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Madhubani News. बेटे की चाहत में बढ़ रही जनसंख्या, लिंगानुपात में गिरावट चिंताजनक

एक महिला अपने गर्भधारण अवधि यानी 15 से 49 साल की आयु में औसतन जितने बच्चे को जन्म देती है उसे कुल प्रजनन दर कहा जाता है. जिले में कुल प्रजनन दर में कमी आई है.

Madhubani News. मधुबनी. एक महिला अपने गर्भधारण अवधि यानी 15 से 49 साल की आयु में औसतन जितने बच्चे को जन्म देती है उसे कुल प्रजनन दर कहा जाता है. जिले में कुल प्रजनन दर में कमी आई है. लेकिन बेटों की चाहत में प्रजनन दर में तो कमी आइ है लेकिन लिंगानुपात में गिरावट चिंता का विषय है. एनएफएचएस 5 की रिपोर्ट में हुआ खुलासा चौकाने वाला है. जिले में प्रत्येक जीवित जन्मे 1 हजार बालकों पर जीवित जन्मे बालिकाओं की संख्या 819 है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस)-3 में राज्य की कुल प्रजनन दर 5 थी, जो एनएफएचएस -4 में घटकर 4.3 हुई. वहीं एनएफएचएस 5 के जिले की वर्तमान कुल प्रजनन दर लगभग 4 है. जिले में अनियोजित गर्भधारण की घटना काफ़ी सामान्य है. एनएफएचएस -5 की रिपोर्ट के अनुसार यदि अनियोजित गर्भधारण को कम करने में अधिक सफलता मिलती तो जिले का कुल प्रजनन दर 4.3 की जगह 4 होता. वहीं, दूसरी तरफ जिला में पुत्री संतान की तुलना में पुत्र संतान की चाहत अधिक है. यह भी जिला के कुल प्रजनन दर के लिए एक बड़ी चुनौती है. अगर जिले के आंकड़े को देखा जाए तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5(2019-20) के आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में जन्मे बच्चों के लिए जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिला) की संख्या 815 हो गई है जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2014- 15 में 954 थी. बेटे की चाहत अगले संतान जन्म को करती है प्रभावित एनएफएचएस 5 की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि महिला के लिए अधिक संतान जन्म की इच्छा इस बात पर निर्भर करती है कि वर्तमान में उन्हें कितना पुत्र है. जिले में 70-75 फीसदी महिला अगली संतान नहीं चाहती है जिन्हें 2 बेटा है. एनएफएचएस 4 की तुलना में ऐसी महिलाओं में 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुयी है. वहीं 65 फीसदी महिलाएं अगली संतान नहीं चाहती हैं, जिन्हें 1 बेटा है. इसमें भी एनएफएचएस-4 की तुलना में 7-8 फीसदी की बढ़ोतरी हुयी है. जबकि 70 फीसदी महिलाएं अभी भी अगले संतान की चाह रखती है जिन्हें सिर्फ 2 बेटी है. एनएफएचएस-4 की तुलना में भी इसमें 3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुयी है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक रखती हैं बेटे की चाहत बिहार में लोगों का पुत्र संतान के प्रति अधिक लगाव है. यही कारण है कि 40 फीसदी महिला एवं 31 फीसदी पुरुष बेटी की तुलना में अधिक बेटा चाहते हैं. जिले में 85 फीसदी महिलाएं कम से कम एक बेटा चाहती हैं. वहीं, 75-79 फीसदी पुरुष कम से कम एक बेटा चाहते हैं. जिले की कुल प्रजनन दर में कमी करने में यह सोच भी एक बाधक है. अधिक पुत्र संतान की चाहत प्रजनन दर कम करने में बाधक कुल प्रजनन दर अनियोजित गर्भधारण एवं अधिक पुत्र संतान की चाहत से प्रभावित हो सकता है. मानवता को कायम रखने के लिए सृष्टि में अन्य कारकों के साथ-साथ लिंगानुपात अर्थात पुरुषों के बराबर की संख्या में स्त्री की संख्या होना एक आवश्यक घटक है. कई ऐसे राज्य विगत दशकों में इस गंभीर समस्या से जूझ चुके हैं. हालांकि इसमें सुधार के उपायों को अपनाकर लगभग एक दशकों तक इस समस्या से जूझने के बाद आज उनकी स्थिति लिंगानुपात के मामले में एक दशक पूर्व के वनिस्पत बेहतर है. लगभग वही भयावह स्थिति वर्तमान में जिला की है. जहां लिंगानुपात घटकर राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे 5 के वित्तीय वर्ष 19-20 में किए गए सर्वे के अनुसार मात्र 805 है. इसका अर्थ है कि स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार प्रत्येक जीवित जन्मे 1000 बालकों के विरुद्ध जीवित जन्मे बालिकाओं की संख्या 805 है. हालांकि गत दिनों स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ा अपने आप में पैरों तले जमीन खिसकाने के लिए काफी है. अगर राज्य की बात करें तो वर्ष 2021-22 में प्रति 1000 जनम लिया जिवित लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 914, वर्ष 2022-23 में 1000 लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 894 एवं वर्ष 2023-24 में 1000 लड़कों की तुलना में 882 लड़कियां हैं. जिले का आंकड़ा काफी चौकाने बाला है. जिले में प्रति 1000 जिवित जन्मे लड़को की तुलना में वर्ष 2021-22 लड़कियों की संख्या 944, वर्ष 2022-23 में 1000 लड़को की तुलना में लड़कियों की संख्या 815 एक वर्ष 2023-24 मे 1000 लड़का की तुलना में लड़कियों की संख्या 819 है. उल्लेखनीय है कि इस मामले को लेकर डीएम अरविंद कुमार वर्मा ने स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक में सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को अपने अपने क्षेत्रों में चलाए जा रहे अवैध अल्ट्रासाउंड एक नर्सिंग होम पर शिकंजा कसने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही जिला सतर पर भी धावा दल गठित किया गया है. इसमें प्रशासनिक पदाधिकारी सहित जिला स्तरीय चिकित्सा पदाधिकारी को शामिल किया गया है. डीएम ने रजिस्टर्ड अल्ट्रासाउंड, नर्सिंग होम, एवं जांच घरो का निरीक्षण करने का निर्देश दिया है, ताकि संबंधित संस्थान मानक के अनुरूप संचालित है, या नहीं इसका पता लगाया जा सके.

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