कौशिक रंजन, पटना. राज्य में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के निर्धारित समय पर पूरा नहीं होने के कारण खजाने पर करीब 10 हजार करोड़ का बोझ बढ़ा है. साथ ही इन प्रोजेक्ट की निर्धारित निर्माण लागत में भी ढाई से तीन गुना की बढ़ोतरी हो गयी है. इनमें मुख्य रूप से गंगा पाथ-वे, अब्दुल कलाम साइंस सिटी, लोहिया पथ चक्र व महात्मा गांधी सेतु के अलावा कुछ महत्वपूर्ण एनएच की योजनाएं भी शामिल हैं.
एनएच का निर्माण तो केंद्र सरकार की एजेंसी एनएचआइ ही करवाती है, लेकिन इनके लिए जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामलों में राज्य सरकार की भी काफी हिस्सेदारी होती है. इस वजह से एनएच के प्रोजेक्ट में देरी होने से इसकी लागत में बढ़ोतरी का असर राज्य सरकार पर भी पड़ता है क्योंकि जमीन अधिग्रहण की लागत बढ़ने का असर राज्य के खजाने पर ही पड़ता है.
हाल में महालेखाकार के स्तर से रिपोर्ट में भी इस मुद्दे पर खासतौर से सरकार का ध्यान आकर्षित कराया गया है. इसमें भी कई प्रोजेक्ट का उल्लेख करते हुए इनके समय पर पूरा नहीं होने के कारण इससे वित्तीय बोझ बढ़ने की बात कही गयी है.
इसमें पटना शहर में दीघा घाट से दीदारगंज तक बन रहे गंगा पाथ-वे की शुरुआती कीमत करीब एक हजार 700 करोड़ रखी गयी थी. 20 किमी लंबी इस सड़क का निर्माण 2013 में शुरू किया गया था. समय पर इसका निर्माण पूरा नहीं होने से इसकी लागत करीब दोगुना होकर तीन हजार 400 करोड़ हो गयी है. इसी तरह शहर में बन रहे लोहिया पथ चक्र का निर्माण कार्य 2014 से शुरू हुआ था, जिसे 2018 में ही पूरा होना था, लेकिन देरी होने के कारण लागत में करीब तीन सौ करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी है.
इसी तरह शहर में ही बन रहे दो अन्य फ्लाइ ओवर आर-ब्लॉक और करबिगहिया फ्लाइओवर की लागत में ढाई सौ करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी है. शहर में ही बन रहे अब्दुल कलाम साइंस सिटी की लागत भी 300 करोड़ से बढ़ कर करीब 700 करोड़ हो गयी है. यह प्रोजेक्ट भी काफी लेट चल रहा है. महात्मा गांधी सेतु पुल के सुपर स्ट्रक्चर का फिर से निर्माण कराया जा रहा है. यह प्रोजेक्ट भी तीन साल देर हो गया है. इससे इसकी लागत में करीब सात सौ करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी है. हालांकि, इसका एक लेन पूरा हो गया है.
इनके अलावा कुछ अहम एनएच से जुड़े प्रोजेक्ट को देखें, तो पटना-गया-डोभी एनएच तीन साल देर हो गया है. इससे इसकी लागत में तीन हजार करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी है और यह पांच हजार करोड़ तक पहुंच गया है. इंडो-नेपाल सीमा पर बन रही मुख्य सड़क पांच साल में महज 25 किमी बनी है.
इतनी देरी के कारण सात जिलों में सिर्फ जमीन अधिग्रहण की लागत करीब दो हजार करोड़ बढ़ गयी है. साथ ही इसकी दाखिल-खारिज कराने का खर्च भी करीब एक हजार 300 करोड़ बढ़ गयी है. इसका असर पूरे प्रोजेक्ट पर पड़ा है और इसके निर्माण लागत में करीब ढाई गुना की बढ़ोतरी हो गयी है. इसके अलावा कुछ अन्य प्रमुख योजनाएं भी हैं, जिनमें देरी होने से इनकी लागत काफी बढ़ गयी है.
Posted by Ashish Jha