बिहार: 1 फरवरी को केंद्र की मोदी 3.0 सरकार ने अपना पहला पूर्णकालिक बजट पेश किया. इस बजट में केंद्र सरकार ने धार्मिक पर्यटन के लिए खास तौर पर आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है. मोदी सरकार के महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े सभी स्थलों को विकसित करने की घोषणा के बाद बिहार के महात्मा बुद्ध से जुड़े हुए स्थलों के विकास की उम्मीद जगी है.
बुद्ध सर्किट के लिए खास ऐलान
बिहार के बोधगया, गया, केसरिया, नालंदा, वैशाली, राजगीर जैसे कई स्थल हैं जिन्हें अब पर्यटन के क्षेत्र में पंख लगने की उम्मीद है. दरअसल, भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों को जोड़कर बुद्ध सर्किट कहा जा रहा है. बिहार में महात्मा बुद्ध से जुड़े स्थानों में सबसे महत्वपूर्ण बोधगया माना जाता है. मान्यता है कि यहां बोधि वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. यह बोधि वृक्ष आज भी यहां मौजूद है. यहां महाबोधि मंदिर है, जहां प्रतिवर्ष लाखों देश-विदेश के धर्मावलंबी पहुंचते हैं और प्रार्थना करते हैं.
बिहार में बन रहा विश्व का सबसे ऊंचा बुद्ध स्तूप
इधर, केसरिया के लोगों को भी केसरिया स्तूप के विकास की उम्मीद बढ़ गई है. विश्व के सबसे ऊंचे केसरिया बौद्ध स्तूप के विकास की उम्मीद बढ़ गई है. महात्मा बुद्ध सेवा संस्थान के पूर्व अध्यक्ष परमेश्वर ओझा ने कहा है कि हम लोग स्तूप के विकास को लेकर काफी समय से संघर्षरत हैं. लेकिन स्तूप का जितना विकास होना चाहिए, नहीं हो सका. अब बजट से उम्मीद जगी है. विश्व का सबसे ऊंचा स्तूप होने के बावजूद इसका विकास काफी धीमा है.
केसरिया का बौद्ध स्तूप धरातल से 105 फीट ऊंचा
केसरिया का बौद्ध स्तूप धरातल से 105 फीट ऊंचा है. इस स्तूप पर सात तल हैं, प्रत्येक तल पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा विभिन्न मुद्राओं में स्थापित है, जो स्तूप की खुदाई के बाद मिली है. पूर्वी चंपारण के केसरिया का बौद्ध स्तूप भगवान बुद्ध के जीवन काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भगवान बुद्ध जब वैशाली से महापरिनिर्वाण के कुशीनगर के लिए चले तो प्रथम रात्रि विश्राम इसी स्थल पर किया. यहां स्तूप बना है. भगवान बुद्ध के रात्रि विश्राम को लेकर ही उनके शिष्यों द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया गया, जो कई सालों में बनकर तैयार हुआ. इस स्तूप की परिधि 120 मीटर है और ऊंचाई लगभग 32 मीटर. अब तक यह विश्व का सबसे ऊंचा उत्खनन स्तूप होने का अनुमान है.
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27 साल बाद भी स्तूप का काम अधूरा
केसरिया स्तूप की खुदाई 1998 में शुरू हुई थी. लेकिन, 27 साल बाद भी स्तूप का खुदाई कार्य अब भी अधूरा है. स्तूप के 60 प्रतिशत हिस्से की ही अब तक खुदाई हो पाई है. स्तूप परिसर का कुछ खास विकास भी नहीं हो पाया है. अब लोगों में आशा जगी है कि केसरिया स्तूप के दिन बहुरेंगे. यह स्तूप बौद्ध काल के गौरवशाली अतीत का प्रतीक माना जाता है. इसका एक बहुभुज आधार है और ऊपर से बहुभुज आकार की ईंटों से ढका हुआ है.