जिले में लिंगानुपात का स्तर हुआ नीचे कई राज्यों को पीछे छोड़ा पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत चिकित्सकों को दिया गया प्रशिक्षण मधुबनी . मानवता को कायम रखने के लिए सृष्टि में अन्य कारकों के साथ-साथ लिंगानुपात अर्थात पुरुषों के बराबर की संख्या में स्त्री की संख्या होना एक आवश्यक घटक है. कई ऐसे राज्य पिछले दशकों में इस गंभीर समस्या से जूझ चुके हैं. हालांकि इसमें सुधार के उपाय अपनाकर लगभग एक दशकों तक इस समस्या से जूझने के बाद आज उनकी स्थिति लिंगानुपात के मामले में एक दशक पूर्व के अपेक्षा बेहतर है. लगभग वही भयावह स्थिति वर्तमान में जिला की है. यहां लिंगानुपात घटकर मात्र 819 हो गयी है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में प्रत्येक जीवित जन्मे 1000 बालकों के विरुद्ध जीवित जन्मे बालिकाओं की संख्या 819 है. यह आंकड़ा अपने पैरों तले जमीन खिसकाने के लिए काफी है. विदित हो कि इस मामले को लेकर राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट डा. सरिता ने सिविल सर्जन डा. एस एन झा को जिले में संचालित अवैध अल्ट्रासाउंड केंद्रों की सुरक्षा एवं जांच के लिए प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया है. एसपीओ के निर्देश के आलोक में सिविल सर्जन की अध्यक्षता में शुक्रवार को जयनगर एवं बेनीपट्टी के तीन दर्जन से अधिक चिकित्सकों को प्रशिक्षण सेवानिवृत्त अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डा. आरके सिंह द्वारा दिया गया. सिविल सर्जन डा. एसएन झा ने कहा कि चिकित्सकों ने अपने क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित अल्ट्रासाउंड केंद्रों की सूचना एवं पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत कार्रवाई करने की आवश्यक जानकारी साझा किया है. ताकि एक्ट का अनुपालन नियम के अनुकूल किया जा सके. 2021-22 की तुलना में लिंगानुपात में काफी कमी सिविल सर्जन डा एस एन झा ने कहा कि जिले में वर्ष 2021-22 में प्रत्येक 1000 जिवित लड़के की तुलना में लड़कियों की संख्या 944 था. यह आंकड़ा वर्ष 2023-24 में प्रत्येक 1000 जिवित लड़के की तुलना में लड़कियों की संख्या घटकर 819 रह गयी है. हालांकि वर्ष 2022-23 में भी प्रत्येक 1000 जीवित लड़को की तुलना में 815 था. वहीं राज्य के आंकड़े की बात करें तो वर्ष 2021-22 में 1000 लड़कों की तुलना में 914 लड़की, वर्ष 2022-23 में 1000 की तुलना में 894 एवं वर्ष 2023-24 में 1000 की तुलना में 882 लड़कियों की संख्या दर्ज की गयी है. आंकड़े पर गौर करें तो जिला की स्थिति काफी भयावह है. सरकार जहां एक ओर बेटियों को बचाने की कवायद में लगी है वहीं बेटियों का लिंगानुपात चिंताजनक स्तर तक गिर गया है. राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी ने सीएस को दिए निर्देश में चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि जिला समुचित प्राधिकार द्वारा लिंगानुपात में सुधार लाने के क्या क्या गतिविधियां की गई है. साथ ही इस चिंताजनक लिंगानुपात के स्तर में सुधार लाने के लिए उनके आगे की कार्य योजना क्या है. सिविल सर्जन सह जिला प्राधिकार को इस आशय की चिंता कहीं ना कहीं इस घटते लिंगानुपात के पीछे अल्ट्रासाउंड केंद्रों की भूमिका होने की ओर भी इशारा करती है और ऐसा संभव भी है. विदित हो कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट में ऐसे सभी प्रावधान किए गए हैं, जिससे अल्ट्रासाउंड केंद्रों द्वारा गर्भस्थ शिशु की लिंग जांच नहीं किया जा सके. परंतु चिंताजनक स्तर पर पहुंचा हुआ लिंगानुपात इस कानून के प्रभावी अनुपालन होने के बिंदु पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहा है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा हुआ फेल सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देकर भले ही इससे संबंधित योजनाओं को लागू कर अपनी पीठ थपथपा ने में मशगूल है. लेकिन धरातल पर स्थिति बेहद गंभीर है. आंकड़े के अनुसार जिला लड़कों व लड़कियों की जन्म के समय लिंगानुपात दर में गिरावट के मामले में गुजरात, हरियाणा, पंजाब व राजस्थान जैसे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है. जिले मे 1000 लड़कों के मुकाबले महज 819 लड़कियां जन्म ले रही हैं. वर्ष 2021-22 में 944 थी. लेकिन बीते तीन साल में साल के दौरान जन्म के समय लिंगानुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है. मौजूदा स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने के बाद होने वाले गर्भपात के मामलों के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करना जरूरी है. जिला मे खतरनाक स्तर पर पहुंचे लिंगानुपात के बिंदु पर सिविल सर्जन डॉ. एसएन झा ने कहा कि यह मामला जिले के लिए काफी चिंता का विषय है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग जल्द ही समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाएगा. उन्होंने कहा कि पूर्व में भी धावा दल गठित कर अल्ट्रासाउंड संचालकों सहित गैर निबंधित नर्सिंग होम पर छापेमारी कर कार्रवाई की गई है. इसे रूटीन वर्क में लाना अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि छापेमारी दल का गठन कर लिया गया है. जिले में बिना निबंधन का एक भी अल्ट्रासाउंड का संचालन नहीं होने दिया जाएगा.
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