मधुबनी. वर्ष 2025 तक देश को पूर्णत: टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित है. वहीं राज्य में वर्ष 2024 के अंत तक टीबी मुक्त भारत अभियान के उद्देश्य को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए विभिन्न स्तरों पर जरूरी प्रयास किये जा रहे हैं. इसी कड़ी में टीबी को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा मरीजों के परिवार को आइसोनियाजेड दवा उपलब्ध कराई जा रही है. ताकि मरीजों के परिवार के सदस्यों में संक्रमण की संभावना नहीं रहे. जिस घर में टीबी के मरीज पाए जाते हैं व मरीज के संपर्क में आनेवाले लोगों को टीबी से सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए आइसोनियाजेड की दवा दी जाएगी. 5 साल से छोटे बच्चों को आईएनएच 100 एमजी एवं 5 साल से ऊपर के लोगों को आईएनएच 300 एमजी की दवा लगातार छह माह तक दिया जा रहा है, ताकि उन्हें भविष्य में टीबी से सुरक्षित रखा जा सके. दवा का सेवन मरीजों सहित परिवार के अन्य सदस्य कर रहे हैं, या नहीं इसके लिए सभी प्रखंडों में एसटीएस को गृह भ्रमण करने की जिम्मेदारी दी गई है.
एक टीबी मरीज 15 लोगों को कर सकता है संक्रमित
संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. जीएम ठाकुर ने कहा कि एक टीबी मरीज 15 अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है. ऐसे में लक्षण दिखते ही टीबी मरीज की जांच व इलाज किया जाता है. टीबी की दवा बीच में छोड़ने वाले लोगों में जब ड्रग रेसिस्टेंट पैदा हो जाता है तो इलाज काफी लंबा हो जाता है. इसलिए टीबी की दवा का सेवन नियमित रूप से मरीजों को करनी चाहिए.
बच्चों को इसकी 100 एमजी की दी जाती है खुराक
डीपीसी पंकज कुमार ने कहा कि टीबी मरीजों के परिवार के बच्चों में संक्रमण की संभावना अधिक रहती है. इसलिए बच्चों को वजन के अनुसार आइसोनियाजेड दवा का सेवन कराया जाता है. अमूमन बच्चों को इसकी 100 एमजी की खुराक दी जाती है. उन्होंने बताया कि मरीजों के परिवार के लोगों को आइसोनियाजेड का सेवन करना बहुत जरूरी है. इस दवा के सेवन से संक्रमित होने की संभावना नहीं होती है. इसकी नियमित निगरानी बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि कई मामलों में देखा गया है कि मरीज व उनके परिजन बीच में ही दवा छोड़ देते हैं. इससे बीमारी गंभीर हो जाती है.
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