Madhubani News. मधुबनी. भैयाक कोजगरा में, भारक मोजगरा में बाबूजी परिसैथ मखान, चुमि चुमि भैया के होई छैन चुमान …गै बहिना भैया के होईछैन चुमाना…, चकमक ईजोरिया में सांझक बेरिया में भैईया के होइछनि चुमाना, आई छैन कोजगरा महान. इसी प्रकार की पारंपरिक गीत नव विवाहित दूल्हों के घर में लोकपर्व कोजगरा के अवसर पर गूंजता रहा. मिथिला का महान पर्व कोजागरा बुधवार की रात बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. दूल्हे का चुमावन के बाद दुर्वाक्षत देकर बुजुर्गों ने उनके स्वस्थ्य व दीर्घ जीवन की कामना की और आशीर्वाद दिया.””””आजु सुदिन दिन निर्मल बनल सोना ओ चांदी समान, की रघुबर के झूमि झूमि करियौन चुमावन.”””” आदि मिथिला के पारंपरिक लोक गीतों से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहा. उनके यहां आज के दिन का माहौल उत्सवनुमा बना रहा. कन्या के घर से मखान सहित अन्य सामग्री आने के साथ घर आंगन में हलचल देखी गई. अष्टदल कमल के बने अरिपन पर सजाया गया था बांस का डाला पांच से छह फुट व्यास वाले बांस से बने डाला पर धान, मखान, पांच नारियल, पांच हत्था केला, दही का छांछ, पान की ढोली, मखान का माला, जनेऊ, सुपारी, इलायची से सजा कलात्मक वृक्ष, पांच प्रकार की मिठाई की थाली, छाता, छड़ी वस्त्र सहित अन्य सामग्री की सजावट देखते ही बन रही थी. फिर संध्या काल में वर के ससुराल से आए वस्त्र पहना कर चुमावन का रश्म पूरा किया गया. चुमावन कर नवविवाहित वर के घर कन्या के घर से आए मखान, पान व मिष्ठान का वितरण समाज के लोगों के बीच किया गया. चुमावन के बाद वर द्वारा चांदी की कौड़ी से पचीसी खेली गई. इस दौरान महिलाओं का हास-परिहास का दौर चलता रहा. मैथिली गीत-संगीत की भी महफिल सजती रही. नवविवाहित के रागात्मक जीवन की शुरुआत है लोकपर्व कोजागरा नव विवाहित दंपति के जीवन में सुख-समृद्धि के लिए कोजागरा का पर्व बुधवार को धूमधाम से मनाया गया . कहा जाता है कि इस पर्व में मधुर और मखान का विशेष महत्व होता है. नवविवाहितों के घर पहली बार यह पूजा विशेष धूमधाम से की गई. कई जगहों पर सुख-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना भी की गई. इसे हर साल आश्विन पूर्णिमा की रात मनाया जाता है. शादी के पहले साल नवविवाहितों के घर लड़की पक्ष की ओर से मधुर, मखान, पान आदि आता है. साथ ही वर पक्ष के लोगों के लिए वस्त्र भी देने की परंपरा है. संध्या समय कोजागरा पूजन किया गया. जिसमें आसपास के लोगों को बुलाया गया था. पूजा उपरांत लोगों के बीच मधुर-मखान का वितरण किया गया. कई जगह कोजागरा के अवसर पर महालक्ष्मी की प्रतिमा भी स्थापित की गई. सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित हुए. कोजागरा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने आध्यात्म का दिया था संदेश आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कोजागरा मनाया गया..जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण शरद पूर्णिमा यानी कोजागरा के दिन ही महारास लीला कर समस्त भक्तों को आध्यात्मिक संदेश दिया था. वह दिवस आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी. जिसे शरद पूर्णिमा कहते हैं. तभी से वह महोत्सव के रूप में भी मनाए जाने लगा. मिथिला में इस दिन प्रदोष काल में मां लक्ष्मी का पूजन किया गया. सुपौल जिला के सुखपुर गांव निवासी आचार्य पंडित सुरेश झा ने कहा कि कोजागरा यानी शरद पूर्णिमा के दिन घर आंगन को पवित्रता से साफ-सफाई करके पूजन करना चाहिए. सायंकाल में घर के द्वार के आगे स्वस्तिक, रुद्र, स्कंद, नंदीश्वर, मुनि, श्री, लक्ष्मी, इंद्र, कुबेर का पूजन करना चाहिए. कहा कि शरद पूर्णिमा के दिन सायंकाल में लक्ष्मी जी की विशेष पूजन-अर्चन करने से माता लक्ष्मी स्वरूपा अन्नपूर्णा देवी की कृपा बनी रहती है. लोगों के बीच बांटे गये पान, मखान व बताशा दूल्हे के ससुराल से आए भाड़ को देखने के लिए पूरे दिन आस-पड़ोस के लोगों का तांता लगा रहा. रिश्तेदार और मेहमान भी जुटे रहे. चुमावन के बाद वर कुल देवता व देवी को प्रणाम कर श्रेष्टजनों से आशीर्वाद लिया. इसके बाद शुरु हुआ मखान व पान बांटने का दौर. यह क्रम देर रात तक चलता रहा. कोजागरा पर्व मुख्य रूप से ब्राह्मण एवं कर्ण कायस्थ परिवार में मनाये जाने का रिवाज है. आये लोगों के बीच मखाना-बताशा और पान बांटा गया.
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