14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मधुश्रावणी व्रत आज से शुरू, मिथिला की नवविवाहिताएं 14 दिनों तक करेंगी शिव, पार्वती और नागदेवता की पूजा

Madhushravani festival: मधुश्रावणी पर्व जीवन में सिर्फ एक बार शादी के पहले सावन में मनाया जाता है. यह व्रत नवविवाहिताएं करती हैं. नमक के बिना 14 दिन भोजन ग्रहण करती हैं. इस व्रत में अनाज, मीठा भोजन खाया जाता है. व्रत के पहले दिन फलाहार किया जाता है.

पटना. मिथिला की नवविवाहिताओं का मुख्य पर्व मधुश्रावणी सोमवार व पंचमी तिथि से शुरू हो गया. इस पर्व को नवविवाहिताएं अपने मायके में मनाती हैं. इस व्रत में पत्नी अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है. इसमें विशेष पूजा गौरी शंकर की होती है. सावन का महीना आते ही मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगती हैं. मधुश्रावणी की तैयारियों में सभी शादी-शुदा महिलाएं जुट जाती हैं. यह त्योहार नव विवाहिताएं पूरी निष्ठा के साथ दुल्हन के रूप में सज-धज कर मनाती हैं. शादी के पहले साल के सावन महीने में नव विवाहिताएं मधुश्रावणी का व्रत करती हैं. सावन माह के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से इस व्रत की शुरुआत होती है.

नवविवाहिताएं 14 दिनों तक बिना नमक के करती हैं भोजन

मधुश्रावणी पर्व जीवन में सिर्फ एक बार शादी के पहले सावन में मनाया जाता है. यह व्रत नवविवाहिताएं करती हैं. नमक के बिना 14 दिन भोजन ग्रहण करती हैं. इस व्रत में अनाज, मीठा भोजन खाया जाता है. व्रत के पहले दिन फलाहार किया जाता है. यह पूजा लगातार 14 दिनों तक चलती है. इन दिनों सुहागन व्रत रखकर मिट्टी और गोबर से बने विषहारा और गौरीशंकर की विशेष पूजा कर कथा सुनती हैं. कथा की शुरुआत विषहारा के जन्म और राजा श्रीकर से होती है. मधु श्रावणी व्रत के अंतिम दिन टेमी दागने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है.

मधुश्रावणी व्रत का महत्व

सावन मास में भगवान शिव और माता पार्वती से संबंधित मधुश्रावणी त्योहार मनाया जाता है. सावन मधुश्रावणी मिथिलांचल में बहुत धूमधाम से मनायी जाती है. इस दौरान माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. कई तरह की कहानियां और कथाए बुजुर्गों द्वारा सुनायी जाती हैं. पंडित संजीत मिश्रा बताते हैं कि इस पूजा की कथा व्रती अपने पति के साथ यदि सुनती है, तो इसे और अच्छा माना गया है.

Also Read: आरती शिवजी की: सावन सोमवार को शिव पूजा के बाद पढ़ें ओम जय शिव ओंकारा…समेत शंकर जी की अन्य आरती
जानें पूजा विधि

पंचमी तिथि से एक दिन पूर्व ही नवविवाहित महिला फल, फूल पत्ते तोड़ती है. इसे फूल लोढ़ी कहा जाता है. इसके बाद पंचमी तिथि को उसी बासी फूल से पूजा करती हैं. कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती हैं. पूजा स्थान पर रंगोली बनाई जाती है. फिर नाग नागिन, विषहारा पर फूल पत्ते चढ़ाकर पूजा करती हैं. महिलाएं गीत गाती हैं. कथा पढ़ती और सुनती हैं. पूजा शुरू होने से पहले नाग-नागिन और उनके पांच बच्चों को मिट्टी से बनाया जाता है. हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा शुरू की जाती है.

सोलह श्रृंगार करके फूल तोड़ने जाती हैं नवविवाहिताएं

14 दिनों तक नवविवाहिताएं सोलह श्रृंगार करके शाम में फूल और पत्ते तोड़ने जाती हैं. इस त्योहार में प्रकृति की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है. मिट्टी और हरियाली से जुड़ी इस पूजा के पीछे पति की लंबी आयु की कामना होती है. इस पर्व के दौरान मैथिली लोकगीत की आवाज हर नवविवाहिताओं के घरों से सुनाई देती है. हर शाम महिलाएं आरती करती हैं और गीत गाती हैं. यह त्योहार नव विवाहिताएं सज-धज कर मनाती हैं. पूजा के आखिरी दिन पति का शामिल होना जरूरी होता है. पूजा के आखिरी दिन ससुराल से बुजुर्ग नये कपड़े, मिठाई, फल आदि के साथ पहुंचते हैं. सफल जीवन का आशीर्वाद देते हैं.

ससुराल से आये अनाज से तैयार होता है भोजन

यह व्रत नवविवाहिताएं अपने मायके में मनाती हैं. इसमें वह नमक नहीं खाती. जमीन पर सोती है. रात में वह ससुराल से आये अनाज से भोजन करती हैं. पूजा के लिए नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमाएं बनायी जाती हैं. फिर इनका पूजन फूलों, मिठाइयों और फल को अर्पित करके किया जाता है. पूजा के लिए रोज बासी फूलों और पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें