पटना: बिहार के गया की तिलकुट तो देश से लेकर विदेशों में मशहूर है, लेकिन राजधानी पटना के बाजार भी मकर संक्रांति को लेकर तिलकुट समेत तिल से बने अन्य व्यंजनों के कारण सोंधी खुशबू से महक रही है. राजधानी पटना, गया, भागलपुर समेत अन्य जिलों में मकर संक्रांति का बाजार सजने लगे हैं. हालांकि इस बार मकर संक्रांति पर महंगाई की मार भी है. लेकिन प्रदेश में लोगों का इस त्योहार से खास लगाव रहता है. इस वजह से राज्य में जोर-शोर से तैयारियां की जा रही है.
बिहार के बाजार में सफेद तिल की कीमत 140 से बढ़कर 220 रुपये किलो व काला तिल की कीमत 100 से बढ़कर 180-190 रुपये तक पहुंच गयी है. गुड़ 40 की बजाय 45 रुपये व तिलबा 60-70 से बढ़कर 80-90 रुपये किलो बिक रहे हैं.
दुकानदारों की मानें तो हर चीजों पर महंगाई की मार है. इसका मूल कारण ढुलाई खर्च से लेकर अन्य कच्चे माल की कीमत बढ़ना है. बाजार में पहले जिस चूड़ा की कीमत 25 से 30 रुपये किलो रहती थी. इस बार 35 से 45 रुपये किलो, छोटा चूड़ा 38 से 45 रुपये किलो था, जो कि अभी 50 से 60 रुपये किलो, कतरनी चूड़ा 70 से 100 रुपये की बजाय 90 से 140 रुपये किलो तक बिक रहे हैं. मुढ़ी 50 रुपये किलो, चूड़ा भूजा 60 रुपये किलो तक बिक रहे हैं, जाे कि पिछले साल 40 से 50 रुपये किलो तक बिक रहा है.
मकर संक्रांति पर बाजार में गया के तिलकुट का खास डिमांड रहता है. तिल की बढ़ी कीमतों के चलते तिल लड्डू 250 से बढ़कर 300 रुपये किलो, खोवा वाला तिलकुट 400 से बढ़कर 500 रुपये किलो हो गया. बाजार में इस बार तिलकुट की कीमत पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ गई है. इस साल बाजार में तिलकुट 240 रुपये से लेकर 1000 रुपये प्रति किलो की दर पर उपलब्ध है. 2022 की तुलना में मकर संक्रांति के दौरान प्रयोग में आने वाले सामान की कीमतें काफी बढ़ गई हैं. बाजार में चूड़ा 36 से 40 रुपये, काला तिल 180 से 200 रुपये, सफेद तिल 220 से 240 रुपये, गुड़ 42 से 48 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है.
कोरोना को लेकर इस बार कारोबारियों ने तिलकुट को भी खास इम्युनिटी बूस्टर वाला बना दिया है. दुकानदारों की मानें तो इस खास तिलकुट में केसर, लौंग, सोंठ, बड़ी इलायची समेत कई सामग्रियां डाली जाती है. जो इम्युनिटी पावर बढ़ाने में मदद करती है. इसलिए इस बार इस तिलकुट की डिमांड कुछ ज्यादा ही हो रही है.
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सेहत के लिए लाभकारी होने के वजह से ही भारतीय परिवारों में तिल की उपयोगिता बेहद खास है. यही वजह है कि ये हमारी संस्कृति में भी रचा-बसा है. कई पर्व-त्यौहार और अनुष्ठानों तिल की मौजूदगी अहम मानी जाती है.
पारंपरिक तरीके से 14 जनवरी व उदया तिथि के अनुसार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जायेगी. इसे लेकर घर से लेकर बाजार तक तैयारी जोरों पर है. शहर में जगह-जगह मकर संक्रांति मिलन समारोह शुरू हो गया है.
मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं. इस वजह से इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. स्नान के बाद दान की परंपरा है. जिसके बाद आमजन दही, चूड़ा, गुड़ और तिलकुट का आहार लेते हैं. धर्म के जानकारों की मानें तो देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही शुरू होती है. सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के 6 माह को दिन कहा जाता है. दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है.