मधुबनी. आई हमर थिक पावनि बहिना हमरा अंगना अबिह”””””””” हे, सखी फुल लोढ़”””””””” चलू फुलवरिया सीता के संग सहेलिया, सखि कचि झारि क”””””””” बान्हू पिया सिंदूर लयला हय, सोहागक सूर लयला है जैसे गीतों से मिथिला का हर घर-आंगन वन-प्रांतर गूंज रहा है. ये गीत सूचना दे रही है कि मिथिला का प्रसिद्ध लोकपर्व मधुश्रावणी का पर्व नवविवहिताओं के सिर चढ़कर बोलने लगा है. शाम होते ही पायल की झंकार व चूड़ियों की खनक के साथ नवविवाहिताओं के कंठ से निकल रही मधुश्रावणी संबंधी गीत वातावरण में मिसरी घोल रही है. जिसकी आभा से माहौल उत्सवी हो जाता है. शाम होते ही नवविहिताएं बाग व कलमबाग में फूल व पत्ते तोड़कर डाला में रखती जाती है. फिर निकट के मंदिर परिसर व सार्वजनिक स्थलों पर तोड़े गये फूल व पत्ती को डाला में सजाकर शृंगारिक व भक्ति गीत गाने लगती है. शिव, पार्वती, नागदेवता संबंधी गीत गाकर अपने-अपने घर लौट जाती है. लोढ़े गये फूल, पत्ती से अगले दिन शिव, पार्वती, नागदेवता की आराधना कर निष्ठा व श्रद्धापूर्वक मधुश्रावणी की कथा सुनती है. मधुश्रावणी कथा के समापन के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती है. मधुश्रावणी पर्व को लेकर नवविवाहिताओं में गजब का उत्साह दिख रहा है. सुबह से शाम तक नवविवाहिताएं पर्व की तैयारी, पूजन-अर्चन व फुललोढ़ी में जुटी दिख रही है. वहीं पर्व को लेकर बाजारों में लोग बांस से बने बर्तन, कपड़े सहित अन्य सामानों की खरीदारी शुरू कर दी है. जिसके कारण बांस से बने वर्तनों के व्यवसाय से जुड़े लोगों की चांदी कट रही है. चहुंओर उत्साह व उमंग का वातावरण दिख रहा है. माहौल पूरी तरह उत्सवी हो गया है.
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