Madhubani News. मधुबनी. जिला मुख्यालय से तकरीबन 8 किलोमीटर की दूरी पर प्रखंड मुख्यालय रहिका में स्थित स्वयं अंकुरित मां रहिकेश्वरी भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करती है. भक्त यहां से कभी खाली हाथ नहीं लौटते. सालोभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. इनकी महिमा की गाथा दूर-दूर तक सुनाई देती है. कहा जाता है कि मां रहिकेश्वरी ने स्वयं रहिका गांव के एक शक्ति उपासक को स्वप्न आकर कहा था कि वह एक कुआं में निवास कर रही है. मां ने उन्हें कुआं से बाहर निकालकर पूजा के लिए स्थापित करने का आदेश दिया था. जब कुआं की खुदाई की गयी तो अष्टधातु की मां रहिकेश्वरी की प्रतिमा अवतरित हुई. कुआं से बाहर निकालकर उसके बगल में ही मां रहिकेश्वरी की स्थापना कर पूजा-पाठ शुरू की गयी. बाद में एक भव्य मंदिर का निर्माण कर मां रहिकेश्वरी की अष्टधातु से बनी प्रतिमा स्थापित की गयी. वर्षों से उनकी पूजा-अर्चना कर भक्त मनोवांछित फल प्राप्त करते आ रहे हैं. शारदीय नवरात्र में तो यहां की मनोरम छटा देखने दूर-दूर से यहां आकर अपनी आध्यात्मिक पिपासा को शांत करते हैं. मां रहिकेश्वरी के दरबार में सालोभर भजन-कीर्तन का सिलसिला जारी रहता है. भजन-कीर्तन में शामिल होकर भक्त पुण्य के भागी बनते हैं. यहां की पूजन पद्धति भी अन्य दुर्गा मंदिरों से अलग है. शारदीय नवरात्र में छह दिनों तक स्वयं अंकुरित मां रहिकेश्वरी की पूजा-अर्चना की जाती है. उसके बाद सप्तमी तिथि से नवदुर्गा की पूजा करने का विधान है. जिसे पूरी निष्ठा के साथ पूरी की जाती है. मंदिर के पुजारी पं. विनोद झा ने कहा कि मां रहिकेश्वरी भक्तों का सदा कल्याण करती है. इनकी आराधना कभी निष्फल नहीं होता है. जिसके कारण दूर-दूर से भक्त यहां आकर मां रहिकेश्वरी की आराधना करते हैं. उन्होंने कहा कि शारदीय नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथि को पूरे गांव के कुमारि व वटुक को भोजन कराया जाता है. जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है.
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