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शिक्षा नीति पर मैकाले से उलट थी महात्मा की बुनियादी सोच, जानें नई तालीम को लेकर गांधी का विजन

'मैकाले ने जिस शिक्षा की बुनियादी डाली वो सचमुच गुलामी की बुनियाद थी'. वहीं, गांधी ने बुनियादी शिक्षा को नई तालीम में कहा था वे बच्चों को नई तालीम के द्वारा गांव का आदर्श बाशिंदा बनाना चाहते थे. उनकी मान्यता थी कि बुनियादी तालीम से मन और शरीर का विकास होता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2022 10:39 AM

पटना. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन, प्रकृति के व्यापक आयाम को नई तालीम के द्वारा और भी व्यापकतर बनाता है. उन्होंने लिखा है- ‘मैं बच्चों की शिक्षा का श्रीगणेश उन्हें कोई उपयोगी दस्तकारी सिखाकर जिस क्षण से वह अपनी शिक्षा का आरंभ करें उसी क्षण से उत्पादन के योग्य बनाकर करूंगा. मेरा मत है कि इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली में मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास संभव है. अलबत्ता प्रत्येक दस्तकारी आजकल की तरह निरे यांत्रिक ढंग से न सिखाकर वैज्ञानिक तरीके पर सिखानी पड़ेगी. अर्थात बालक को प्रत्येक क्रिया का क्यों और कैसे बताना होगा.

तालीम से मन और शरीर का विकास होता है

गांधी ने बुनियादी शिक्षा को नई तालीम में कहा था वे बच्चों को नई तालीम के द्वारा गांव का आदर्श बाशिंदा बनाना चाहते थे. उनकी मान्यता थी कि बुनियादी तालीम से मन और शरीर का विकास होता है. वे शिक्षा को सर्वांगीण विकास और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास मानते थे. गांधी का शिक्षा चिंतन भविष्य के हिंदुस्तान का निर्माण करने में बालक या बालिका अपने स्कूल जाने के दिन हाथ बंटाने लगे इसका इंतजाम करती है.

गांधी की नई तालीम की योजना के प्रारूप की चर्चा

महात्मा गांधी का शिक्षा चिंतन डॉक्टर रश्मि श्रीवास्तव द्वारा संपादित पुस्तक जो राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित है में वर्धा सम्मेलन के महत्वपूर्ण प्रस्ताव का निम्नलिखित तथ्यों के द्वारा गांधी की नई तालीम की योजना के प्रारूप की चर्चा की है और प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री तत्कालीन जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जाकिर हुसैन जो बिहार के राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति भी हुए की सिफारिशों को पूरे देश में बुनियादी शिक्षा के रूप में लागू किया गया. आगे चलकर दो वर्गों में शिक्षा विभक्त हो गई. अभिजन और बहुजन के बीच की दीवार खड़ी कर दी गई. सामाजिक और आर्थिक भेदभाव समाज में बढ़ता गया. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जिस बुनियादी शिक्षा से स्वावलंबी आत्मनिर्भर समाज का निर्माण होता वह सपना साकार नहीं हो सका.

गाँधी जी ने शिक्षा सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया

गांधी जी ने अपनी इस योजना को वर्धा सम्मेलन में देश के सामने रखा. 22-23 अक्तूबर, 1937 को वर्धा में जब मारवाड़ी शिक्षा मंडल की रजत जयंती मनाई जाने वाली थी. इसके आयोजक मुन्नानारायण अग्रवाल थे. गाँधी जी ने उन्हें इस अवसर पर एक शिक्षा सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया. सुझाव पर अमल करते हुए इस रजत जयंती समारोह में देश भर के प्रसिद्ध शिक्षा-शास्त्रियों, राष्ट्रीय नेताओं और समाज सुधारकों को आमंत्रित किया गया और अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन (All India National Education Conference) का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गाँधी जी ने की. इस सम्मेलन को वर्धा- शिक्षा सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है. इस सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने शिक्षा की अपनी नवीन योजना प्रस्तुत करते हुए कहा था, देश की वर्तमान शिक्षा पद्धति किसी भी तरह देश की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती है. इस शिक्षा द्वारा जो भी लाभ होता है, उससे देश का कर देने वाला प्रमुख वर्ग वंचित रह जाता है. अतः प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम कम-से-कम सात वर्ष का हो, जिसके द्वारा मैट्रिक तक का ज्ञान दिया जा सके, परंतु इसमें अंग्रेजी के स्थान पर कोई अच्छा उद्योग जोड़ दिया जाए. सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से सारी शिक्षा जहाँ तक हो सके, किसी उद्योग के द्वारा दी जाए, जिससे पढ़ाई का खर्च भी पूरा हो सके. जरूरी यह है कि सरकार उन बनाई गई वस्तुओं को राज्य द्वारा निश्चित की गई कीमत पर खरीद ले.

गांधी जी की योजना पर विचार-विमर्श कर प्रस्ताव पारित हुए

इस प्रकार गांधी जी ने मैट्रिक स्तर तक अंग्रेजी रहित उद्योग पर आधारित और मातृभाषा द्वारा सात वर्ष की स्वावलंबी शिक्षा की योजना प्रस्तुत की. सम्मेलन में भाग लेने वाले विद्वानों ने गांधी जी की योजना पर विचार-विमर्श कर निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए.

  • 1. सम्मेलन की राय है कि राष्ट्र के सभी बच्चों को सात वर्ष तक निःशुल्क एवं

  • अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाए.

  • 2. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो .

  • 3. सात वर्ष की संपूर्ण अवधि में शिक्षा का माध्यम बिंदु किसी तरह का हस्तशिल्प हो.

  • 4. बच्चों को जो शिक्षा प्रदान की जाए वह केंद्रीय हस्तशिल्प से संबंधित हो तथा उसका चुनाव बच्चों के वातावरण को ध्यान में रख कर किया जाए.

  • 5. सम्मेलन यह आशा करता है कि इस पद्धति द्वारा शनैः शनैः अध्यापक के वेतन का व्यय निकल आएगा.

चंपारण पहुंचकर अक्षर ज्ञान से लेकर बुनियादी शिक्षा की नींव डाली

महात्मा गांधी ने सत्य के प्रयोग जो उनकी आत्मकथा के रूप में है कि रचना साबरमती आश्रम 25 नवंबर 1925 को की. उस पुस्तक के 17 वें अध्याय में उन्होंने चंपारण पहुंचकर अक्षर ज्ञान से लेकर बुनियादी शिक्षा की न केवल नींव डाली बल्कि उसका विस्तार भी किया. उन्होंने खुद यह अनुभव किया कि ‘जैसे-जैसे मुझे अनुभव मिलता गया वैसे-वैसे मैंने देखा कि चंपारण में ठीक से काम करना हो तो गांव में शिक्षा का प्रचार प्रसार होना चाहिए. लोगों के अज्ञान पर दया आती थी. गांव के बच्चे मारे-मारे फिरते थे या माता-पिता दो या तीन पैसे की आमदनी के लिए उनसे सारे दिन नील के खेतों में मजदूरी करवाते थे. उन दिनों वहां पुरुषों की मजदूरी 10 पैसे से अधिक नहीं थी. महिलाओं की छह पैसे और बच्चों की तीन पैसे थी. चार आने की मजदूरी पाने वाला किसान भाग्यशाली समझा जाता था.

छह गांव में बच्चों के लिए स्कूल खोलने की बात तय हुई

साथियों से सलाह करके पहले तो छह गांव में बच्चों के लिए स्कूल खोलने की बात तय हुई. शर्त यह थी कि उन गांवों के मुखिया मकान और शिक्षक का भोजन व्यय दें. उसके दूसरे खर्च की व्यवस्था हम करें. यहां के गांवों में पैसे की बहुत कमी थ. लेकिन अनाज वगैरह देने की शक्ति लोगों में थी. इसलिए लोग कच्चा अनाज देने को तैयार हो गए थे.

सबसे विकट प्रश्न यह था कि शिक्षक कहां से लाएं

सबसे विकट प्रश्न यह था कि शिक्षक कहां से लाएं. बिहार में थोड़ा वेतन लेने वाले या कुछ न लेने वाले शिक्षक मिलना कठिन था. मेरी कल्पना यह थी कि साधारण शिक्षके हाथ में बच्चों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए. शिक्षक को अक्षर ज्ञान चाहे थोड़ा हो, लेकिन उसमें चरित्र बल तो होना ही चाहिए. मैंने सार्वजनिक रूप से स्वयंसेवकों की मांग की. उसके उत्तर में गंगाधर राव देशपांडे ने बाबा साहब सोमन और पुंडलिक को भेजा. बंबई से अवंतिका बाई गोखले आईं. दक्षिण से आनंदीबाई आई. मैंने छोटेलाल, सुरेंद्रनाथ तथा अपने बेटे देवदास को बुला लिया. महादेव देसाई की पत्नी दुर्गा बहन और नरहरि पारिख की पत्नी मणि बहन भी आई. मैंने कस्तूर बाई को भी बुला लिया था. कस्तूर बाई की पढ़ाई नहीं के बराबर ही थी. ये हिंदी भाषी बच्चों को किस प्रकार पढ़ा पाती.

महिलाओं की कक्षाएं बहुत अच्छी तरह चली

चर्चा करके मैंने महिलाओं को समझाया कि उन्हें बच्चों को व्याकरण नहीं बल्कि रहन-सहन का तौर तरीका सिखाना है. पहली कक्षा में मुश्किल से गिनती लिखना सिखानी है. नतीजा यह निकला कि महिलाओं की कक्षाएं बहुत अच्छी तरह चली’

गांधी जी पढ़ाई के साथ दवाई का भी इंतजाम करते थे

गांधी जी पढ़ाई के साथ दवाई का भी इंतजाम करते थे और इसके पहले गांवों की सफाई और स्वच्छता और शिक्षा के साथ जोड़कर चलते थे. प्रत्येक स्कूल में एक महिला और एक पुरुष की व्यवस्था की गई थी. उन्हीं के द्वारा दवाई और सफाई की व्यवस्था की जाती थी.

‘तीन कठिया कानून’ के रद्द होते ही निलहे गोरों का सूर्य अस्त हुआ

इस प्रकार गांधी ने शोषित पीड़ित किसानों के नील के दाग धोने के साथ ही साथ उस समय लागू ‘तीन कठिया कानून’ के रद्द होते ही निलहे गोरों का सूर्य अस्त हुआ. जनता को अपनी शक्ति का भान हुआ और लोगों का यह वहम दूर कि नील धोए धुल नहीं सकता. जिस समय गांधी चंपारण आए थे उस समय केवल दो ही स्कूल थे. बेतिया राज स्कूल और मोतिहारी में राज बालिका स्कूल.

साफ सफाई और खुद से सफाई का छेड़ा था अभियान

अरविंद मोहन ने चंपारण सत्याग्रह की कहानी और प्रयोग चंपारण में यह उल्लेख किया है कि जब वे दक्षिण अफ्रीका से लौटकर शांति निकेतन गए थे तब भी उन्होंने वहां परिसर से लेकर रसोई तक में साफ सफाई और खुद से सफाई का बड़ा अभियान छेड़ा था.

पहला स्कूल मोतिहारी के ढाका के पास बड़हरवा में खुला

उनका पहला स्कूल मोतिहारी के ढाका के पास बड़हरवा लखनसेन में 14 नवंबर 1917 को खुला. यहां गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास भी अध्यापन करते थे.

शिक्षा के प्रचार प्रसार में मोतिहारी के ब्रजकिशोर प्रसाद और धरणीधर बाबू का काफी सहयोग मिला. धरणीधर बाबू ने 6 माह तक मास्टरी करना कबूल किया और सपरिवार मधुबन स्कूल में रहे. उन्हें 50 रुपये वेतन में मिले थे. हस्तशिल्प के शिक्षकों को मात्र 7 रुपये मासिक वेतन मिलता था. दूसरा स्कूल राजकुमार शुक्ल के इलाके भितिहरवा में खुला. यहीं डॉक्टर देव और कस्तूरबा भी रहते थे. यहां महाराष्ट्र के बेलगांव जिले वकील सदाशिव लक्ष्मण सोमन और गुजरात के बालकृष्ण पुरोहित शिक्षक थे. एक दिन भितिहरवा पाठशाला की झोपड़ी में अचानक आग लग गई. डॉक्टर देव को लगा कि आग किसी ने लगवा दी है. लेकिन इसकी जांच आरोप प्रत्यारोप में उलझे बिना. साथियों के सिर पर ईंट ढो-ढोकर पक्का मकान बनाने की शुरुआत कर दी.

तीसरा स्कूल मधुबन में खुला

तीसरा स्कूल मधुबन में खुला. स्थानीय सेठ घनश्याम दास ने मकान और साधन मुहैया करवाया. इसी क्रम में एक प्रसिद्ध घटना घटी. जिसे सर रिचर्ड एटनबरो ने बहुत कल्पनाशील फिल्मांकन से गांधी के बदलाव का बिंदु बनाने के साथ अमर बना दिया. भितिहरवा के गांव में एक महिला को गंदे कपड़ों में देखकर बापू ने कस्तूरबा से उनसे बात करने को कहा कि वह इतना गंदा क्यों रहती है. यह सवाल पूछने पर वह महिला कस्तूरबा को अपनी झोपड़ी में ले गई और कहा ‘देखिए न मेरे पास कोई बक्सा है न आलमारी जिसमें कपड़ें हों जो साड़ी मैंने पहनी है एक मात्र वहीं मेरे पास है अब आप ही बताएं मैं कैसे इसे धोऊं. महात्मा जी को मेरे लिए दूसरी साड़ी लाने को कहें फिर मैं रोज नहाऊंगी और कपड़ा साफ पहनूंगी’ गांधी चंपारण आकर गांव की गरीबी के चश्मदीद गवाह बने.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भी की है चर्चा

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गांधी को अपने अधूरे काम शुरू न करने और रचनात्मक कामों के स्थाई आधार पकड़ने से पहले बिहार छोड़ने का अफसोस था. पर साथ ही भरोसा था कि कुछ महीनों का काम इतना जड़ पकड़ चुका है कि उसका प्रभाव किसी न किसी न किसी रूप में आगे दिखेगा और ये चलते रहेंगे. उनकी अभिलाषा थी कि कुमार बाग में ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए. बुनियादी विद्यालयों का जाल बिछाया जाए. गांव-गांव पुस्तकालय, राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना का अभियान चलता रहे.

प्रजापति मिश्र ने गांधी के सपनों को साकार करने में काफी परिश्रम किया

प्रजापति मिश्र ने गांधी के सपनों को साकार करने में काफी परिश्रम किया और वृंदावन आश्रम के आसपास 126 वर्ग मील इलाके में उन्होंने जमीन के साथ खर, लकड़ी, बांस जैसी निर्माण सामग्री भी जुटाई और कई विद्यालयों के लिए उन्होंने अपनी जमीन दी. कई स्कूलों के पास तो 15 एकड़ तक जमीन हो गई. जिस पर बच्चों के खेलने से लेकर बागवानी के भी प्रयोग चले. 1939 में गांधी वृंदावन आए तो उन्हीं के हाथों सघन क्षेत्र के पहले वृंदावन रमपुरवा विद्यालय का शुभारंभ हुआ.

‘बिहार के पहले शिक्षा मंत्री ने बुनियादी शिक्षा पर दिखाई दिलचस्पी’

बिहार के पहले शिक्षा मंत्री बद्रीनारायण वर्मा ने बुनियादी शिक्षा के महान कार्य में काफी दिलचस्पी दिखाई. बिहार में बुनियादी शिक्षा का गठन हुआ और उसके ईमानदार पदाधिकारी के रूप में रामशरण उपाध्याय नियुक्त किए गए. बिहार में यह एक शिक्षा आंदोलन का रूप ले लिया और लगभग 500 बुनियादी विद्यालय सफलतापूर्वक चलने लगे लेकिन पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति तथा यांत्रिक शिक्षा ने बुनियादी शिक्षा की नींव ही हिला दी.

तालीम का अर्थ सिर्फ अक्षर ज्ञान ही हो तो…

महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज के अध्याय 18 में शिक्षा शीर्षक में लिखा है कि तालीम का अर्थ सिर्फ अक्षर ज्ञान ही हो तो वह तो एक साधन जैसी ही हुई उसका अच्छा उपयोग भी हो सकता है या बुरा उपयोग भी हो सकता है। एक शस्त्र से चीर फाड़ करके बीमार को अच्छा किया जा सकता है और वही शस्त्र किसी की जान लेने के भी काम में लाया जा सकता है. अक्षर ज्ञान का भी ऐसा ही है. बहुत से लोग इसका बुरा उपयोग करते हैं. एक अंग्रेज विद्वान हक्सले ने शिक्षा के बारे में यूं कहा कि उस आदमी ने सच्ची शिक्षा पाई है जिसके शरीर को ऐसी आदत डाली गई है कि वह उसके वश में रहता है। जिसका शरीर चैन से और आसानी से सौंपा हुआ काम करता है उस आदमी ने सच्चे शिक्षा पाई है जिसकी बुद्धि शुद्ध, शांत और न्यायदर्शी है। उसने सच्ची शिक्षा पाई है जिसका मन कुदरती कानूनों से भरा है और जिसकी इंद्रियां उसके वश में हैं। जिसके मन की भावनाएं बिल्कुल शुद्ध हैं. जिसे नीच कामों से नफरत है और दूसरों को अपने जैसा मानता है, ऐसा आदमी ही सच्चा शिक्षित माना जाएगा क्योंकि वह कुदरत के कानून के मुताबिक चलता है. कुदरत उसका अच्छा उपयोग करेगी और वह कुदरत का अच्छा उपयोग करेगा. अगर यही सच्ची शिक्षा हो तो मैं कसम खाकर कहूंगा कि ऊपर जो शास्त्र मैंने गिनाए हैं जैसे भूगोल विद्या, खगोल विद्या, बीजगणित रेखागणित, भूगर्भ विद्या को भी मैं पी गया हूं। लेकिन उससे क्या उसका मैंने अपना कौन सा भला किया है. अपने आसपास के लोगों को क्या लाभ मिला. इसलिए प्राइमरी शिक्षा को लीजिए या ऊंची शिक्षा को लीजिए उसका उपयोग मुख्य बात में नहीं होता है. उससे हम मनुष्य नहीं बनते, उससे हम अपना कर्तव्य नहीं जान सकते.

‘गांधी ने अंग्रेजी शिक्षा से दंभ, राग और जुल्म बढ़ने की बात कही है’

मैकाले ने जिस शिक्षा की बुनियादी डाली वो सचमुच गुलामी की बुनियाद थी. गांधी ने अंग्रेजी शिक्षा से दंभ, राग और जुल्म बढ़ने की बात कही है. मैकाले की शिक्षा से मानव निर्माण की शिक्षा का मार्ग अवरुद्ध हो गया. पाश्चात्य शिक्षा का वर्चस्व बढ़ता गया और अब तो शिक्षा बाजार की वस्तु हो गई है. गांधी के स्वावलंबन, आत्मनिर्भर और सर्वांगीण विकास का सपना चकनाचूर हो गया और एक बार नहीं, गांधी की शिक्षा, विचारधारा बार चकनाचूर हो रही है. शिक्षा में भी गोडसेवाद का विषाणु जड़ जमा रहा है.

ये लेख बेगूसराय के पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के द्वारा लिखी गई है.

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