राजदेव पांडेय/ पटना. इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अगले दो साल में 30 हजार करोड़ से अधिक के निवेश आये हैं. इस निवेश से निवेशकों का पैसा तो बनेगा ही, किसानों की भी चांदी होगी. इथेनॉल के ग्रीन फील्ड ग्रेन प्लांट लगने के मक्का उत्पादक किसानों के दिन फिरने जा रहे हैं. वह इसलिए कि इथेनॉल उत्पादन का मुख्य कच्चा माल इकलौता मक्का है. अनुमान के मुताबिक सालाना ढाई हजार करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खाते में जायेगी.बिहार में मक्का का उत्पादन 35 लाख टन वार्षिक से अधिक है. उत्पादन में सालाना पांच फीसदी की वृद्धि है. इथेनॉल प्लांट्स जैसे-जैसे धरातल पर उतरेंगे, मक्का नकदी फसल (कैश क्रॉप ) में बदल जायेगा. मक्का उत्पादक लाखों किसानों को फायदा होगा.
बिहार में धान के बाद यही एक ऐसी फसल है, जिसमें सर्वाधिक वृद्धि दर है. बिहार में पहला ग्रीन फील्ड इथेनॉल प्लांट पूर्णिया में हाल में चालू हुआ है. मक्का के अलावा टूटे चावल से इथेनॉल बनाने की अनुमति प्रदेश में दी गयी है. कच्चे माल की उपलब्धता के हिसाब से मक्का सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला वस्तु है. इस तरह धान बड़ी व्यापारिक फसल के रूप में उभर सकता है.उद्योग विभाग की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अगले दो वर्षों में बिहार में 30 हजार करोड़ का निवेश होना तय है.
उद्योग विभाग के आर्थिक विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक एक हजार केएलडी (किलो लीटर पर डे ) के मक्का आधारित प्लांट से इथेनॉल बनाने पर उद्यमी को मक्का खरीद पर कुल सालाना 109 -125 करोड़ खर्च करने होंगे. एक हजार लीटर के प्लांट के लिए 78 हजार टन सालाना मकई की जरूरत पड़ेगी. मकई की सामान्य कीमत 14 रुपये प्रति किलो है. इस दाम पर किसानों की जेब में 109-125 करोड़ जायेंगे, क्योंकि इथेनॉल की मांग बढ़ते ही मक्का की कीमत उसके घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 से भी अधिक होने की उम्मीद है.
प्रत्येक प्लांट में प्रत्यक्ष तौर पर सौ लोगों को रोजगार मिलेगा. उद्यमी को करीब तीन से चार करोड़ रुपये उनकी सैलरी पर खर्च करने होंगे.एक हजार केएलडी के प्लांट से साल में 3.5 करोड़ लीटर इथेनॉल बनेगा. पेट्रोलियम कंपनियां एक लीटर इथेनॉल अभी 52.92 रुपये की दर से खरीदती हैं. इस तरह निवेशक को 174 करोड़ रुपये पेट्रोलियम कंपनियों से मिलेंगे.
पेट्रोलियम कंपनियां इसे अनिवार्य तौर पर खरीदेंगी. ध्यान रहे उत्पादक कंपनियां भी इथेनॉल बाजार में नहीं बेच सकेंगी. इनकी कुल क्षमता साढ़े तीन लाख केएलडी है. इथेनॉल बनाने के बाद उसका बायो प्रोडक्ट करीब 16 हजार टन डस्टिलिरीज ड्राइड ग्रेन विथ सोल्यूबल्स ( डीडीजीएस) मिलेगा. पशु आहार बनाने वाली कंपनियां इसे 30 हजार रुपये प्रति टन खरीदेंगी.
अंत में प्लांट से एक साल में छह हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड भी निकलेगी. इसे निवेशक दो हजार रुपये प्रति टन बचेगा. इससे उसे सात करोड़ रुपये हासिल होंगे. कार्बन डाइऑक्साइड को कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनियां खरीदती हैं.इस तरह एक निवेशक को मक्का आधारित इथेनॉल प्लांट से 237 करोड़ रुपये मिलेंगे. उसका कुल औसत खर्च 171 करोड़ होगा. उसे संभावित लाभ प्रतिवर्ष 66 करोड़ होगा. यह लाभ केवल एक हजार केएलडी प्लांट आधारित है. राज्य में 17 प्लांट लगने हैं
Also Read: सीतामढ़ी में MDM का अनाज और स्कूल की ईंट घर ले जा रहे थे गुरुजी, ग्रामीणों ने किया हंगामा तो हुए गिरफ्तार
बिहार में 17 प्लांट लगने हैं. इनमें अधिकतर एक हजार केएलडी से अधिक के हैं. इस तरह बिहार के किसानों की जेब में ढाई हजार करोड़ से अधिक जाने तय हैं. साथ ही प्लांट संचालन के लिए पावर प्लांट चलाने के लिए निवेशक को धान आदि की भूसी की जरूरत होगी. एक हजार केएलडी के प्लांट के लिए भूसी की सालाना जरूरत 80 हजार टन होगी. इसके लिए राइस मिलर को 32 करोड़ मिलेंगे.
राज्य में इथेनॉल उत्पादन की तीन और इकाइयां बन कर तैयार हैं . दो प्लांट गोपालगंज में और एक प्लांट आरा में तैयार है. बिहार में 17 इथेनॉल उत्पादन इकाइयों ने 36 करोड़ लीटर सालाना इथेनॉल आपूर्ति का करार हाल ही में तेल विपणन कंपनियों के साथ किया है.
-
1. देश में सबसे पहले बिहार में 19 मार्च, 2021 को इथेनॉल पॉलिसी लांच की गयी.
-
2. 30 जून, 2021 तक 151 निवेश प्रस्ताव आये. प्रस्ताव 30,382 करोड़ के रहे. इन्हें फर्स्ट क्लियरेंस दिया गया.
-
3. बिहार में 17 इथेनॉल यूनिट के उत्पादन के लिए पेट्रोलियम कंपनियों से करार हुआ.
-
4. बिहार के लिए 35.28 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन का कोटा निर्धारित किया गया है.
-
5. बिहार में इथेनॉल की अधिकृत की गयी यूनिट में मुजफ्फरपुर और नालंदा में चार-चार, मधुबनी में दो, बेगूसराय, नवादा, भागलपुर और बक्सर में एक-एक यूनिट प्रस्तावित हैं. इनमें पूर्णिया की यूनिट शुरू हो चुकी है.