गया में मोक्षदायिनी फल्गु नदी के किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर का वर्णन रामायण में भी है. इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान में स्थित मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई द्वारा कराया गया था. विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाला पत्थर कसौटी से बना है, जिसे गया अतरी प्रखंड के पत्थरकट्टी से लाया गया था. इस मंदिर की ऊंचाई करीब 100 फीट है. सभा मंडप में 44 पिलर हैं. इस मंदिर की भव्यता और वैभव अद्भुत है.
विष्णुपद मंदिर 40 सेमी लंबे पदचिह्न के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें शंकम, चक्रम और गधम सहित नौ प्रतीक हैं. कहा जाता है कि ये भगवान विष्णु के अस्त्रों का प्रतीक हैं. विष्णुपद को धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है. यहां एक ठोस चट्टान पर उत्कीर्ण है और चांदी के धातु से सुसज्जित है. इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है. इस पर गदा, चक्र, शंख आदि अंकित किए जाते हैं. यह परंपरा भी काफी पुरानी बताई जाती है जो कि मंदिर में अनेक वर्षों से की जा रही है. इस मंदिर का अष्टकोणीय आकार इस मंदिर की भव्यता को बेहद आकर्षित बनाता है.
पवित्र स्थान गया का नाम गयासुर नामक राक्षस के नाम पर रखा गया है, जिसने एक अर्घ्य दिया और वरदान मांगा कि जो भी उसे देखता है, उसे मोक्ष मिलेगा. इसके कारण गलत होने के बाद भी लोगों ने उसे देखकर मोक्ष प्राप्त करना शुरू कर दिया. इसका सामना करने और मानवता को बचाने में असमर्थ, सर्वशक्तिमान उसके सामने प्रकट हुए और उसे नीचे की दुनिया में जाने के लिए कहा. भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर अपना दाहिना पैर रखकर उसे उस चट्टान पर अपने पैरों के निशान छापते हुए पाताललोक में भेज दिया जो आज भी दिखाई दे रहा है. पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है.
मंदिर को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि पितरों के तर्पण के पश्चात इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने से समस्त दुखों का नाश होता है एवं पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं. इस मंदिर परिसर के अंदर ही कुछ और छोटे मंदिर भी हैं जो भगनान नरसिंह को और भगवान शिव के अवतार ‘फल्गीश्वर’ को समर्पित हैं. ये मंदिर हिन्दुओं के लिए बहुत ही का स्थान रखता हैं. यह मंदिर श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है.