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जीएनएम व एएनएम को परिवार नियोजन के लिए दिया प्रशिक्षण

सदर अस्पताल में जिले में परिवार नियोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से गुरुवार को पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया

मधुबनी. सदर अस्पताल में जिले में परिवार नियोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से गुरुवार को पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया. प्रशिक्षण 30 जून तक दिया जाएगा. प्रशिक्षण डॉ. नीतू व लेबर रूम इंचार्ज माधुरी कुमारी द्वारा दिया गया. प्रशिक्षण में एएनएम व जीएनएम को परिवार नियोजन कार्यक्रम संबंधी जानकारी दी गई. दरभंगा प्रमंडल के क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक नजमुल होदा ने कहा कि गर्भपात के बाद प्रत्येक महिला को उपलब्ध परिवार नियोजन साधनों में उसकी इच्छानुसार लगभग सभी प्रकार के साधन प्रदान किया जा सकता है. कुछ साधनों के उपयोग में प्रशिक्षित सेवा प्रदाता की विशेष तकनीकी सहायता की आवश्यकता होती है. आइयूसीडी व पीपीआइयूसीडी प्रशिक्षित सेवा प्रदाता ही लगा सकता है. इसके स्टाफ नर्स का उन्मुखीकरण करना आवश्यक है. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. नीतू ने कहा कि प्रशिक्षण में शामिल कर्मियों को परिवार नियोजन के लिए अपनाए जाने वाली विधि पीपीआइयूसीडी की जानकारी दी गई. उन्होंने बताया कि परिवार नियोजन के लिए आइयूसीडी सबसे उपयुक्त माध्यम है. चिकित्सक व कर्मी महिलाओं को दो बच्चों के बीच दो या दो से अधिक वर्ष के अंतर के लिए आइयूसीडी का प्रयोग करने की जानकारी दें. प्रशिक्षण में कर्मियों को इससे होने वाले लाभ व लगाने के दौराने बरती जाने वाली सावधानी के बारे में भी बताया गया. प्रसव कक्ष इंचार्ज माधुरी कुमारी ने कहा कि आईयूसीडी लगाने के बाद महिलाओं के शरीर पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है. महिलाएं ऑपरेशन के नाम पर बंध्याकरण से डरती हैं. उनके लिए आइयूसीडी बेहतर विकल्प है. उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के बाद सभी एएनएम व जीएनएम अपने-अपने स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर महिलाओं को जागरूक करेंगी. प्रसव के 48 घंटे के अंदर पीपीआइयूसीडी, गर्भ समापन के बाद पीएआईयूसीडी व कभी भी आइयूसीडी को किसी सरकारी अस्पताल में लगवाया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से जहां अनचाहे गर्भ से बचा जा सकता है तो इसके इस्तेमाल से सेहत को कोई नुकसान नहीं है. पोस्टपार्टम इंट्रा यूटाराइन कांट्रासेप्टिव डिवाइस यह उस गर्भ निरोधक विधि का नाम है. जिसके जरिए बच्चों में सुरक्षित अंतर रखने में मदद मिलती है. प्रसव के तुरंत बाद अपनाई जाने वाली यह विधि सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध है. प्रसव के बाद अस्पताल से छ़ुट्टी मिलने से पहले ही यह डिवाइस लगवाई जा सकती है. इसके अलावे माहवारी या गर्भपात के बाद भी डाक्टर की सलाह से इसे लगवाया जा सकता है. एक बार लगवाने के बाद इसका असर पांच से दस वर्षों तक रहता है. यह बच्चों में अंतर रखने की लंबी अवधि की एक विधि है. इसमें गर्भाशय में एक छोटा उपकरण लगाया जाता है. यह दो प्रकार के होता है. कॉपर आईयूसीडी 380 ए, इसका असर दस वर्षों तक रहता है. दूसरा कॉपर आइयूसीडी 375 इसका असर पांच वर्षों तक रहता है. ध्यान रहे केवल प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी द्वारा ही एक छोटी सी जांच के बाद इसे लगवाया जा सकता है. दंपति को जब बच्चे की चाह हो, अस्पताल जाकर इसे निकलवा सकती हैं. प्रशिक्षण के मौके पर क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक नजमुल होदा, क्षेत्रीय लेखा प्रबंधक विकास रोशन, प्रसव कक्ष इंचार्ज माधुरी कुमारी साहित एएनएम व जीएनएम उपस्थित थीं.

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