टीवी उन्मूलन: दवाओं की कमी झेल रहे टीबी के मरीज
सरकार द्वारा 2025 तक टीबी रोग के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. वहीं जिले में टीबी रोग की रोकथाम के लिए दवा की कमी का संकट मरीज झेल रहे हैं.
मधुबनी. सरकार द्वारा 2025 तक टीबी रोग के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. वहीं जिले में टीबी रोग की रोकथाम के लिए दवा की कमी का संकट मरीज झेल रहे हैं. जिला यक्ष्मा विभाग में कुछ दिनों की दवा का स्टॉक ही बचा है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से संभावित टीबी रोगियों की जांच से लेकर इलाज तक की पर्याप्त व्यवस्था है. लेकिन प्रथम श्रेणी के टीबी रोगियों के लिए 4- एफडी एवं 3- एफडीओ नामक दवा समाप्त हो गया है. वहीं कुछ खत्म होने के कगार पर है. जिला कार्यक्रम समन्वयक पंकज कुमार ने कहा है कि दवा का स्टॉक सीमित है. जिला यक्ष्मा विभाग के आंकड़े के अनुसार जिले में फर्स्ट लाइन के 3868 एवं एमडीआर के 168 मरीज का इलाज चल रहा है. दवा समाप्त हो जाने के कारण टीवी मरीज बाजार में महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं. जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. जीएम ठाकुर का कहना है कि टीबी रोग की पहचान के लिए जांच का दायरा बढ़ाया गया है. लक्षण पाए जाने पर टीबी रोग की जांच माइक्रोस्कोपिक और सीबी नेट जैसी अत्याधुनिक मशीनों से होती है. जांच में पॉजिटिव रिपोर्ट मिलने पर शुरुआती दवा शुरू कर दी जाती है. इसके साथ ही मरीजों को निक्ष्य पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान प्रतिमाह 500 रुपए बैंक खाते में भेज दिया जाता है. उन्होंने कहा कि जिले में सभी प्रखंडों में टीबी के संभावित रोगियों के बलगम जांच की सुविधा उपलब्ध है. उन्होंने बताया कि एमडीआर मरीजों को कई प्रकार की दवा खिलाई जाती है. डीपीसी पंकज कुमार ने कहा कि दवा का खेप आने वाला है. दो दिन पूर्व कुछ दवा आया भी है. उन्होंने कहा कि पूर्व में दवा का स्टॉक पर्याप्त मात्रा में होता था. इसके कारण मरीज को दो-तीन महीने की दवा एक बार में ही दे दिया जाता था. वर्तमान समय में दवा की थोड़ी सी किल्लत जिला ही नहीं बल्कि राज्य स्तर पर भी है. उन्होंने कहा कि आने बाले दिन में जिला यक्ष्मा विभाग को पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध हो जाएगा. मरीज को घबराने की जरूरत नहीं है. सरकारी अस्पताल में ही कराएं टीबी का इलाज़ सिविल सर्जन डॉ. नरेश कुमार भीमसारिया ने कहा कि जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी की इलाज से लेकर जांच तक की व्यवस्था निःशुल्क उपलब्ध है. सबसे खास बात यह है कि दवा के साथ टीबी के मरीज को पौष्टिक आहार के लिए पांच सौ रुपये प्रतिमाह सहायता राशि भी दी जाती है. इसके बावजूद देखा जा रहा है कि कुछ लोग इलाज कराने के लिए बड़े-बड़े निजी अस्पतालों या फिर बड़े शहर की ओर रुख कर जाते हैं. हालांकि उसे फिर वहां से निराश होकर संबंधित जिले के सरकारी अस्पतालों की शरण में ही आना पड़ता है. उन्होंने कहा कि जैसे ही टीबी के बारे में पता चलता है तो सबसे पहले नजदीकी सरकारी अस्पताल जाकर जांच करानी चाहिए. जिले में टीबी के इलाज के साथ मुकम्मल निगरानी और अनुश्रवण की व्यवस्था भी की गई है.
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