भागलपुर के खलिफाबाग में मूर्ति विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. मूर्ति लगाने को लेकर लोगों के अलग-अलग मत है. कुछ लोग मूर्ति को चाैक-चाैराहे पर लगाना चाहते हैं, ताे कुछ लाेग ऐसा करने से मना कर रहे हैं. ताजा मामला इस बार खलीफाबाग चाैक पर भामा शाह की मूर्ति लगाने का है. जहां स्थानीय लाेगाें ने एकजुटता दिखाते हुए गाेलंबर के पास मूर्ति लगाने हेतु उस जगह को ईंट और सीमेंट बालू से तैयार करना शुरू कर दिया था, लेकिन इसका विरोध वार्ड 20 के पार्षद नंदिकेश शांडिल्य के द्वारा शुरू किया गया. विरोध के बावजूद जब लोगों ने बात नहींं मानी तो नंंदिकेश शांडिल्य ने नगर विधायक अजीत शर्मा से संपर्क किया.
विधायक ने सीएम, मंत्री समेत नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव व डीएम काे पत्र लिखकर कहा है कि पार्षद ने जो तर्क दिया है, वह जनहित में सही है कि वहां आवागमन में परेशानी होगी. जनहित को देखते हुए मूर्ति लगाने की जगह नगर निगम क्षेत्र के किसी खुले जगह में तय की जाये. दूसरी ओर नगर निगम कार्यालय में पिछले दाे माह से एक मूर्ति रखी हुई है, जिसका चेहरा कपड़ा से ढंक दिया गया है, लेकिन अभी तक मूर्ति रखने की जगह तय नहीं हाे सकी है. इससे पहले नगर निगम में मूर्ति लाने से पहले जेल राेड में जयपुर से लेकर आ रही गाड़ी से ही एक पक्ष के लाेगाें ने मूर्ति उतारने का प्रयास किया था, इसके बाद दाेनाें पक्षाें में समाज के लाेगाें ने समझाैता कराया था.
जनहित को देखते हुए मूर्ति लगाने की जगह नगर निगम क्षेत्र के किसी खुले जगह में तय की जाये. दूसरी ओर नगर निगम कार्यालय में पिछले दाे माह से एक मूर्ति रखी हुई है, जिसका चेहरा कपड़ा से ढंक दिया गया है, लेकिन अभी तक मूर्ति रखने की जगह तय नहीं हाे सकी है. इससे पहले नगर निगम में मूर्ति लाने से पहले जेल राेड में जयपुर से लेकर आ रही गाड़ी से ही एक पक्ष के लाेगाें ने मूर्ति उतारने का प्रयास किया था, इसके बाद दाेनाें पक्षाें में समाज के लाेगाें ने समझाैता कराया था.
भामाशाह मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के परम मित्र थे. उनकी दानवीरता के कारण आज भी इतिहास में उनका नाम अमर है. भामाशाह का जन्म 29 अप्रैल 1547 को राजस्थान के मेवाड़ में एक वैश्य कुल में हुआ था. अपरिग्रह इनके जीवन का मूल मंत्र था. वे दानवीर एवं त्यागी स्वभाव के थे. स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले महान देशभक्त थे. भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहाँ संघर्ष की दिशा दिखाई, वहीं मेवाड़ के आत्मसम्मान कि रक्षा भी की. जब महाराणा प्रताप अपना अस्तीत्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे तब भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी.