‘बसंत ऋतु’ को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. खत्म होती सर्दी, बड़े होते दिन और गुनगुनी धूप धीरे-धीरे तेज होती जाती है, और इसी मौसम में खिलते हैं रंग-बिरंगे व सुगंधित फूल. यही वजह है कि इस ऋतु को ‘फूलों का मौसम’ भी कहा गया है. ऐसे में ऋतुराज के आगमन से राजधानी पटना के नर्सरी में कई देशी-विदेशी फूलों और खूबसूरत शो प्लांट्स की डिमांड बढ़ गयी है. लोग अपने घर की बगिया व टेरेस गार्डन को सजाने-संवारने में लग गये हैं. गमलों में गुलाब सहित गुलदाउदी, जेनिया, डहेलिया, साल्विया, गेंदा आदि के फूल नयनाभिराम छटा पेश कर रहे हैं.
गेंदा, गुलाब,डहेलिया व गुलदाउदी की है मांग
इन दिनों नर्सरी में कई देशी-विदेशी फूलों और खूबसूरत शो प्लांट्स की डिमांड बढ़ी है. शहर में कई छोटे-बड़े नर्सरी हैं, जहां आकर्षक फूलों की 50 से अधिक प्रजातियां उपलब्ध है. लोग अपने घर की बगिया को सजाने के लिए यहां से फूल-पौधे लेकर जा रहे हैं. गेंदा, गुलाब, आइरिस, एनीमोन, डहेलिया, गुलदाउदी, पिटोनिया, पेंजी, ऐरिका आदि फूलों की काफी मांग है. जबकि कई लोग तुलसी, अश्वगंधा, पुदीना, लेमन ग्रास, एलोवेरा की मांग कर रहे हैं. वहीं कई लोग बड़े आकार के कई परत वाली पंखुड़ियों के फूल पूरे गार्डन एरिया में लगाने के लिए ले जा रहे हैं.
नर्सरी में फूलों की ये मिल रही वैरायटी
मैरीगोल्ड, जाफरी, डहालिया, ऑर्नामेंटल कैबेज, बिगोनिया, डेजी, गजिनिया हेली, ल्यूपिन वॉल फ्लावर, एलाइसम, कैंडी टफ, कारनेशन, आइस प्लांट, मंकी फ्लावर, रजनीगंधा ट्यूबरोज, कैलेंडुला, एंथोनियम, ऑर्किड, सलविया आदि.
इस मौसम में फूलों की सुंदरता देखते बनती है : मनोरंजन
लोहानीपुर के रहने वाले मनोरंजन सहाय को बागवानी का बड़ा शौक है. वे कहते हैं, बसंत ऋतु अर्थात फरवरी से अप्रैल तक के महीने को फूलों का मौसम कहा गया है, क्योंकि इसी मौसम में ज्यादातर फूल खिलना शुरू करते हैं. मेरे यहां टेरेस गार्डन में गुलाब, गुलदाउदी, जेनिया, डहेलिया, गेंदा, कॉसमोस, पैंजी, कैंनेनड्युला, मैरोगोल्ड, डॉग फ्लावर सहित कई फलदार पौधे हैं. ताजा गुलाब की खुशबू फिजाओं को महका रही है. इस मौसम में फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है. मैं उनकी देखभाल सुबह-शाम करता हूं.
![ऋतुराज ने बढ़ायी फूलों की खुशबू, 30-50 रुपए में गेंदा और 500-800 में मिल रहा एंथूरियम का प्लांट 1 Prayagraj 18](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2025/02/Prayagraj-18-1024x683.jpg)
बेफिक्र होकर लगाएं इस मौसम में फूल-पौधे : अभिजीत
आशियाना-दीघा रोड स्थित ग्रीन शेल्टर नर्सरी के अभिजीत नारायण कहते हैं, बसंत ऋतु का मौसम सुहावना होता है, इस समय न तो अधिक ठंड होती है न ही अधिक गर्मी, इस वजह से स्प्रिंग सीजन में फूल के पौधों की अधिक देखभाल भी नहीं करनी पड़ती है. मेरे यहां नर्सरी में इन दिनों लोग सबसे अधिक गुलाब, गुलदाउदी, जेनिया, डहेलिया, गेंदा आदि की मांग कर रहे हैं. वैसे मेरे यहां सदाबहार(अलग-अलग रंगों की), कुचिया, बारह मास उगने वाले गेंदा, जबेरा, पैंजी, वर्बिना, सलविया, पिटूनिया है. वहीं इंडोर प्लांट्स में एरिका पाल्म, पीस लीली, एंथुरियम, स्नेक प्लांट समेत कई प्लांट्स है. नर्सरी में चालीस केजी के मिट्टी का बैग 150 रुपये व प्रीमियम सॉयल 300 तक में उपलब्ध है.
हाजीपुर, बिहटा व कोलकाता से आता है पौधा
नॉर्थ गांधी मैदान स्थित त्रिपुरम नर्सरी के कर्मी दीपक कुमार बताते हैं कि उनके पास पूरे साल भर सीजनल पौधे मिलते हैं. इनमें कुछ पौधे 12 महीने तक लगाये जाते हैं. अभी के समय में लोग उनके पास से कोचिया, जीनिया, कॉसमस, सदाबहार, जबेरा, बारह मासा गेंदा, गुलाब आदि की खरीदारी करने पहुंच रहे हैं. इंडोर प्लांट्स में कॉलस, करोटन, पनसेठिया, केला लीली(3-4 प्रकार), पीस लीली आदि हैं. सारे पौधे अलग-अलग जगह जैसे हाजीपुर, बिहटा, कोलकाता, गया आदि से आते हैं.
इस सीजन में हमेशा बनी रहती है मिट्टी में नमी : डॉ खरे
मगध महिला कॉलेज की बॉटनी विभाग की डॉ पुष्पांजलि खरे कहती हैं, अभी का समय में तापमान और मौसम दोनों मॉडरेट होते हैं. यानी न ज्यादा ठंड और न ही ज्यादा गर्मी. इस वक्त जो भी आप पौधे लगायेंगे, वह तुरंत जड़ से लग जायेंगे. इसका कारण मिट्टी में नमी का होना है. यह ट्रांजिशन पीरियड होता है, जिसमें पौधे हो या बीज वह जल्दी बड़े होते हैं. क्योंकि उनके ग्रोथ के लिए जो भी चीजें होती है वह प्रचुर मात्रा में होती है.
फूल लगाने के लिए प्लास्टिक के गमलों की डिमांड
बदलते दौर के साथ फूलों और पौधे को लगाने के लिए अब मिट्टी की जगह प्लास्टिक से बने गमले जगह ले रहे हैं. राजधानी वाटिका स्थित नर्सरी संचालक शिव प्रसाद सिंह कहते हैं, सुंदर और टिकाऊ होने के कारण प्लास्टिक के गमलों की मांग शहर में काफी अधिक बढ़ी है. शहर में जगह-जगह पौधों व गमलों की दुकानों पर छोटे से लेकर बड़े साइज के गमले बिक रहे हैं. नर्सरी में मिट्टी के साथ-साथ प्लास्टिक के गमलों की कई वैरायटी उपलब्ध है. पर पौधों के साथ लोग प्लास्टिक के गमले अधिक खरीदते हैं. प्लास्टिक के गमलों के बाजार में आने के बाद मिट्टी के गमलों की मांग घटी है.