Madhubani News : संग्रहालय में संजोए गए धरोहरों से हमें अपनी समृद्ध अतीत की मिलती है जानकारी
कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के मिथिला ललित संग्रहालय, सौराठ में 'शिक्षा का केंद्र संग्रहालय' विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी हुई.
मधुबनी. कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के मिथिला ललित संग्रहालय, सौराठ में ”शिक्षा का केंद्र संग्रहालय” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी हुई. अध्यक्षता डॉ उदय नारायण तिवारी, पूर्व विभागाध्यक्ष प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, लनामि विश्वविद्यालय, दरभंगा ने ने किया. मुख्य वक्ता प्रो. नरेंद्र नारायण सिंह “निराला “, पूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, राम कृष्ण महाविद्यालय, वक्ता मुरारी कुमार झा, पुरातत्त्व विषयक शोधार्थी, प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, ल. ना. मि. विश्वविद्यालय, दरभंगा थे. संग्रहालयाध्यक्ष डा शंकर सुमन संग्रहालय का क्रमिक इतिहास एवं मानव जीवन में इसकी उपयोगिता को रेखांकित करते हुए कहा कि 1784 . में सर विलियम जॉन्स ने एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना किया, जो संग्रहालय आंदोलन की शुरुआत थी. 1814 में डॉ बालिच ने सोसायटी के लिए संग्रहालय के लिए जोड़ दिया. यही संग्रहालय भारतीय संग्रहालय कलकत्ता के नाम से प्रसिद्ध हुआ. संग्रहालय में संजोए गए धरोहरों के द्वारा हमें अपनी समृद्ध अतीत के बारे में जानकारी मिलती है. श्री झा ने कहा कि शिक्षा के लिए जिज्ञासु होना सबसे आवश्यक है. संग्रहालय आने से हम सीधे तौर पर अपने प्राचीन एवं पूर्व कालिक सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, कृषि, पशुपालन, पर्व त्यौहार, खानपान, प्रकृति आदि विषयों के बारे में जानते हैं. संग्रहालय निर्माण के पूर्व हमारे देश में दृश्य शिक्षा के रुप में तीर्थाटन था, जो पारंपरिक रुप से आज तक चली आ रही है. इसी का आधुनिक स्वरुप पर्यटन है. कला संस्कृति विभाग को क्षेत्रीय स्तर पर सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों को सुपुर्द करने के लिये लोगों को जागरूक करना चाहिये. वहीं, प्रो. निराला ने कहा कि धार्मिक महत्त्व को देखते हुए, जो स्थान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि का है; वही स्थान शिक्षा के क्षेत्र में संग्रहालय का है. किसी शहर में जाने के बाद सबसे आवश्यक होता है, वहां के संग्रहालयों का अवलोकन करना. हम अपनी भौतिक संस्कृति को संग्रहालयों में संग्रहित करते हैं. संग्रहालय न केवल शिक्षा, बल्कि भविष्य एवं सांस्कृतिक संरक्षण का केंद्र भी है. इस दौरान जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी नीतीश कुमार ने विद्यार्थियों के समग्र विकास हेतु संग्रहालय के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि संग्रहालय हमें अपने अतीत को वर्तमान से जोड़ते हुए भविष्य के लिए सजग करती है. आप इसके माध्यम से खुद को अपनी सांस्कृतिक विविधताओं से अवगत करा सकते हैं. अभी मिथिला ललित संग्रहालय का बुनियादी ढांचा तैयार हो चुका है, अब इसमें मिथिला चित्रकला संस्थान की ओर से प्रदर्शित करना है. प्रो. तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति का संरक्षक संग्रहालय है. कोई भी राष्ट्र वा क्षेत्र का अस्तित्व संस्कृति के बिना संभव नहीं है. संग्रहालय शिक्षा का मंदिर है. मिथिला परिक्षेत्र की विविधताओं का विस्तृत अध्ययन होना है. जिसके लिए संग्रहालय मुख्य संस्थान के रुप में है. इस प्रकार की संगोष्ठी नियमित रूप से होती रहनी चाहिए. धन्यवाद ज्ञापन डॉ रानी झा ने और मंच संचालन संग्रहालयाध्यक्ष डा शंकर सुमन ने किया. इस मौके पर पद्मश्री बौआ देवी, पद्मश्री शिवन पासवान, प्रतीक प्रभाकर, आनंद मोहन झा, संजय कुमार जयसवाल, रूप कुमारी, प्रकाश कुमार मंडल सहित माध्यमिक विद्यालय, सौराठ एवं मिथिला चित्रकला संस्थान के सैकड़ों अध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं अध्येताएं मौजूद थे.
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