कचरे का डंपिंग यार्ड बना सदर अस्पताल परिसर
सदर अस्पताल इन दिनों कचरे का डंपिंग यार्ड में तब्दील हो गया है. ऐसे में अस्पताल आने वाले मरीज की कौन कहे स्वस्थ व्यक्ति व चिकित्सक भी बीमार हो जाए कहा नहीं जा सकता.
मधुबनी. मरीज बीमारी का इलाज कराने अस्पताल यह सोच कर आते हैं कि उन्हें यहां बेहतर इलाज के साथ खुशनुमा माहौल उपलब्ध होगा और वे स्वस्थ होंगे. पर जो हालात इन दिनों अस्पताल में साफ सफाई को लेकर है उससे यह आशंका है कि यहां आने वाले लोग कोई दूसरी बीमारी से ग्रसित न हो जाएं. सदर अस्पताल इन दिनों कचरे का डंपिंग यार्ड में तब्दील हो गया है. ऐसे में अस्पताल आने वाले मरीज की कौन कहे स्वस्थ व्यक्ति व चिकित्सक भी बीमार हो जाए कहा नहीं जा सकता. विडंबना यह है कि कचरे के डंपिंग यार्ड के बगल में ही जैव अवशिष्ट प्रबंधन इकाई का निर्माण किया गया है. इसमें तीन कमरे हैं. जिसमें लाल, हरा एवं पीला कमरा है. इसमें अलग-अलग कचरे को अलग-अलग रंगों के हिसाब से रखने का नियम है. बावजूद कचरे को इन कमरे में नहीं रखकर खुले में ही रखा जा रहा है. हैरान करने वाली बात यह है कि इसके बगल में ही अस्पताल प्रबंधक का कार्यालय है. ऐसे में अस्पताल प्रबंधन इन सबसे बेखबर हो प्रतिमाह साफ-सफाई पर हजारों रुपए खर्च कर रहा है. जानकारी के अनुसार अस्पताल में सिर्फ सफाई व मेडिकल वेस्ट के उठाव मद में लगभग 2 लाख रुपए का भुगतान प्रतिमाह किया जाता है. डंपिंग यार्ड में तब्दील हुआ अस्पताल परिसर सदर अस्पताल के डायलिसिस के समीप मरीजों के लिए बने रैन बसेरा को जैव अपशिष्ट प्रबंधन इकाई के रूप में तब्दील कर दिया गया, ताकि कचरे को रंगों के हिसाब से उन कमरे में रखा जाए. ताकि आने जाने वालें मरीजों एवं उनके परिजनों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो. विदित हो कि कचरे के डंपिंग यार्ड में प्रसव कक्ष के मेडिकल वेस्ट सहित अस्पताल से निकलने वाले कचरे को इकट्ठा किया जा रहा है. बता दें कि कचरे के बगल में ही जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय, विकलांगता कार्यालय, लेखापाल कार्यालय, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन सहित अस्पताल प्रबंधक का कार्यालय है. जन्म प्रमाण पत्र कार्यालय व विकलांगता कार्यालय में प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में लोग अपना प्रमाण पत्र बनवाने आते हैं. वहीं लेखापाल कार्यालय में भी दर्जनों की संख्या में मरीज व उनके परिजन विभिन्न योजनाओं के कागजात जमा करने के लिए आते हैं. पुराने आईसीयू भवन में एएनएम व अन्य कर्मियों का मासिक प्रशिक्षण भी होता है. विदित हो कि प्रतिदिन 100 से ज्यादा मरीज अल्ट्रासाउंड के लिए आते हैं. वहीं सिटी स्कैन में भी प्रतिदिन दर्जनों मरीज जांच कराने आते हैं. लेकिन इन सबसे बेपरवाह अस्पताल प्रबंधन कचरे का उठाव करने का प्रयास नहीं करता है. बिहार स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मेडिकल वेस्टेज के लिए कई दिशा निर्देश दिया गया है. वही स्वच्छता मिशन को लेकर केंद्र से राज्य तक कई अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन अस्पताल में जमा कचरे को देखकर यही लगता है कि यह अभियान केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया है. सरकार के स्वच्छता मिशन अभियान को लेकर अस्पताल प्रबंधन लापरवाह है. विदित हो कि सदर अस्पताल में मेडिकल वेस्ट के उठाव के लिए प्रतिदिन गाड़ी भेज कर मेडिकल वेस्ट का उठाव किया जाता है. जिसमें एजेंसी को प्रति माह 60 हजार रुपए का भुगतान किया जाता है. इसके अलावा साफ सफाई मत पर प्रतिमाह एजेंसी को प्रति माह लगभग 1.50 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया जाता है. ऐसे में सिस्टम को लागू करने में जब जिला अस्पताल की स्थिति ऐसी है, तो अन्य संस्थानों सहित निजी संस्थानों की स्थिति का सहज ही आकलन किया जा सकता है. प्रतिदिन 35 से 40 होता है प्रसव सदर अस्पताल के प्रसव कक्ष में प्रतिदिन 35 से 40 गर्भवती महिलाओं का प्रसव होता है. इस दौरान प्रसव कक्ष से निकलने वाले कचरे डायलिसिस के समीप बने जैव अवशिष्ट प्रबंधन इकाई के समीप ही जमा कर दिया जाता है. जबकि डायलिसिस सेंटर में भी गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज डायलिसिस करवाने के लिए यहां आते हैं. इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ नरेश कुमार भीमसारिया ने कहा कि जानकारी ली जा रही है. दोषी पाए जाने वाले कर्मियों पर कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवा के साथ स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल में बीएमएसआईसीएल द्वारा एमसीएच का निर्माण कार्य शुरू किया गया है. इस दौरान सभी प्रकार के कचरे का उठाव करने का निर्देश अस्पताल प्रबंधन को दिया गया है. उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल में मॉडल अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है. जल्द ही ओपीडी सहित अन्य विभागों को मॉडल अस्पताल में शिफ्ट कर दिया जाएगा. जहां एक ही छत के नीचे मरीजों को बेहतर एवं स्वच्छ वातावरण उपलब्ध होगा.
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