Madhubani News.. बेनीपट्टी. प्रखंड मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर उच्चैठ स्थित पश्चिम उतर कोने पर अवस्थित मां छिन्नमस्तिका मंदीर अवस्थित है. जहां संस्कृत के महाकवि कालिदास को विद्वता का वरदान मिला था. कालिदास ने महामूर्ख माने जाने के कारण पत्नी विद्योतमा से प्रताडि़त होकर यहां शरण लिया था और उनके भक्तिभाव का परिणाम था कि मां भगवती साक्षात दर्शन देकर उनको शापमुक्त कीं थीं. जिसके फलस्वरूप महामूर्ख कालिया दुनिया में महाकवि कालिदास के नाम से विख्यात हुए थे. मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर आज भी कालीदास डीह जीवंत है, जहां नवरात्रा में तंत्र साधक अपनी साधना पूर्ण करते हैं. डीह स्थल से 5 सौ मीटर उत्तर दिशा की ओर मां छिन्नमस्तिका भगवती का अति प्राचीन मंदीर अवस्थित है. जिसे उच्चैठ भगवती के नाम से भी जाना जाता है और इसी मंदीर में मूर्ख कालिया को मां छिन्नमस्तिका से महाकवि कालिदास बनने का वरदान मिला था. पौराणिक तत्थों के अनुसार इसी देवी को प्रसन्न कर वर स्वरुप ज्ञान प्राप्त किया था और महामूर्ख कालिया से महाकवि कालीदास हुए थे. बताते चलें कि ढाई फीट विग्रह वाली इस देवी दुर्गा की प्रतिमा विखंडित है. प्रतिमा के दक्षिण भाग में ब्रहां की मूर्ति व बायें भाग में मत्स्य की आकृति उकेड़ी हुई प्रतीत होती है. भगवती की मूर्ति की निर्माण कला संभवतः गुप्त कालीन प्रतीत होती है. धर्मपरायणों के अनुसार उक्त मंदिर में श्री राम, लक्ष्मण, विष्वामित्र सहित कई महान संत भगवती के दर्शन करने आये थें. जनश्रुति के अनुसार यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. कहा जाता है कि राजा दक्ष के यज्ञ में आहुत हवन कुंड में कूदकर मां गौड़ी ने अपने शरीर को भष्म कर लिया था और भगवान शिव के तांडव नृत्य के दौरान उनके प्रकोप से बचाने के लिये मां के शव को भगवान विष्णु ने अपने त्रिशूल से 51 भागों में विभक्त कर दिया था. इसी क्रम में मां का मस्तिस्क कटे शरीर का शेष भाग यहां गिरा था. नवरात्र के अलावे अन्य दिनों में भी भारत के कई राज्यों व परोसी देश नेपाल भी श्रद्धालु आकर मां की पूजा अर्चना करते हैं. बताया जाता है कि उच्चैठ भगवती के दर से आज तक कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटा है. भगवती सब की मनोकामनाएं पूरी करतीं हैं. जिससे लोगों की आस्था परवान चढ़ती रही है. हमेशा पूरा उच्चैठ क्षेत्र सर्व मंगल मांग्लये शिवे सर्वाथ साधिके, शरण्ये त्रयंबिके नारायणि नमोस्तुते की ध्वनि और जय माता दी के नारों से गुंजायमान बना रहता है. शारदीय नवरात्र पूजनोत्सव गुरुवार से प्रारंभ हो चुका है और पहले दिन कलश स्थापन के साथ मां के पहले स्वरूप मां शैल पुत्री की पूजा हुई. 12 अक्टूबर को विजय दशमी के साथ शारदीय नवरात्र पूजनोत्सव का समापन होगा. पूजनोत्सव समारोह की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है. सप्तमी तिथि से यहां अप्रत्याशित भीड़ जुटती है. हर्षोल्ल्लास के साथ मेले का आयोजन किया जा रहा है. शांतिपूर्ण तरीके से पूजनोत्सव को संपन्न कराये जाने हेतु प्रशासन पूरी तरह सक्रिय है.
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