णु के शयन में जाने की कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार चार महीने तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं. यह चार महीने ””””चातुर्मास”””” कहलाता है. जिनमें विवाह, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य वर्जित माना जाता है. भगवान शिव संभालते हैं कार्यभार पं. पंकज शास्त्री ने कहा कि सृष्टि के संचालक और पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु हैं. ऐसे में देवशयनी एकादशी के बाद भगवान पूरे चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. इस अवधि को भगवान का शयन काल कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयन काल में जाने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव संभालते हैं. इसलिए चातुर्मास के चार महीनों में विशेष रूप से शिवजी की उपासना फलदाई है. देवशयनी एकादशी का महत्व देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत और पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी के व्रत से विशेष रूप से शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस दिन विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ साधक को करनी चाहिए. इसके बाद देवोत्थान एकादशी के बाद 18 नवंबर से शुभ कार्य शुरू होगा. इसके कारण भगवान श्रीहरि नारायण की विशेष कृपा पाने के लिए चातुर्मास के इस काल में पूजन-अर्चना, आराधना-साधना, पाठ आदि कार्य करना उचित माना गया है.

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