चर्चित पत्रकार और द सर्चलाइट के संपादक सर्वदेव ओझा की 41वीं पुण्यतिथि पर शुक्रवार को केंद्र सरकार के मंत्री अश्विनी चौबे और बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी, सांसद रामकृपाल यादव, राजद नेता शिवानंद तिवारी समेत बिहार के सीनियर पत्रकारों ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी. इसके बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंत्री अशोक चौधरी ने सर्वदेव ओझा पर बनी डॉक्यूमेंट्री का लोकार्पण किया.
मंत्री अशोक चौधरी ने स्व. सर्वदेव ओझा पर बनी डॉक्यूमेंट्री का किया लोकार्पण, पत्रकारों ने दी श्रद्धांजलि pic.twitter.com/2zGJyJ36JI
— Rajesh Kumar Ojha (@RajeshK_Ojha) June 10, 2022
स्व. सर्वदेव ओझा की 41 वीं पुण्यतिथि पर स्थानीय बीआइए सभागार में ” प्रेस की आजादी तब और अब ” विषय पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. जिसमें बिहार के वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा, देवेंद्र मिश्रा, ज्ञानवर्धन मिश्रा, पशुपति शर्मा, अरुण पाण्डेय, अरुण अशेष, डॉ. संजय कुमार ने अपनी – अपनी बातों को रखा. अपने संबोधन में स्व. सर्वदेव ओझा के व्यक्तित्व और जे पी आंदोलन के दौरान पत्रकार की भूमिका पर भी प्रकाश डाला. कार्यक्रम में सभी सम्मानित अतिथिओं ने इस अवसर पर स्व. सर्वदेव ओझा की पत्नी श्रीमती लीलावती देवी को सम्मानित किया. कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन सर्वदेव ओझा के बड़े पुत्र व पत्रकार अमिताभ ओझा ने किया. इस अवसर पर स्व. ओझा के दूसरे पुत्र अजिताभ ओझा के अलावा परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे.
1974 के आन्दोलन के समय अराजक तत्वों ने सर्चलाईट अख़बार की बिल्डिंग में आग तक लगा दी थी. फिर भी इस अख़बार ने कभी अपने तेवर और निष्पक्षता से समझौता नहीं किया. इसका एक बड़ा कारण सर्वदेव ओझा थे. जो इस अख़बार में संयुक्त संपादक थे. जब अख़बार की बिल्डिंग धू – धू कर जल रही थी तो यही वो पत्रकार थे जिन्होंने सड़क पर बैठकर अपने सहयोगियों के साथ खबर लिखी और फिर उसे दूसरे प्रिंटिंग प्रेस में जाकर प्रकाशित कराया था. इस दौरान एक सप्ताह तक वो अपने घर नहीं लौटे क्योंकि उन्हें हुकूमत को यह अहसास दिलाना था की बिल्डिंग जला देने से भी हौसले नहीं टूटते. जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने एक आदेश जारी किया था कि “ द सर्चलाईट झूठी और मनगढ़ंत कहानियो को प्रकाशित करने पर अमादा है तो इसलिए इसे बंद कर देना चाहिए ”. इस आदेश के खिलाफ सर्वदेव ओझा द्वारा एक विरोध पत्र तैयार किया गया और उस पत्र पर पहला हस्ताक्षर भी किया. उसके बाद महामाया प्रसाद सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर ने हस्ताक्षर किया था. आखिरकार सरकार को अपना यह आदेश वापस लेना पड़ा था.