राजगीर मकर मेला में भाला-तलवार लेकर आते थे श्रद्धालु, कुंड के पानी से बनाते थे खाना, 14 जनवरी से होगी शुरुआत
राजगीर में मकर स्नान के लिए लोग पैदल और बैलगाड़ी की सहायता से घर और समाज के लोगों की टोली राजगीर आती थी. ग्रामीणों की उन टोलियों में पुरुषों के अलावे महिलाएं, बच्चे की संख्या भी अच्छी खासी होती थी.
Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति का राजगीर से ऐतिहासिक और गहरा संबंध है. यहां 14 जनवरी से आठ दिवसीय मकर मेले की शुरुआत होने जा रही है. लेकिन इस मेले का आयोजन पहली बार कब और किसके द्वारा किया गया है? यह ठीक-ठीक कोई नहीं जानता. लेकिन लोगों का कहना है कि राजगीर में प्राचीन काल से ही मकर संक्रांति मेला का आयोजन होता आ रहा है. इस मेले में मगध के जिलों से बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. सभी उम्र के लोग प्रसिद्ध गर्म पानी के झरनों और तालाबों में स्नान करते हैं. श्रद्धालु यहां के लक्ष्मी नारायण मंदिरों में पूजा-अर्चना कर दान का लाभ उठाते हैं.
पहले मुख्यमंत्री ने कराया था मेला का सरकारी आयोजन
आजादी के बाद सूबे के पहले मुख्यमंत्री डाॅ श्रीकृष्ण सिंह द्वारा मकर मेला का सरकारी आयोजन आरंभ किया गया था. कालांतर में यह मेला सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया. प्रशासन द्वारा मेला का आयोजन करना बंद कर दिया गया. इसके बावजूद स्थानीय लोगों ने मकर मेला की परंपरा को जीवित रखने का हर संभव प्रयास किया.
सीएम नीतीश कुमार ने दिया राजकीय मकर मेला का दर्जा
मकर संक्रांति के दिन पूर्व शिक्षा मंत्री सुरेंद्र प्रसाद तरुण कुछ सहयोगियों के साथ युवा छात्रावास में वैदिक संस्कृति से पूजा अर्चना करते और घंटों मकर संक्रांति के महत्व की चर्चा करते तथा कराते थे. बाद में स्थानीय लोगों की मांग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व को आंकते हुए राजगीर के सुषुप्त मकर मेले को केवल पुनर्जीवित ही नहीं किया बल्कि राजकीय मकर मेला का दर्जा भी दिया. अब 2018 से राजगीर में फिर से मकर मेले का सरकारी आयोजन किया जा रहा है.
जिला प्रशासन कर रहा मेले की तैयारी
14 जनवरी से शुरू होने वाले आठ दिवसीय इस मेला की तैयारी जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा है. मेले तैयारी की मॉनीटरिंग खुद डीएम शशांक शुभंकर द्वारा किया जा रहा है. यहां के युवा छात्रावास (मेला थाना) परिसर में मुख्य सांस्कृतिक पंडाल का निर्माण किया जा रहा है. मकर मेले के इतिहास में पहली बार जर्मन हैंगर पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है.
मेले में इन कार्यक्रमों का भी होगा आयोजन
इसके अलावा दुधारू पशु प्रदर्शनी, कृषि उत्पाद प्रदर्शनी, विभागीय प्रदर्शनी, ग्रामश्री मेला, व्यंजन मेला, एथलेटिक्स, कृषि मेला, क्विज एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता, पेंटिंग प्रतियोगिता, ड्राइंग प्रतियोगिता, रंगोली प्रतियोगिता, कबड्डी, दंगल, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल आदि कार्यक्रमों की तैयारी तेजी से की जा रही है. विभिन्न कार्यक्रमों के लिए अलग-अलग जगहों पर स्टॉल का निर्माण तेजी से कराया जा रहा है.
पहले पैदल और बैलगाड़ी से आते थे श्रद्धालु
बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि मकर संक्रांति मेला कब से लगता है. यह सही पता नहीं है. लेकिन, भीड़ पहले भी बहुत आती थी. मकर स्नान के लिए लोग पैदल और बैलगाड़ी की सहायता से घर और समाज के लोगों की टोली राजगीर आती थी. ग्रामीणों की उन टोलियों में पुरुषों के अलावे महिलाएं, बच्चे की संख्या भी अच्छी खासी होती थी. वस्त्र, भोजन आदि सामग्री के साथ लोग हथियार भी रखते थे. उसमें भाला, बरछी, गड़ासा, तलवार, गुप्ती आदि होते थे.
केरोसिन, लालटेन, पेट्रोमैक्स लेकर चलते थे लोग
बैलगाड़ी में केरोसिन, लालटेन, पेट्रोमैक्स भी रखते थे. यह सब जुगाड़ था बदमाशों और चोर चिलहार से बचाव के लिए. बैलगाड़ी पर बैठकर कोई गीत के तराने छेड़ता और साथ बैठे सभी लोग उसे पर दोहराते थे. जैसे जैसे लोग राजगीर के नजदीक पहुंचते वैसे वैसे काफिला बहुत बड़ा हो जाता था. लोग किसी वृक्ष के नीचे डेरा डालते और मेला का भरपूर आनंद लेते थे.
कुंड के पानी में बनाते थे भोजन
गर्मजल के झरनों और कुंड़ों में स्नान करने के बाद ग्रामीण परंपरागत भोजन दही, चूड़ा, भूरा, तिलकुट साथ आलू दम की सब्जी छककर खाते थे. दूसरे दिन खिचड़ी पका कर खाते थे. कुंड के पानी के बने भोजन का स्वाद ही कुछ अलग होता है. ग्रामीण मेला का आनंद लेते और पहाड़ों का सैर भी करते थे.
साधु-संतों के साथ किसानों का होता है समागम
राजगीर-तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा समिति के प्रवक्ता सुधीर कुमार उपाध्याय बताते हैं कि मकर संक्रांति मेले में मगध क्षेत्र के साधु-संतों के साथ किसान-मजदूर, युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
पहले संन्यासी संक्रांति काल में पंच पहाडियों की गुफाओं में कल्पवास करते थे. यहां के कुंडों में स्नान करते थे. मकर संक्रांति के मौके पर राजगीर के आध्यात्मिक माहौल चरम पर रहता आया है. सनातन संस्कृति का अनूठा संगम की झलक इस मौके पर देखने को मिलती है.
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