मिथिला का प्रसिद्ध लोकपर्व मधुश्रावणी आज से, इस साल 44 दिनों तक नवविवाहिता करेंगी नाग पूजा
यह पर्व नाग पंचमी यानी सात जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगा. पर्व के दौरान नव विवाहिताएं माता गौरी एवं नागदेवता, सावित्री-सत्यवान, शंकर-पार्वती, राम-सीता, राधा-कृष्ण व अन्य देवी-देवताओं की कथा सुनेंगी.
मधुबनी. सावन माह आते ही नवविवाहिताएं मिथिला के प्रसिद्ध लोकपर्व मधुश्रावणी की तैयारी शुरू कर देती हैं. पति के दीर्घ जीवन की कामना के लिए मिथिला में मनाया जाने वाला मधुश्रावणी पर्व पूरे एक पक्ष अर्थात करीब 15 दिनों तक चलता है. इस बार एक महीने का मलमास होने के कारण यह पर्व पूरे डेढ़ माह तक चलेगा. यह पर्व नाग पंचमी यानी सात जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगा. पर्व के दौरान नव विवाहिताएं माता गौरी एवं नागदेवता, सावित्री-सत्यवान, शंकर-पार्वती, राम-सीता, राधा-कृष्ण व अन्य देवी-देवताओं की कथा सुनेंगी.
44 दिनों तक नव विवाहिता करेंगी फूललोढ़ी
नव विवाहिताओं की टोली सावन की रिमझिम फुहारों के बीच गुरुवार की शाम से ही फूललोढ़ी के लिए निकल पड़ी. मधुश्रावणी में बासी फूल से पूजा का विधान है. शाम में नव विवाहिता जो फूल लोढ़कर लायेगी उन्हीं फूल से अगले दिन आदी शक्ति गौरी और नाग देवता की पूजा करेंगी. मधुश्रावणी पूजा में मैना पत्ता व पान के साथ लावा, दूध, सिंदूर, पिठार, काजल, सफेद, लाल व पीले फूल की प्रमुखता होती है. परंपरा के अनुसार नव विवाहिताएं यह पर्व अपने मायके में मनाती हैं. वहीं पर्व के दौरान ससुराल से भेजे गये वस्त्र, भोजन व पूजा सामग्री का उपयोग करती हैं.
मिथिला में यह पर्व मनाने की परंपरा है
मधुश्रावणी की पूजा हर साल सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से प्रारंभ होती है और समापन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है. इसकी शुरुआत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है. कारण उस दिन से ही नव विवाहिताएं अरबा-अरवाइन खाती हैं. फूल लोढ़ना शुरू कर देती हैं. 18 जुलाई से 16 अगस्त तक पूरे 30 दिन तक मलमास रहने के कारण इस बार नव विवाहिताएं 44 दिनों तक फूललोढ़ी करेगी. प्राचीन काल से ही मिथिला में यह पर्व मनाने की परंपरा है.
सेंधा नमक का करेंगी सेवन
मधुश्रावणी पर्व के दौरान नव विवाहिताओं के लिए नमक खाना वर्जित रहता है. इस बार मधुश्रावणी एक पक्ष का न होकर पूरे डेढ़ मास का है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर मलमास अवधि में नव विवाहिताएं सेंधा नमक का उपयोग कर सकती है. पूजा की अन्य विधि व फूल लोढ़ी मलमास अवधि में भी जारी रहेगा.
लोकगीतों से गूंजीं गलियां
मधुश्राावणी पर्व के दौरान नव विवाहिताएं दिन में फलाहार एवं शाम में ससुराल से आये अन्न से तैयार अरवा भोजन ग्रहण करेंगी. शाम ढलते ही सोलह शृंगार कर सहेलियों के संग लोकगीत गाती फूल पत्ती और बेलपत्र तोड़ने निकलीं. इस दौरान सहेलियों संग अठखेलियां करतीं व लोकगीत गाती नव विवाहिताओं की टोली आकर्षण का केंद्र बनी रही. फूल लोढ़ने के बाद नव विवाहिता देवालय में रूकीं. जहां लोढ़े गये फूलों से अगले दिन पूजा के लिए डाला सजाकर वापस घर लौटीं. सांस्कृतिक, धार्मिक, परंपरागत सदभाव व सम्मान के प्रतीक के रूप में आज भी मिथिला क्षेत्र में यह लोकपर्व जीवंत है.