पटना: विदेश से भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए थे. इसकी शुरुआत बापू ने बिहार में चंपारण आंदोलन से किया था. कहा जाता है कि बिहार के चंपारण ने ही साधारण क़द काठी वाले गांधी को ‘महात्मा’ बनाया था. लेकिन केवल चंपारण ही बापू का कर्मक्षेत्र नहीं रहा. चंपारण आंदोलन के कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे थे. यहां उन्होंने एक विशाल जनसभा को संबोधित किया था.
बता दें कि महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह शुरु करने के बाद पटना के मैदान में विशाल जनसभा (प्रार्थना सभा) को संबोधित किया था. गांधी के संबोधन के बाद ही पटना का सेंटर कहे जाने वाले लॉन को गांधी के नाम से जाना जाने लगा.
इतिहासकारों की मानें तो बक्सर की लड़ाई के बाद 1765 के आसपास अंग्रेज सैनिकों की छावनी मुंगेर में थी. मुंगेर छावनी में कुछ सैनिकों ने उपद्रव किया था. इस वजह से अंग्रेजों ने विद्रोही सैनिकों का तबादला पटना कर दिया था. 1767-68 में यह छावनी दानापुर शिफ्ट हो गया. उस दौरान गांधी मैदान से लेकर मगध महिला कॉलेज तक अंग्रेजों की छावनी हुआ करता था. अग्रजों के पटना गांधी मैदान आने से पहले तक इस मैदान में बड़े-बड़े घास-फूस और जल जमाव रहा करता था. जिसके बाद अंग्रेजों ने धीरे-धीरे इस मैदान को रहने योग्य बनाया था.
इतिहासकार बताते हैं कि आज़ादी के कुछ समय पहले तक महात्मा गांधी ने इस मैदान में कई बार प्रार्थना सभा को संबोधित किया था. एएन सिन्हा का गांधी कुटीर आउट हाउस था, जहां गांधी जी आजादी के समय रुका करते थे. आज़ादी से पूर्व गांधी मैदान का इलाक़ा खुला हुआ था. मैदान का क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा हुआ करता था.
बता दें कि 1947 के पहले बिहार कम्युनल राइट के बुरे दौर से गुजर रहा था. उस दौरान बापू ने इस लॉन में यानी वतर्मान के गांधी मैदान में कई दफ़ा प्रार्थना सभाएं आयोजित कीं. आजादी के बाद लॉन का नाम गांधी मैदान पड़ा और तब से लोग इसे गांधी मैदान के नाम से जानते हैं. 1960 तक गांधी मैदान को लॉन ही कहा जाता था.
ग़ौरतलब है कि साल गांधी के 1938 में तत्कालीन मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ बिहार के इसी लॉन यानी वतर्मान के गांधी मैदान में भाषण दिया था. इसके अलावे साल 1939 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी नई पार्टी की पहली ऐतिहासिक रैली यहीं की थी. स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु, जेबी कृपलानी, राम मनोहर लोहिया, अटल विहार वाजपेयी समेत कई नेताओं ने बिहार के इस ऐतिहासिक गांधी मैदान में भाषण दिया है. कभी इसी मैदान से आज़ादी की लहर उठी, तो कभी इसी मैदान से जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.
कुल मिलाकर अगर एक शब्द में कहें तो गांधी केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार धारा है, जिस नाम के बदौलत कई लोग बापू से प्रभावित होकर उनसे जुड़ते चले गए. जबकि कई गुमनाम जगहों का नाम इतिहास के पन्ने में सुनहरे अक्षरों से दर्ज हो गया. इन सब का श्रेय केवल एक साधारण से दिखने वाले जिसे कभी दुनिया ने अर्धनग्न फ़कीर का नाम भी दिया था, देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जाता है.