‘पालनपीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है मां मंगलागौरी मंदिर, यहां पूरी होती है हर मनोकामना
Manglagauri Temple: मां मंगला गौरी का इतिहास हजारों साल पुराना है. ऐसी मान्यता है कि माता सती का 108 अंग विभिन्न पर्वतों पर गिरा था. उस 108 अंग में से एक अंग गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था, जो गया शहर में पालनपीठ के रूप में विराजमान है. इसलिए कहा जाता है कि यहां माता अपने भक्तों का पालन करती है.
Manglagauri Temple: बिहार के गया शहर में स्थित मंगलागौरी मंदिर में आकर जो भी भक्त सच्चे मन से मां की पूजा व अर्चना करते हैं, मां उस भक्त पर खुश होकर उसकी मनोकामना को पूर्ण करती है. ऐसा कहा जाता है कि यहां श्रद्धा से पूजा करने वाले किसी भी भक्त को मां मंगला खाली हाथ नहीं भेजतीं. इस मंदिर में सालो भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. यहां गर्भगृह में ऐसे तो काफी अंधेरा रहता है, परंतु वर्षों से एक दीप प्रज्वलित हो रहा है. कहा जाता है कि यह दीपक कभी बुझता नहीं है.
मां मंगला गौरी का इतिहास हजारों साल पुराना है. ऐसी मान्यता है कि माता सती का 108 अंग विभिन्न पर्वतों पर गिरा था. उस 108 अंग में से एक अंग गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था, जो गया शहर में पालनपीठ के रूप में विराजमान है. इसलिए कहा जाता है कि यहां माता अपने भक्तों का पालन करती है.
यहां गिरा था मां का वक्ष स्थल, दर्शन करने से प्राप्त होता है अमरत्व
भगवान शिव जब अपनी पत्नी सती के जले हुए शरीर को लेकर आकाश में व्याकुल होकर घूम रहे थे तो माता सती के शरीर के 51 टुकड़े देश के विभिन्न हिस्सों में गिरे थे. इन स्थानों को शक्तिपीठों के रूप में जाना जाता है. इन्हीं में से एक गया का मंगलागौरी मंदिर है. 51 टुकड़ों में से स्तन वाला हिस्सा ईसी भस्मकुट पर्वत पर गिरा था. मान्यता है कि यहां आकर जो मनुष्य इन शिलाओं को स्पर्श करता है वो अमरत्व को प्राप्त करता है. इस शक्तिपीठ को असम के कामाख्या शक्तिपीठ के समान माना जाता है.
यहां माना जाता है शक्ति का वास
इस मंदिर का उल्लेख, पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण और अन्य हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है. तांत्रिक कार्यों की सिद्धि के लिए भी इस मंदिर को प्रमुखता दी जाती है. कहते हैं इस मंदिर में मां शक्ति का वास है. इस शक्तिपीठ की एक और विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म यहां आकर कर सकते हैं.
मंदिर में अन्य प्रतिमाएं भी है विराजमान
मंदिर के गर्भगृह में देवी की प्रतिमा रखी है और यहां भव्य नक्काशी की गई है. माता के अलावा यहां भगवान शिव और महिषासुर की प्रतिमा, मां देवी दुर्गा की मूर्ति और दक्षिणा काली की मूर्ति भी विराजमान है. यहां इसके अलावा और भी कई छोटे बड़े मंदिर स्थित है.
परिसर में स्थित मौल श्री वृक्ष पर नहीं पड़ता पतझड़ का प्रभाव
मंदिर परिसर में एक मौल श्री का वृक्ष है, जो कितना साल पुराना है, इसका कोई प्रमाण नहीं है. स्थानीय लोगों की कई पीढ़ी इस पेड़ को काफी दिनों से देख रहे हैं. खास बात यह है कि इस वृक्ष पर पतझड़ का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. यहां बैठने मात्र से श्रद्धालुओं को शांति मिलती है. अब भी यहां साधक आते हैं और माता का दर्शन कर चले जाते हैं.
हजारों साल से जल रहा अखंड ज्योत
मां मंगलागौरी मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है. देश भर में माता सती के अंग विभिन्न पर्वतों पर गिरे थे. उस 108 अंग में से एक अंग यहां भी गिरा था. जो कि पालनपीठ के रूप में है. इसलिए यह माना जाता है कि यहां माता अपने भक्तों का पालन करती हैं. 10 हजार साल पूर्व इस मंदिर का निर्माण दंडी स्वामी ने कराया था. उन्होंने माता के गर्भ गृह में अपनी साधना से अखंड ज्योत जलाई थी, जो तब से लेकर अब तक प्रज्ज्वलित है. यहां सच्चे मन से आने वाले भक्तों की हर मन्नतें पूरी होती है.