अमित कुमार, पटना. राज्य के विश्वविद्यालय व कॉलेज नेशनल ग्रेडिंग में आवेदन करने की अहर्ता भी नहीं रखते, क्योंकि उसके लिए नैक में अच्छी ग्रेडिंग चाहिए. नेशनल ग्रेडिंग की तो छोड़िए ज्यादातर विश्वविद्यालय नैक की अच्छी मान्यता के लिए ही संघर्षरत हैं. स्थिति यह है कि राज्य के कॉलेजों में जब मान्यता के लिए निरीक्षण करने नैक की टीम आती है, तो यहां तरह-तरह के विभिन्न विषयों में हुए शोध कार्य तलाशती है, चाहे वह छात्रों के हों या शिक्षकों के, लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है.
नैक टीम को ढूंढने पर भी नहीं मिलता कोई उत्कृष्ट शोध : वर्तमान में पीयू ही इकलौता विवि है, जो नैक में बी प्लस ग्रेड प्राप्त है. उसे भी ए और ए प्लस ग्रेड नहीं मिलने की वजह शोध में कमी ही बताया गया. साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज व बीएन कॉलेज को भी मान्यता मिली, लेकिन वहां निरीक्षण के लिए पहुंची टीम रिसर्च खोजती है, लेकिन हर जगह इसकी कमी साफ नजर आती.
यही वजह है कि नैक में शोध में सबसे कम अंक पीयू और ज्यादातर कॉलेजों को मिले. कमोवेश यही हाल राज्य के दूसरे विश्वविद्यालयों व कॉलेजों का भी है. ज्यादातर तो नैक की तैयारी में ही जुटे हैं और कुछ तो मान्यता के लिए आवेदन करने के लिए अभी काबिल ही नहीं हैं.
पीयू व लाइब्रेरी में प्लेगरिज्म टेस्ट के सह समन्वयक व फिजिक्डास के शिक्षक अशोक कुमार झा कहते हैं राज्य में कोई बड़ा शोध कार्य नहीं होने के पीछे के कई कारण हैं. विश्वविद्यालयों व कॉलेजों के पास शोध के लिए उस तरह से साधन नहीं है. अनुदान तीन दशक से बंद है. लैब और लाइब्रेरी का हाल बहुत ही बुरा है. अलग से रिसर्च लैब नहीं है.
तीन दशक से विवि व कॉलेजों को लाइब्रेरी व लैब के लिए मिलने वाली स्टैच्यूटरी ग्रांट भी बंद है. विवि-कॉलेज की आय इतनी कम है कि ये वर्ल्ड क्लास लैब नहीं बना सकते हैं. अब सरकार इस दिशा में मदद करना शुरू कर रही है. कुछ काम शुरू हुए हैं. जैसे सिस्मिक रिसर्च सेंटर, डाल्फिन रिसर्च सेंटर, पापुलेशन रिसर्च सेंटर व अन्य विशेष रिसर्च सेंटर जहां सभी तरह के शोध होंगे, प्रस्तावित हैं.
कॉलेज, लैब व लाइब्रेरी भी तभी काम आते हैं जब मार्गदर्शक (गाइड) अच्छे हों. शिक्षकों की भारी कमी है. विवि में 60% से अधिक सीटें खाली हैं. वहीं शिक्षकों में भी शोध के प्रति दिलचस्पी होनी चाहिए. जिन शिक्षकों का शोध कार्य अधिक है, उनकी नियुक्ति हो तो छात्रों को भी वे शोध के प्रति उत्साहित करेंगे. ज्यादातर गाइड भी सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं. पीएचडी कराने भर से ही उन्हें मतलब है. व्यक्तिगत स्तर पर छोटे-मोटे शोध होते रहते हैं, लेकिन बड़ा शोध कार्य नहीं हो पाता है.
पीयू के आइक्यूएसी के कार्डिनेटर प्रो बीरेंद्र प्रसाद ने कहा कि यह बात सही है कि जिस तरह से बड़े रिसर्च होने चाहिए, वे विश्वविद्यालयों में नहीं हो रहे हैं. इसके कई कारण हैं, शिक्षकों की कमी, संसाधन की कमी है. विदेशों में रिसर्च के लिए पूरी टीम मिलकर काम करती है. इस तरह की यहां न तो परिपाटी है और न रिसर्च को लेकर उस तरह से दिलचस्पी ही है.
Posted by Ashish Jha