जीआई टैग की लिस्ट में अब बिहार का एक और उत्पाद शामिल हो गया है. पश्चिम चंपारण का उत्कृष्ट उत्पाद मर्चा धान अपनी विशिष्टता के लिए मशहूर है. जिसे अब केंद्र सरकार ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दे दिया है. इस वजह से मर्चा धान को अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिलेगी. जीआई टैग मिलने से यहां के किसानों को भी अब काफी लाभ मिलेगा, उन्हें मर्चा धान का बेहतर दाम मिल पाएगा. जिससे उनकी आय दोगुनी होगी और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. जिले में एग्रो टुरिज़म को भी बढ़ावा मिलेगा.
बिहार का छठा उत्पाद जिसे मिला जीआई टैग
बिहार के कृषि उत्पादों में यह छठा उत्पाद है जिसे जीआई टैग मिला है. जिसमें मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर का कतरनी चावल शामिल है. केंद्र सरकार के जीआई रजिस्ट्रार, चेन्नई की ओर से जारी प्रमाण पत्र को शनिवार को समाहरणालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मर्चा धान उत्पादक सहयोग समिति के अधिकारियों एवं सदस्यों को प्रदान किया गया. वहीं जीआई रजिस्ट्रार ने जिला प्रशासन को भी इसका प्रमाण पत्र प्रेषित किया है. जिसे जिलाधिकारी को समर्पित किया गया.
किसानों को उनके उत्पाद का मिल पाएगा ज्यादा मूल्य
जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय ने बताया कि यह पश्चिम चंपारण जिले के लोगों विशेष रूप से किसानों के लिए गौरव का क्षण है. आज के दिन चंपारण की शान मर्चा धान से विश्व स्तर इस जिले की पहचान मिल गयी है. इससे मर्चा धान की खेती में लगे किसानों को उनके उत्पादों के लिए ज्यादा मूल्य मिलेगा. साथ ही आधारित कई उद्योग भी लगेंगे.
मर्चा धान के किसानों में खुशी
पश्चिम चंपारण के विशिष्ट उत्पाद मर्चा धान को जीआई टैग मिल जाने से यहां के किसानों में खुशी है. जीआई टैग मिल जाने से अब यहां के मर्चा धान उत्पादकों को बेहतर दाम मिल पायेगा. पश्चिम चंपारण का मर्चा धान अपने स्वाद, पोषक तत्व और प्राकृतिक रुप से एक विशेष क्षेत्र में उत्पादन के लिए मशहूर है. कहावत है कि यदि पैरवी और पैसे से कोई काम नहीं बन रहा हो तो मर्चा धान का चिउड़ा उपहार में दे दीजिए काम बन जायेगा.
क्या है जीआई टैग
जीआई टैग मिलने से पश्चिम चंपारण हीं नहीं, बल्कि अब इसकी ग्लोबल पहचान बनेगी. मर्चा धान को जीआई टैग दिलवाने में अपनी अहम भूमिका अदा करने वाले जिले के वरीय उप समाहर्ता डा राजकुमार सिन्हा बताते हैं कि वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाईजेशन के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है. इसमें किसी प्रॉडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है. ऐसा प्राडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रुप से प्राकृति और मानवीय कारको पर निर्भर करती है. भारत में संसद की तरफ से 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स लागू किया गया. इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाये जानेवाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है. यह टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पायी जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर कानूनी प्रयोग को रोकना है.
दो साल पहले जीआई टैग दिलाने का प्रयास हुआ था प्रारंभ
राजकुमार सिन्हा बताते हैं कि करीब दो वर्ष पूर्व तत्कालीन जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने यहां की मशहुर मर्चा चिउड़ा को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रक्रिया आरंभ करने का निर्देश दिया. उनके मार्गदर्शन में मर्चा चिउड़ा के बारे में अध्ययन आरंभ किया गया. रजिस्ट्रार जीआई टैग के नियमों के मुताबिक कार्य करना काफी सरल नहीं था. ऐसे में मर्चा चिउड़ा को जीआई टैग दिलाने के लिए एक कलेक्टिव बॉडी का चयन किया गया. इसके तहत मैनाटांड़ के सिंहासनी में मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह का गठन किया गया. अब नियमानुकुल अप्लाई करते हुए यह बताया गया कि आखिरकार मर्चा चिउड़ा को जीआई टैग क्यों दिया जाय. अप्लाई के बाद संस्था ने साक्ष्य, सबंधित तर्को का अध्ययन करने के लिए सर्वप्रथम इसे जर्नल में प्रकाशित किया और आपत्ति की मांग की. आपत्ति नहीं मिलने पर प्रक्रिया आरंभ होने के दो वर्ष के बाद मर्चा धान को जीआई टैग का प्रमाण पत्र उपलब्ध हो पाया है.
प्रमाण पत्र का मिलना अपने आप में गौरव का क्षण है. दो वर्ष के अथक प्रयास से करीब पांच सौ पन्नों से अधिक का दस्तावेजी करण कर प्रस्तुतिकरण का परिणाम है कि आज मर्चा धान को जीआई टैग लेने में सफलता मिली है. – वरीय उप समाहर्ता डा राजकुमार सिन्हा
अब आनंदी धान व चंपारण के जर्दा को जीआई टैग दिलाने पर होगा काम
डीएम दिनेश कुमार राय ने बताया कि जिला अब जिले के आनंदी धान एवं चंपारण के जर्दा आम को भी जीआई टैग दिलाने पर काम होगा. विदित हो कि मर्चा धान को जीआई टैग मिलने के पहले भागलपुर के कतरनी धान, जर्दालु आम, नवादा का मगही पान, मुजफ्फरपुर की शाही लीची एवं दरभंगा के मखाना को जीआई टैग मिल चुका है. वैसे प्रशासन के वरीय उप समाहर्ता डाॅ राज कुमार सिन्हा, कृषि विज्ञानी डाॅ धीरू तिवारी, समिति के किसान एवं कृषि विभाग के अधिकारियों के अथक प्रयास से मर्चा धान को जीआई टैग मिलना संभव हो सका है.