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कई गंभीर बीमारियों की दवा है मांगुर, जानें क्यों मिला है राजकीय मछली का दर्जा

कम पानी, कीचड़ और नमी वाली मिट्टी की मांद में बाहरी ऑक्सीजन पर जिंदा रहने वाली मांगुर मछली की प्रजाति बिहार में अधिक पाई जाती है. प्राचीन पोखर और जलस्रोतों के सूखने से संकट और गहरा जाता है, तब सरकार ने अन्य प्रदेशों की तरह मांगुर को संरक्षित करने के लिए राजकीय मछली घोषित किया.

पटना. बिहार में नील क्रांति अब रंग लाने लगी है. वर्षों बाद बिहार में जरूरत से अधिक मछली उत्पादन हुआ है. 2022-23 में पूरे राज्य में मछली उत्पादन 8 लाख 46 हजार टन हुआ. 2021-22 में 7.61 लाख टन की तुलना में यह 85 हजार टन अधिक है. उत्पादन के अनुपात में खपत अब बराबर हो चुकी है. बिहार में सालाना 8.02 लाख टन मछली की जरूरत है. अब उत्पादन अधिक होने से जरूरत से 44 हजार टन अधिक मिला. इसके साथ ही लुप्त हो रही राजकीय मछली मांगुर का राज लौट रहा है. कम पानी, कीचड़ और नमी वाली मिट्टी की मांद में बाहरी ऑक्सीजन पर जिंदा रहने वाली ये मछली गंगा, बूढ़ी गंडक और गंडक में फिर से दिखने लगी है.

मांगुर क्यों चुनी गई राजकीय मछली

बिहार में 2008 में मांगुर राजकीय मछली घोषित की गयी थी. कम पानी, कीचड़ और नमी वाली मिट्टी की मांद में बाहरी ऑक्सीजन पर जिंदा रहने वाली मांगुर मछली की प्रजाति बिहार में अधिक पाई जाती है. हालांकि भीषण सुखाड़ पड़ने पर आहर, पइन, नाले सूख जाते हैं. गर्मियों में मिट्टी सूखकर कठोर होने पर मांगुर प्रजाति का बचना मुश्किल हो जाता है. प्राचीन पोखर और जलस्रोतों के सूखने से संकट और गहरा जाता है, तब सरकार ने अन्य प्रदेशों की तरह मांगुर को संरक्षित करने के लिए राजकीय मछली घोषित किया.

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मांगुर में औषधीय गुण

वायुश्वासी प्रजाति की यह मछली औषधीय गुणों से भरपूर है. आमतौर पर मछली में ओमेगा-3 पाया जाता है. ओमेगा-3 और प्रोटीन की अधिकता कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है. दिल के मरीज, उच्च रक्तचाप और कैंसर जैसी बीमारी को रोकने में इसके तत्व सहायक माने जाते हैं. मांगुर में इसकी प्रचुर मात्रा है. यही कारण है कि टीबी के मरीजों को चिकित्सक मांगुर मछली खाने की सलाह देते हैं.

हर मौसम में मांगुर उपलब्ध कराने की प्रयास

सरकार का कहना है कि मांगुर की मांग सावन में भी बनी रहती है. सरकार की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है कि हर मौसम में यह मछली थाली में उपलब्ध हो. डॉक्टरों का भी कहना है कि मांगुर खाने से बिहारियों का कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित होगा. दिल, उच्च रक्तचाप और कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने की शक्ति भी मिलेगी. मत्स्य अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक देवेंद्र नायक कहते हैं कि राजकीय मछली मांगुर विलुप्त होने की कगार पर था. इसके संरक्षित और विस्तार देने के लिए हैचरी का निर्माण किया गया है. मांगुर के बीज गंगा, बूढ़ी गंडक और गंडक नदी में छोड़े गये हैं. इसके परिणाम काफी सकारात्मक आये हैं.

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10 वर्षों में मछली उत्पादन में दोगुना से अधिक वृद्धि

पशु व मत्स्य संसाधन विभाग ने मछली उत्पादन का आंकड़ा तैयार कर लिया है. बिहार में लगातार खपत बढ़ रही है. राज्य में सालाना लगभग 8 हजार करोड़ का मछली का कारोबार होता है. हालांकि पिछले 10 वर्षों में मछली उत्पादन में दोगुना से अधिक वृद्धि हुई है, लेकिन लगातार खपत में भी वृद्धि हो रही है. इसके बावजूद अब बिहार से मछली पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और नेपाल भी जाता है. अभी तक राज्य में मछली की डिमांड पूरा करने के लिए लगभग 800 करोड़ की मछली आंध्रप्रदेश आदि राज्यों से मंगाना पड़ता था. अब यह राशि ही नहीं बचेगी, बल्कि दूसरे राज्यों में अधिक मछली भेजने में भी सफल होंगे.

कृषि रोड मैप और योजनाओं का असर

पिछले तीनों कृषि रोड मैप में मछली उत्पादन बढ़ाने पर जोर रहा. मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को तालाब बनाने से लेकर हैचरी, फिश फीड मिल के योजना है. इसके लिए 40 से 75% तक अनुदान का प्रावधान किया गया है. बिहार में जितनी अधिक नदियां और चौर क्षेत्र है. यहां मछली उत्पादन की भरपूर संभावना है. बिहार में मीठे जल क्षेत्र की मछलियां बेहतर मानी जाती हैं. मांगुर का एक और मजबूत पक्ष है कि यह मछली कम जगह में अधिक संख्या में पल सकती है. किसी तालाब में रेहू, कतला, पंगेसियस की तुलना में मांगुर का पालन दोगुना से अधिक संभव है. तालाब में केकड़ा, मकरी और अन्य लार्वा के साथ बाहरी चारे में घर का चावल, गेहूं, मक्का, तिलहन की बेकार भूसी खिला सकते हैं.

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