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Women of the Week : सच्ची लगन हो, तो असंभव भी संभव, दिव्यांगता को अपनी ताकत बना हासिल किया मुकाम

Women of the Week : जब मन में काम करने की सच्ची लगन हो, तो असंभव भी संभव हो जाता है. यह कहना है मधुबनी पेंटिंग में महारत हासिल करने वाली महिला आर्टिस्ट ममता भारती का. 

Women of the Week : जब मन में काम करने की सच्ची लगन हो, तो असंभव भी संभव हो जाता है. यह कहना है मधुबनी पेंटिंग में महारत हासिल करने वाली महिला आर्टिस्ट ममता भारती का.  ममता मूल रूप से भागलपुर, नवगछिया के रंगरा प्रखंड की रहने वाली हैं. वर्तमान में वे राजधानी के बेली रोड में रहती हैं. बचपन में ही वे पोलियो का शिकार हो गयी थीं. पोलियो के कारण दिव्यांग होने के बावजूद ममता भारती ने हिम्मत नहीं हारी. अपनी दृढ़ इच्छा की बदौलत आज वे मिथिला पेंटिंग में ऊंचा मुकाम हासिल कर कला की कद्र करने वालों को बतौर शिक्षिका प्रशिक्षण देती हैं. 2014 में बिहार सरकार उन्हें राज्य पुरस्कार से सम्मानित भी कर चुकी है.

Q. पोलियो होने के बाद आपकी जिंदगी कितनी बदल गयी ?

– जब मैं पांच साल की थी, तब पोलियो की वजह से मुझे पैरालाइज हो गया था. इलाज के लिए पटना आयी, तो डॉक्टर ने मेरे आधे हिस्से को ठीक किया. बीच में कुछ समय के लिए इलाज नहीं मिल पाने की वजह से कमर का निचला हिस्सा काम करना बंद कर दिया. इस दु:ख की घड़ी में मेरे माता-पिता व भाई ने मेरा पूरा साथ दिया. चलने-फिरने में असमर्थ होने के कारण बाकि फैमिली मेंबर्स ने मुझसे उम्मीद छोड़ दी थी. फिर, जब दोस्तों से दूरी बढ़ी, तो मैंने कला को ही अपना दोस्त बनाया लिया. मैंने साहस दिखाया और पढ़ाई पूरी कर कुछ अलग करने के लिए 1999 में पटना आ गयी. कला में मेरी शुरू से रुचि थी, इसलिए पेंटिंग के क्षेत्र में उतरने की ठानी.

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Q. मधुबनी पेंटिंग से कैसे जुड़ना हुआ?

– पटना में रहते हुए मुझे मधुबनी पेंटिंग के बारे में जानकारी मिली. लेकिन इससे मैं रूबरू हुई, एक मेले में. चादर पर बनी पेंटिंग को दिखाते हुए एक कलाकार ने बताया कि यह हाथों से बनाया जाता है और उन्होंने वहां बनाकर भी दिखाया. तब मैंने पहली बार मधुबनी पेंटिंग से परिचित हुई. इसके बाद मैंने आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज से कला में स्नातक किया. इससे इतना प्रभावित हुई की साल 2007 में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान केंद्र से इसकी ट्रेनिंग ली. साल 2014 में राज्य पुरस्कार और सीता देवी कलाश्री सम्मान मिला. फिर मोटिवेशन क्विन, बिहार कलाश्री सम्मान और सर्वश्रेष्ठ युवा दिव्यांग कला पुरस्कार का भी सम्मान मिल चुका है.

Q. आप किस तरह की पेंटिंग करती हैं?

– मैं कस्टमाइज्ड मधुबनी पेंटिंग बनाती हूं. हमेशा से सुनती थी कि इस पेंटिंग की कंपोजिशन और कलर को लेकर बात होती थी. बस मैंने आज के समय के अनुसार इसे बनाना शुरू किया, जो लोगों को काफी पसंद आने लगा. यही वजह है कि बिहार के सरकारी दफ्तरों के अलावा पूरे देश और विदेश में मेरी पेंटिंग जाती है.

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Q. आप नि:शक्तों को आत्मनिर्भर बना रही हैं? इसकी शुरुआत कैसे हुई. इसके बारे में कुछ बताएं.

– मेरे जैसे कई लोग हैं, जो कुछ करना चाहते हैं. पर उन्हें सही प्लेटफॉर्म नहीं मिल पाता है. इसलिए मैंने तय किया कि अब मैं किसी नि:शक्त महिला को लाचार नहीं रहने दूंगी. इसलिए अपने जैसी तमाम महिलाओं को घर पर ही मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. 2014 से अबतक सैकड़ों महिलाओं को पेंटिंग का प्रशिक्षण दे चुकी हूं. प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं आज आत्मनिर्भर होकर अपना घर भी चला रही हैं. महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए मैंने हस्त संस्कृति प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक स्टार्टअप की शुरुआत की. राजीव नगर स्थित अपने ऑफिस में मैं महिलाओं और नि:शक्तों को मधुबनी पेंटिंग सीखाने का कार्य करती हूं. 

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